asd कांग्रेस और आप दोनों को समझना होगा, विपक्ष को ले बैठेगी दिल्ली चुनाव में उसकी फूट

कांग्रेस और आप दोनों को समझना होगा, विपक्ष को ले बैठेगी दिल्ली चुनाव में उसकी फूट

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आगामी पांच फरवरी को देश की राजधानी वाले प्रदेश दिल्ली विधानसभा के होने वाले चुनावों में इस बार भाजपा हर वो प्रयास कर रही है जिससे उसे सत्ता प्राप्ति हो जाए। प्रदेश के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल भी ऐड़ी से चोटी तक का जोर लगा रहे हैं। जीत का परचम कौन फहराएगा यह तो परिणाम आने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा लेकिन इस बार कांग्रेस भी पूरी ताकत के साथ चुनाव मैदान में उतरी है। उसका प्रयास है कि हर संभव उसे सफलता मिले। बसपा भी दावा कर चुकी है कि चुनाव लड़ेगी। ऐेसे में एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप किया जाना और अपने कार्यों का बखान करने में कोई पीछे नहीं है। वर्तमान में चुनाव लड़ रहे नेताओं का उसमें योगदान हो या ना हो लेकिन पूर्व नेताओं के कार्यों को अपना गिनाने में कोई कोताही नहीं कर रहे हैं।
वैसे तो दिल्ली चुनाव आप पार्टी की स्थिति काफी मजबूत बताते हैं लेकिन भाजपा को भी कमजोर नहीं कह सकते। क्योंकि एक तो वो पूरी ताकत इस बार लगा रही है दूसरे लोकसभा चुनाव संगठित होकर लड़े कुछ दल टीएमसी सपा आदि आप के साथ खड़ी है और कांग्रेस विपक्ष में भी अकेले नजर आ रही है। इसलिए चुनाव समीक्षकों के अनुसार यहां वोटों का बंटना अनिवार्य है ओैर ऐसा हुआ तो भाजपा की स्थिति मजबूत कही जा सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है कि विपक्ष एकजुट है। वह ऐसा क्यों कह रहे हैं यह तो वो ही जान सकते हैं मगर जो सामने दिखाई दे रहा है उससे यह कहा जा सकता है कि विपक्षी दलों की फूट अगर नामांकन समाप्ति तक ऐसे ही चलती रही और विपक्ष कांग्रेस या आप के समर्थन में एकजुट होकर खड़ा नहीं हुआ तो इन संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता कि विपक्ष के हाथों से एक प्रदेश की सरकार और निकल जाएगी।
राजनीति में कहते हैं कि ना तो कोई अपना होता है और कब कौन पलटी खा जाए यह नहीं कहा जा सकता और अब सिद्धांतविहिन राजनीति के माहौल में यह बात और पक्की हो जाती हैं मुझे लगता है कि केंद्र व प्रदेश सरकारों में सत्ता और विपक्ष मजबूत होने चाहिए तभी सरकार निरंकुश होने से बचेगी। नौकरशाहों पर अंकुश बना रहेगा। विपक्ष को अपना मजबूत वजूद कायम करने हेतु हर संभव प्रयास कर आप और कांग्रेस का गठबंधन कराकर अपना समर्थन देकर अपनी स्थिति को मजबूत रखना चाहिए। क्योंकि अगर बीते लोकसभा चुनाव में सभी ने एकजुट होकर चुनाव ना लड़ा होता तो राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता ना होते। यह भी सही है कि कांग्रेस कुछ वर्षो। से सत्ता में ना आई हो लेकिन उसके कार्यकर्ता देश के सभी इलाकों में मजबूत हैं और वो दूसरी नंबर की पार्टी है। इसलिए विपक्ष के नेताओं को अपने हितों और परिस्थितियों का ज्ञान रखते हुए ऐसी परिस्थितियां बनानी चाहिए जो धमक और सरकार बनी रहे। यह किसी को नहीं भूलना चाहिए कि दबाव की राजनीति से कांग्रेस कमजोर होती है तो और विपक्षी दल भी नहीं बचेंगी। इस पार्टी की मजबूती में ही विपक्ष का अस्सित्व समाया हुआ है। राहुल गांधी जुझारू और जमीनी नेता है। कुछ सालों में उन्हें और प्रियंका गांधी को हर जमीनी ज्ञान है। अब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में खरगे अच्छा निर्णय ले रहे हैं। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए एकजुट होकर मैदान में उतरना ही विपक्ष के लिए लाभदायक होगा वरना ना माया मिली ना राम जैसी स्थिति इंडिया गंठबंधन के नेताओं की होने से कोई नहीं रोक सकता।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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