जिस प्रकार से देश में बीमारियां बढ़ रही हैं। इलाज महंगा होता जा रहा है और कैंसर आदि के मरीजों को यह पता चलते ही वो इस बीमारी से पीड़ित हैं जो कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है उनसे अब लगभग छुटकारा मिल सकता है। क्योंकि नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद आईसीएमआर ने कैंसर चिकित्सा के क्षेत्र में बड़ी सफलता प्राप्त करते हुए घोषणा की है कि 80 फीसदी मरीजों में 15 माह बाद भी कैंसर सक्रिय नहीं हो पाया। आईसीएमआर के अनुसार यह ट्रायल दिखाता है कि कैंसर का इलाज सस्ता और तेज कैसे किया जा सकता है। अगर यह बात सही हो जाती है कि भारत अब बॉयो थेरैपी विकसित करने में अग्रणी बन रहा जो वैश्विक स्तर पर भी अहम है। यह सफलता सीएमसी वेल्लोर के एक क्लीनिकल ट्रायल में सफल हुई जिसे वेलकारटी नाम दिया है। इस परीक्षण के परिणाम मोलिक्यूलर थैरेपी ऑकॉलोजी के जर्नल में भी प्रकाशित हुई है। भारत को इस क्षेत्र में मिली इस कामयाबी से नौ दिन में रक्त कैंसर खत्म हो सकता है। बताते हैं कि पहली बार सेल्स को अस्पताल में बनाकर मरीजों को दिया जिससे 80 प्रतिशत को 15 माह बाद भी कैंसर नहीं मिला। बताते हैं कि वैश्विक स्तर पर पूर्व में 40 दिन का समय लगता था और अब इससे 90 फीसदी इलाज का खर्च भी कम होगा।
एक खबर के अनुसार भारत के डॉक्टरों ने महज नौ दिन के भीतर रक्त कैंसर को खत्म कर दिया। साथ ही पहली बार कार-टी सेल्स को अस्पताल में ही बनाकर मरीजों को दिया गया। नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कैंसर चिकित्सा में बड़ी कामयाबी बताते हुए घोषणा की है कि 80 फीसदी मरीजों में 15 माह बाद भी कैंसर सक्रिय नहीं पाया गया।
आईसीएमआर के अनुसार यह ट्रायल दिखाता है कि कैंसर का इलाज सस्ता, तेज, और मरीजों के करीब कैसे किया जा सकता है। भारत अब स्वदेशी बायो थेरेपी को विकसित करने में अग्रणी बन रहा है, जो वैश्विक स्तर पर भी अहम है। यह सफलता आईसीएमआर और सीएमसी वेल्लोर के एक क्लिनिकल ट्रायल में हासिल हुई है, जिसे वेलकारटी नाम दिया है। इस परीक्षण के परिणाम मोलिक्यूलर थेरेपी ऑन्कोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
जर्नल में प्रकाशित विवरणों के अनुसार डॉक्टरों ने कार-टी थेरेपी के जरिये एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल) और लार्ज बी-सेल लिम्फोमा (एलबीसीएल) के मरीजों पर परीक्षण किया। यह दोनों ही रक्त कैंसर के प्रकार हैं। इस प्रक्रिया में मरीज के अपने टी-सेल्स (प्रतिरक्षा कोशिकाओं) को कैंसर से लड़ने के लिए तैयार किया। हालांकि भारत में कार-टी थेरेपी का यह पहला अध्ययन नहीं है। इम्यूनो एक्ट और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल मुंबई ने मिलकर पहली स्वदेशी थेरेपी विकसित की जिसे 2023 में केंद्र से अनुमति भी मिली है।
पहले ट्रायल में ऐसे मिले परिणाम
आईसीएमआर ने ट्रायल परिणाम जारी करते हुए कहा कि एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल) कैंसर से प्रभावित सभी मरीज ठीक हो गए, जबकि लार्ज बी-सेल लिम्फोमा (एलबीसीएल) रोगियों में से 50 प्रतिशत रोग मुक्त हुए। दोनों तरह के मरीजों पर लंबे समय तक निगरानी रखी गई जिसमें 80 प्रतिशत मरीज 15 महीने बाद भी रोग-मुक्त रहे।
वैश्विक स्तर पर 40 दिन का रिकॉर्ड
सीएमसी वेल्लोर के डॉक्टरों ने कहा कि यह प्रक्रिया अस्पताल में ही स्वचालित मशीनों के जरिये की गई जिसमें करीब नौ दिन का समय लगा। जबकि वैश्विक स्तर पर कार-टी थेरेपी में कम से कम पांच सप्ताह यानी 40 दिन का समय लगता है। भारतीय परीक्षण में मरीज की ताजा कोशिकाओं का उपयोग किया गया, जिससे उनकी तेजी से रिकवरी हुई। उन्होंने कहा कि भारत ने 90 फीसदी से भी अधिक सस्ती प्रक्रिया को जन्म दिया है। भारत में जहां कैंसर का इलाज महंगा है और ज्यादातर लोगों के पास बीमा नहीं है। यह थेरेपी लागत को 90 प्रतिशत तक कम करती है। वैश्विक स्तर पर कार-टी थेरेपी की लागत 3,80,000-5,26,000 अमेरिकी डॉलर (लगभग 3-4 करोड़ रुपये) है, लेकिन वेलकारटी मॉडल ने अब इसे बहुत कम कीमत पर उपलब्ध कराने का रास्ता खोल दिया है। ईसीएमआर का कहना है कि भारत में हर साल 50 हजार नए ल्यूकेमिया मरीज सामने आ रहे हैं।
सफलता के क्या क्या फायदे होंगे और क्या अभी और करना पड़ेगा यह तो चिकित्सक ही जानते हैं लेकिन फिलहाल यह कहा जा सकता है कि बीमारियों से लड़ने और आम आदमी को उसके खर्च से बचाने और कम समय में ठीक करने के खर्च में जो डॉक्टरों ने सफलता पाई है वो बहुत बड़ी उपलब्धि है। मुझे लगता है कि सरकार और देश के बड़े उद्योगपतियों को जनहित में इस काम में लगे डॉक्टरों और उनके संस्थानों को भरपूर मदद और सम्मान देना चाहिए जिससे अन्य इससे प्रेरणा लेकर जनहित में ऐसे अच्छे काम सब क्षेत्रों में करते रहे।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
नौ दिन में रक्त कैंसर का इलाज, डॉक्टर है बधाई के पात्र, सरकार करे मदद और सम्मान
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