इजरायल व ईरान के बीच जारी युद्ध के परिणाम क्या होंगे यह तो समय ही बताएगा कि कौन भारी रहेगा। मगर फिलहाल अमेरिका ने खबरों के अनुसार अचानक इजराइल के दबाव में आकर जो ईरान के परमाणु संयंत्रों पर हमले किए हैं वो मीडिया की सुर्खिंयां और हर जगह चर्चा का विषय बने हुए हैं। इस हमले में ईरान के परमाणु अडडों के नष्ट होने के बाद भी तेहरान ने प्रतिशोध का प्रण लिया है। जानकारों का कहना है कि वादा तो अमेरिका को विदेशी मूर्खतापूर्ण हमलों से बचाने का था फिर ट्रंप ने ईरान पर हमले का विजन क्यों चुना। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटिनो गुटारेंस का कहना है कि वह ईरान के परमाणु केंद्रों पर अमेरिका के हमलों से बेहद चिंतित है। उनका कहना है कि इस बात का जोखिम है कि यह संघर्ष तेजी से नियंत्रण से बाहर हो सकता है जो नागरिकों और क्षेत्रांे के लिए विनाशकारी हो सकता है। हम अराजकता के चक्र से बचे। ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराजकी ने एक्स पर पोस्ट में चेतावनी दी कि अमेरिकी हमलों के दूरगामी परिणाम होंगे। तेहरान के पास जवाबी कार्रवाई करने के लिए सभी विकल्प हैं। दूसरी तरफ खबरों से यह भी पता चल रहा है कि रूस के पूर्व राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव ने एक्स पर पोस्ट में कहा कि कई देश ईरान को परमाणु हथियारों की आपूर्ति के लिए तैयार हैं तो दूसरी ओर ईरान पर अमेरिकी हमले के बाद खाड़ी देशों में हाईअलर्ट होने की सूचना है। बता दें कि पूर्व में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित करने वाले पाकिस्तान द्वारा भी ईरान पर अमेरिका के हमले की निंदा की गई है। क्योंकि ऐसा लगता है कि ट्रंप की सिफारिश कर वैसे ही परेशान पाकिस्तानी सरकार और घिर गई है। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका के राष्ट्रपति के साथ बातचीत नहींे करने की बात कह रहे हैं। जो भी हो अपने देश में ईरान पर हमले को लेकर एआईएमआईएम प्रमुख असदुदीन औवेशी ने कहा कि ईरान पर अमेरिका हमला अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है। लोकसभा सदस्य का कहना है कि अमेरिकी बमबारी के बाद मध्य पूर्व के अरब देश इजराइल की ब्लैकमेलिंग अध्यापत्य के कारण परमाणु बम बनाने की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति से बात कर तनाव कम करने का आहवान किया। इजराइल और ईरान को लेकर कई देश सबकुछ जानते हुए भी शायद खुलकर बोलने से बचेंगे। क्योंकि सबके अपने अपने हित हैं। और दो महान शक्तियांें के आमने सामने आने की संभावनाएं भी बनी हुई है। जो भी हो अपने दूसरे कार्यकाल में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई मुददों को लेकर जो मीडिया की सुर्खियों में सामने आते हैं विवादों में चल रहे हैं। ऐसे में ईरान पर अमेरिकी हमलों से भले ही कोई कुछ भी कहे मगर उनको जो नोबेल पुरस्कार का मुददा है वो घपले में आ सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि इस पुरस्कार के लिए उन्हें नामित करने वाला पाकिस्तान की सरकार को दोबारा ना सोचना पड़े क्योंकि जिस प्रकार से हमले को लेकर उसने निंदा की है वो महत्वपूर्ण है। वैसे तो ग्रामीण कहावत हमेशा सुनने को मिलती रही है समर्थ को ना देाष गुसाई और गरीब की जोरू सबकी भाभी मगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो राजनीतिक समीकरण हैं उसमें कहीं ना कहीं अमेरिका को भी ईरान पर हमला और तेज करने से पहले सोचने की आवश्यकता है। क्योंकि जब देश में कई प्रकार की समस्याएं जैसे वायु प्रदूषण पेयजल का अभाव कई प्रकार की अन्य परेशानियां विश्व के सामने खड़ी हैं ऐेसे में अगर किसी वजह से परमाणु बम बनाने की होड़ लग गई और जिन पर है वो इनका उपयोग करने लगे तो वो किसी भी रूप में मानवहित में नहीं है। मेरा मानना है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियों गुटारेस को सभी राष्ट्र प्रमुखों से संपर्क कर इस बारे में चर्चा और आवश्यकता हो तो किसी देश में सभी राष्ट्र प्रमुखों को बुलाकर चर्चा की जाए क्योंकि जैसा नजर आ रहा है उससे यह साफ है कि इस समय युद्ध किसी के भी हित में नहीं है। अगर यह जारी रहा तो उसके परिणाम सही नहीं होंगे। क्योंकि कई बार पूर्व में देखने को मिला है कि बड़े देशों के शक्तिशाली बेड़े भी असफल हुए हैं। और इस मामले में पूर्व पीएम स्व. इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान बांग्लादेश में जो हुआ था उसे देखा जा सकता है। जहां तक भारत की बात है तो हम हमेशा ही शांतिप्रिय रहे हैं और हमारी सरकार और नागरिकों का लोकतंत्र में विश्वास है और जब कोई कठिनाई आती हे तो सब एक साथ खड़े होते हैं। ऐसा पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा इंदिरा गांधी को दी गई दुर्गा की उपाधि और पहलगाम घटना के बाद हुए मामलों केा देखा जा सकता है। जहां तक नोबेल पुरस्कार की बात है तो वो शांति के लिए दिया जाता है। ऐसे में उसके निर्णायकों को कई बार सोचना होगा।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
क्या शांति के लिये मिलने वाला नोबेल पुरस्कार ईरान पर हमले के बाद पाकिस्तान द्वारा की गई निंदा के बाद भी मिल सकता है
0
Share.