बिल्डर आवास विकास प्राधिकरण नगर निगम और रेरा के लोगों की मिलीभगत के चलते रियल एस्टेट में भ्रष्टाचार और उपभोक्ताओं से धोखाधड़ी की वारदात बढ़ती ही जा रही है। क्योंकि कुछ बैंक सारे नियमों को तोड़कर बिल्डरों और उससे सांठगांठ कर उन्हें सपोर्ट करते हैं तो रियल एस्टेट के कुछ अधिकारी भी इनसे संबंध मामलों में आंख मींच लेते हैं। परिणामस्वरूप सरकार की हर व्यक्ति को छत उपलब्ध कराने की नीति और प्रयास सफल नहीं हो पा रहे हैं। पिछले दिनों यूपी रेरा के अध्यक्ष संजीव भूसरेडडी द्वारा अपने अधीनस्थ 12 कर्मचारियों को कार्य में अनियमितता और सरकार की नीति के तहत काम ना करने के परिणामस्वरूप बर्खास्त किया गया। फिलहाल न्यायमित्र अधिवक्ता राजीव जैन ने सुपरटेक धोखाधड़ी के मुख्य दोषी बताया। जबकि कॉरपोरेशन बैंक ने सब्सिडी योजना के जरिए बिल्डर को गलत तरीके से 2700 करोड़ के भुगतान में अनियमितता की ओर ध्यान दिलाया। जिस कारण से बिल्डर और बैंक में सांठगांठ की जांच के लिए सीबीआई को आदेश हुए और सुपरेटक सहित एनसीआर के बिल्डरों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने को कहा गया। बताते चलें कि सुपरटेक के पास छह शहरों में 21 परियोजनाएं थी जिसमें 19 बैंकों से करार कर आवास खरीददारों से धोखाधड़ी की गई। परिणामस्वरूप सुपरटेक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए और एनसीआर के बिल्डरों के खिलाफ प्रारंभिक जांच करने के निद्रेश दिए गए। बताते हैं कि आपस में इनकी मिलीभगत से अकेले सुपरटेक को 5,1757 का मामला सामने आया है तो सबप्रेशन योजना का गडबड़झाला भी खुल रहा है। बताते हैं कि बैंकों ने बिना परियोजना पूरी हुए ही 70 प्रतिशत लोन बिल्डरों को दे दिए। 1200 से अधिक खरीददार कोर्ट पहुंचे।
एक खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि बिल्डरों और बैंकों के बीच गठजोड़ की जांच जरूरी है। कोर्ट ने सीबीआई को सुपरटेक लिमिटेड के एनसीआर (नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुरुग्राम समेत अन्य जगहों पर) में चल रहे प्रोजेक्ट्स की जांच करने का आदेश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष हजारों फ्लैट खरीदने वालों की याचिकाएं आईं थीं। जिसमें आरोप लगाया कि, उन्होंने नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुरुग्राम जैसे इलाकों मेंसुपरटेक और अन्य बिल्डरों के प्रोजेक्ट्स में फ्लैट बुक कराए थे। बुकिंग सबवेंशन स्कीम के तहत की गई थी, जिसमें बैंक बिल्डर को 60-70 प्रतिशत लोन की रकम सीधे दे देते थे। लेकिन फ्लैट समय पर नहीं बने और अब बैंक उनसे ईएमआई वसूल रहे हैं, जबकि उन्हें अभी तक फ्लैट का कब्जा नहीं मिला है।
मामले में शीर्ष न्यायालय ने इसे अशुद्ध गठजोड़ करार दिया और कहा कि यह आम लोगों को धोखा देने का मामला है। सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने सीबीआई को निर्देश दिया कि- सुपरटेक प्रोजेक्ट्स में हो रही गड़बड़ियों की प्राथमिक जांच की जाए। वहीं इस मामले में यूपी और हरियाणा के डीजीपी को कहा गया कि वे सीबीआई को डीएसपी, इंस्पेक्टर और कॉन्स्टेबल की सूची दें ताकि विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जा सके।
किन अधिकारियों को सहयोग करने को कहा गया?
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कई विभागों को निर्देश दिया है कि वे इस जांच में सहयोग करें। इसमें नोएडा अथॉरिटी, ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी, केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय, इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) शामिल हैं। इन सभी को अपने वरिष्ठ अधिकारियों में से एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने को कहा गया है जो एसआईटी का सहयोग करेंगे। मामले में अब सीबीआई एक रोडमैप तैयार करेगी जिसमें यह बताया जाएगा कि बिल्डर-बैंक गठजोड़ कैसे काम करता था? और किस तरह से बैंकों ने बिना गारंटी के बिल्डरों को पैसे दिए? जिसमें हजारों खरीदारों को कैसे ठगा गया?
अब देखना यह है कि हरियाणा उत्तर प्रदेश के पुलिस अधिकारी जांच कर कितने दोषी बैंक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं। मेरा मानना है कि अगर डीजीपी ने एसआईटी गठित कर उन्हें ईमानदारी से जांच करने में सफलता प्राप्त की तो कितने ही बिल्डर बैंक अधिकारी, आवास विकास, विकास प्राधिकरण, नगर निगमों के अफसरों को जेल जाने से कोई नहीं बचा सकता। क्यांेकि गडबड़झाला इनकी मिलीभगत से इस स्तर पर हो रहा है कि अगर यह खुलकर सामने आ गया तो बैंकों के अरबों रूपये के घोटाले खुलेंगे संबंधित विभागों के अधिकारियों की मिलीभगत से बिल्डरों को जो फायदा हो रहा है उसके खुलने पर प्रदेश सरकार को कई अरब रूपये का राजस्व मिलेगा और कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की रवानगी होना भी तय है। प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत व जस्टिस की पीठ ने न्यायमित्र अधिवक्ता राजीव जैन द्वारा उठाए गए इस मुददे पर लिए निर्णय के बाद आप अपने स्तर पर और रिजर्व बैंक से आग्रह कर जो बैंक कच्ची कॉलोनियों और अवैध निर्माणों को लोन देकर इन्हें घपला करने में प्रोत्साहित कर रहे हैं उनके खिलाफ जांच शुरू करा दी गई तो नियम बिरूद्ध लोन देने वाले कितने ही बैंकों के लाइसेंस हो सकते हैं निरस्त। मुझे लगता है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट का निर्णय यूपी सरकार प्रदेश के नागरिकों के लिए बड़ा हितकारी होगा। जो यह धोखाधड़ी कर आम आदमी की कमाई को बिल्डरों की मिलीभगत से ठगी की जा रही है उसमें भी रोकथाम होगी। इसलिए मेरा मानना है कि सरकार जांच अधिकारियोें को पूरी गंभीरता से समय सीमा में जांच रिपोर्ट देेने के लिए निर्देशित करें जिससे बिल्डर और बैंक कर्मियों में जो एक ग्रुप बन गया है वो किसी भी जांच को प्रभावित ना कर पाए।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
बिल्डर और बैंकों की सांठगांठ पर सीबीआई की जांच! आवास विकास, विकास प्राधिकरण, नगर निगम के अधिकारी, बिल्डर और बैंककर्मी जा सकते हैं जेल, कच्ची कॉलोनियों को लोन देने वाले बैंक कर्मियों पर हो कार्रवाई
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