दिल्ली विधानसभा चुनाव में लगभग स्थिति साफ हो गई है। अब 27 साल बाद दिल्ली में भाजपा की सरकार होगी। मुख्यमंत्री कौन बनेगा वो एक अलग बात है। आप पार्टी के हारने का कुछ लोगों को अफसोस होगा तो कितनों को भाजपा के जीतने की खुशी। मगर एक बात कही जा सकती है कि केंद्र और प्रदेश में एक पार्टी की सरकार होगी इसलिए विकास कार्य और जनसमस्याओं का समाधान तेज हो सकता है। दिल्ली में भाजपा की सरकार का यह मौका जहां तक मुझे लगता है भाजपा की लोकप्रियता से ज्यादा विपक्ष की फूट तथा कांग्रेस व आप नेताओं द्वारा एक दूसरे पर लगाए गए आरोपों का परिणाम ही इसे कह सकते हैं। मगर एक बात विश्वास से कही जा सकती है कि दुनियाभर में अत्यंत लोकप्रियता प्राप्त कर रहे पीएम मोदी द्वारा चुनावी अभियान के दौरान यह कहा गया था कि मैं खुद दिल्ली को समय दुंगा। अगर ऐसा होता है तो दिल्ली भी अन्य प्रदेशों की तरह स्वतंत्र प्रदेश का दर्जा प्राप्त कर सकती है। बदलाव प्रकृति का नियम है। चाहे वह राजनीति में हो या सामाजिक व्यवस्था में। भाजपा जीत की खुशियां मना रही है। अब यह देखना है कि अगले पांच साल तक ऐसा कौन अन्ना हजारे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन लेकर आएगा जिसके साथ लगकर अरविंद केजरीवाल सत्ता में लौटने का प्रयास करेंगे या विरोधी दलों को कुछ सीख मिलेगी और वो अपना अहम छोड़ भविष्य में ऐसे काम नहीं करेंगे जो उनके समर्थकों को अफसोस हो। जहां तक मिल्कीपुर के उपचुनाव का मुददा है तो यही कह सकते हैं कि विपक्ष एकजुट होता तो चुनाव परिणाम कुछ और भी हो सकते थे। फिलहाल तो यह आशा की जा सकती है कि लगभग तीन दशक बाद पूर्ण रूप से सरकार में आई भाजपा अपने वादों को पूरा करेगी। और केजरीवाल आप की पार्टी एक मजबूत विपक्षी नेता देकर अपनी भूमिका निभाकर सत्ता को निरंकुश नहीं होने देंगे।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
दिल्ली में भाजपा सरकार, केजरीवाल की नैया पार लगाने हेतु अब कौन बनेगा अन्ना
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