asd सीबीएसई और आईसीएसई के स्कूल बताए कितने गरीब बच्चों को बिना फीस पढ़ा रहे हैं, घोषित करें उनकी सूची

सीबीएसई और आईसीएसई के स्कूल बताए कितने गरीब बच्चों को बिना फीस पढ़ा रहे हैं, घोषित करें उनकी सूची

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बीते दिन पूरे विश्व में श्रम दिवस एक मई को मनाया गया। इस क्रम में कुछ बड़े स्कूलों ने भी इस मौके पर कृतज्ञता और आभार दिवस मनाते हुए अपने यहां के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को सम्मानित कर उनके योगदान की सराहना की। प्रभम दृष्टया सीबीएसई और आईसीएसई के स्कूल के टीचर और बच्चों द्वारा यह दिवस मनाया जाना उल्लेखनीय कार्य नजर आता है। इनसे संबंध खबरों को पढ़कर यह अहसास होता है कि स्कूलों का प्रबंधन शिक्षक आदि श्रमिकों के प्रति बहुत ही कृतज्ञ और आभारी हैं। मगर क्या सही मायनों में ऐसा हो रहा है तो मुझे लगता है कि कहीं ना कहीं यह दिवस मनाने के पीछे अपने स्कूल की साख बढ़ाना और समाज में अपनी स्थिति इस नाम पर मजबूत करनी हो सकता है लेकिन सही मायनों में ऐसा कुछ हो नहीं रहा है। अगर ऐसा हो रहा है तो इन बड़े स्कूलों सैंट मैरी, सैंट पेट्रिक्स एकेडमी मेरठ पब्लिक स्कूल केएल इंटरनेशनल स्कूल दीवान पब्लिक स्कूल दिल्ली पब्लिक स्कूल डीएवी स्कूल गार्गी स्कूल बीडीएस इंटरनेशनल स्कूल सेैंट जोंस स्कूल आदि की प्रबंध समिति और शिक्षक आदि घोषित करें कि वो अपने स्कूल में इतने गरीब बच्चों को बिना फीस लिए पढ़ा रहे हैं। और इनका एडमिशन बिना किसी दबाव के किया गया है। इसकी सूची इनको जारी करनी चाहिए। क्योंकि जहां तक खबरें पढ़ने सुनने को मिलता है उससे यही पता चलता है कि इन स्कूलों में गरीब आदमी की बात तो दूर शासन द्वारा आरटीई के तहत जिन बच्चों को प्रवेश देने के लिए कहा जाता है उन्हें भी यह अपने यहां दाखिल नहीं कर रहे हैं। अगर यह बड़े स्कूल गरीब जरूरतमंद मजदूरों के ब च्चों को अपने यहां एडमिशन दे रहे हैं तो यह बड़ी सराहनीय बात है। और इन स्कूल संचालकों की प्रशंसा की जानी चाहिए लेकिन पहले स्पष्ट हो कि यह इस वर्ग के बच्चों को पढ़ाकर फीस नहीं ले रहे हैं और सरकारी नीति का पालन इनके द्वारा कहां तक किया जा रहा है। और अगर यह ऐसा नहीं करते तो मुझे लगता है कि स्कूल में एक दिन कुछ कर्मचारियों को इकटठा कर उनका सम्मान कर देने से ना तो मजदूरों का आभार प्रकट होता है और ना कृतज्ञता जताई जा सकती है। देश के विकास में इनके योगदान को देखते हुए इनका और इनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सके इसके लिए इनके बच्चों को इन बड़े स्कूलों में प्रवेश मिलना चाहिए और स्कूल घोषित करें कि उनके यहां इतने बच्चे बिना फीस के पढ़ रहे हैं और उन्हें सामान्य बच्चों की तरह अधिकार भी प्राप्त हो रहे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो फिर घड़ियाली आंसू बहाने की कोई तुक नजर नहीं आती है। (संपादकः रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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