सरकार श्रमिकों के संदर्भ में सोच रही है यह अच्छी बात है। पिछले दिनों असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए वेतन निर्धारण और कुछ सुविधाएं देने की बात की गई थी। जो वाकई में सराहनीय थी। अब ईपीएफओ 15 से 25 हजार रूपये या उससे अधिक करने पर विचार किया जा रहा है। यह भी ठीक है लेकिन निजी क्षेत्रों में मूल वेतन बढ़ाने की तैयारी हो सकता है गलत हो लेकिन मुझे लगता है कि उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए और छोटे व्यापरियों का स्तर सुधारने की योजना पर ब्रेक लग सकता है।ै अभी तक जहां तक नजर आता है। कुछ बड़े उद्योगों की बात छोड़ दे तो जितने भी लघु व कुटीर उद्योग लगाकर युवा प्रयास कर रहे हैं मूल वेतन की सीमा बढ़ाने से उनके रोजगार स्थापित होने से पहले ही बंद हो सकते हैं क्योंकि सरकार की ऐसे मामलों में अपनाई गई नीति से अपना रोजगार करने का प्रोत्साहन जो पीएम द्वारा दिया जा रहा है वो बीच में रूक सकता है। अभी ज्यादातर उद्योगों के हालत ऐसी भी नहीं है कि वो वेतन दे पाए। मेरा मानना है कि सरकार पहले यह देखें कि जो उद्योग उसके संरक्षण में चल रहे हैं अथवा सरकार से सहायता प्राप्त है उनमें मुनाफे की क्या स्थिति है और अगर लगता कि सरकारी संरक्षण में चल रहे उद्योग मुनाफे में है और वह अपना वेतन बिना सहायता के दे रहे हैं तो इस क्षेत्र के बारे में सोचा जाए। क्योंकि जितना जानकारों से पता चलता है उसके अनुसार सरकारी संरक्षण में चल रहे ज्यादा उद्योग घाटे का ही सौदा बताए जाते हैं।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
निजी क्षेत्रों में मूल वेतन बढ़ोत्तरी से पहले सरकार के संरक्षण में चल रहे उद्योगों की हो समीक्षा
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