asd बड़ा सवाल! लोकसभा और विधानसभा का चुनाव भी धनवान लड़ेंगे, राज्यसभा और विधानपरिषद में पैसे वाले जाएंगे तो आम आदमी को कब मिलेगा नेतृत्व का मौका

बड़ा सवाल! लोकसभा और विधानसभा का चुनाव भी धनवान लड़ेंगे, राज्यसभा और विधानपरिषद में पैसे वाले जाएंगे तो आम आदमी को कब मिलेगा नेतृत्व का मौका

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सभी राजनीतिक दलों के नेता घर की बैठक हो या गांव की चौपाल अथवा शहर का चौराहा सब जगह गरीबों को बढ़ावा देने की बात तो खूब करते हैं लेकिन जब कुछ देने और उन्हें आगे लाने की बात होती है तो समय पड़ने पर ज्यादातर उन्हें भूल जाते हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनावों में धन संपन्न लोगों को टिकट देने की वजह यह बताई जा सकती है कि निर्वाचन आयोग के प्रतिबंध के बावजूद चुनाव में काफी धन खर्च होता है जो गरीब आदमी नहीं जुटा पाता है लेकिन विधानपरिषद और राज्यसभा दो ऐसे स्थान है जिनमें चुनकर विधायक पार्टी के अपने उम्मीदवारों को भेजते हैं इसलिए यह कह सकते हैं कि यहां पैसे का इतना महत्व नहीं होता। वर्तमान में देशभर में 27 फरवरी को राज्यसभा के चुनाव होने है। 15 तक नामांकन किया जाना है। लगभग सभी दलों के द्वारा अपने अपने उम्मीदवार घोषित किए जा चुके हैं अगर कोई फेरबदल नहीं होता है तो जिस पार्टी ने जिसका नाम घोषित कर दिया उसका जीतकर जाना लगभग पक्का समझा जाता है। फिलहाल हम बात समाजवादी पार्टी की करें तो मुलायम सिंह यादव जब राजनीति में आए तो बताते हैं कि उनके गुरू ने चुनाव प्रचार हेतु उन्हें साईकिल खरीदकर दी थी। यह बात यहां इसलिए कही जा रही है कि सपा का गठन किन परिस्थितियों में हुआ और वो आज यूपी में तो सबसे बड़ा विपक्षी दल है और कई बार सरकार भी बना चुकी है। एक राज्यसभा सदस्य चुनने के लिए बताते हैं कि 37 विधायकों के वोटों के आवश्यकता होती है। सपा के पास 108 वोट हैं जिस हिसाब से उसे तीन वोट और चाहिए क्योंकि कांग्रेस के दो वोट भी उन्हें मिल सकते हैं। ऐसे में सिर्फ एक वोट की आवश्यकता पड़ती है कुल मिलाकर तीन वोट जुटाने के लिए अगर किसी एक धनवान को टिकट दिया जाता तो यह समझा जा सकता था कि तीन वोट जुटाना एक बड़ी बात है इस चुनाव में क्योंकि हर उम्मीदवार जीतने के लिए धरती आसमान एक करने की बात करता है लेकिन सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी तीनों टिकट करोड़पति व अरबपतियों को दे दिए। तो भला जो आम मतदाता सपा का है और जो नेता धूप बारिश ठंड में पार्टी के लिए जी जान लड़ाते हैं उन्हें मौका कैसे मिलेगा। इस बात को सोचने से अब कोई बच नहीं सकता। स्मरण रहे कि यूपी के पूर्व प्रमुख सचिव आलोक रंजन को सपा ने उम्मीदवार बनाया। इनके पास 12.5 करोड़ की संपत्ति है। तो जया बच्चन 246 करोड़ की संपत्ति की मालकिन हैं और मेगास्टार अमिताभ बच्चन को मिला ले तो दोनों के पास एक हजार करोड़ की संपत्ति है। इन्हें पांचवी बार सपा राज्यसभा में भेज रही है। तीसरे पार्टी नेता रामजीलाल सुमन कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके है। घोषित संपत्ति 222 करोड़ बताई जा रही है। जिससे पता चलता है कि सपा ने भी करोड़पतियों व अरबपतियों को टिकट देने में कोई गुरेज नहीं किया है। मजे की बात है कि यह सब सुख सुविधा भोगने वाले प्राणी है जिनके चारों तरफ संपन्नता ही संपन्नता है। आलोक रंजन बड़े नौकरशाह रहे हैं। तो जया बच्चन पूरे देश में जानी जाती हैं और रामजीलाल सुमन भी धन संपन्न हैं अगर इनमें से कोई दो उम्मीदवार गरीबी की श्रेणी में आने वाले सपा उतारती तो एक बहुत अच्छा संदेश नागरिकों में जाता कि देश की बड़ी संख्या वाले मतदाताओं में से किसी एक को सपा ने जरूरतमंदों का प्रतिनिधित्व करने हेतु राज्यसभा में भेजने का सराहनीय निर्णय लिया।
राज्यसभा और विधानपरिषद में किसे चुनाव लड़ाना है यह पार्टी मुखियाओं का अपना निर्णय होता है। लेकिन वक्त के अनुसार अब यह भी सोचना होगा कि जिन लोगों के वोटों से यह जीतकर बड़े सदनों में जाते हैं। उस वर्ग को आखिर कब तक नजरअंदाज किया जाएगा। सरकार ने राजा महाराजा और बादशाह शाही समाप्त कर आम आदमी का राज और रामराज्य की जो परिकल्पना की थी वो तो ऐसे निर्णयों से पूरी होती नहीं लगती जिस प्रकार से सभी दलों ने इस उच्च सदन के लिए टिकट बांटे हैं उससे यह किवंदती मजबूत होती है कि एक गरीब महिला अपने बेटे के साथ जा रही थी उधर से राजा का काफिला जा रहा था तो बेटे ने पूछा कि मां यह कौन हैं तो मां ने कहा कि यह राजा है। इनके बाद कौन राजा बनेगा तो मां ने कहा कि इनका बेटा। फिर बेटे ने पूछा कि उनके बाद तो मां ने कहा उसका बेटा लेकिन तू नहीं बनेगा।
लेकिन लोकतंत्र की स्थापना जब देश आजाद होने के बाद हुई तब यह लगा था कि गरीब आदमी को भी विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। अपनी काबिलियत पर तो वह बढ़ रहे हैं मगर जिस प्रकार राजनीतिक दल बड़े लोगों को आगे बढ़ा रहे हैं उससे लगता है कि पहले तलवार के दम पर राजा बनते थे और अब धन के दम पर आधुनिक राजा चुने जा रहे हैं। सवाल यह उठता है कि आम आदमी को प्रतिनिधित्व करने का मौका कौन और कब देगा।
मेरा तो मानना है कि राजनीति में एक बार जो व्यक्ति किसी भी दल से जीतकर विधायक एमपी एमएलसी या राज्यसभा सदस्य बन जाए तो उसे दोबारा मौका न देकर नए व्यक्ति को मौका देना चाहिए उससे ही लोकतंत्र मजबूत होगा। आलोक रंजन जैसे बड़े नौकरशाहों को चुनाव लड़ाने से नहीं।

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