हर राजनीतिक दल के नेता कार्यकर्ता अपने नेताओं की कृपा प्राप्त करने के लिए अपना चेहरा चमकाने और उनके जिंदाबाद के नारे लगाने में पीछे नहीं रहना चाहते। सत्ताधारी दल के नेता लाभ के पदों पर बैठकर किसी को लाभ पहुंचाने की स्थिति में हो तो उनका महिमामंडन करने का कोई मौका नहीं चूकते है। अब तो यह स्थिति धार्मिक स्थलों तक पहुंचने लगती है क्योंकि कहीं नेताओं के साथ अपने फोटो लगवाकर नेता खुश हो रहे हैं तो कहीं अपने कृपा पात्रों को रिसीवर बनवाकर उपकृत करने में लगे हैं।
इसे वर्तमान परिस्थितियों में जो कार्रवाई खिलाफ बोलने वालों पर होती है उसका डर समझे तो लोग बोलने से बच रहे हैं लेकिन अदालत इस बारे में जो निर्णय ले रही है उसे देखकर कह सकते हैं कि धार्मिक स्थलों का गौरव और इससे जुड़े पुजारियों का भविष्य तथा भक्तों का सम्मान सुरक्षित रखने के लिए सही निर्णय ले पा रहे हैं। इसके उदाहरण के रूप में हम केरल के एक मंदिर में उसके रखरखाव में लगे लोगों द्वारा नेताओं के लगाए बोर्ड तथा मथुरा के मंदिरों में रिसीवर तैनात किए जाने और उसके खिलाफ अदालत के फैसले को देखा जा सकता है।
एक खबर के अनुसार मथुरा में मुकदमेबाजी में फंसे कई प्रसिद्ध मंदिरों का प्रबंधन बतौर कोर्ट रिसीवर किसी वकील को सौंपे जाने की व्यवस्था को गंभीर बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है। एक खबर के अनुसार दरअसल, कई बार ऐसे आरोप लगे हैं कि वकील इन मंदिरों के प्रबंधन पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए मुकदमों को लंबा खींचते रहते हैं। मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन और बरसाना के मंदिरों में वकीलों को रिसीवर बनाए जाने पर शीर्ष कोर्ट ने मथुरा के जिला न्यायाधीश को 19 दिसंबर तक रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने इस रिपोर्ट में उन मंदिरों की सूची देने के लिए कहा, जिनके मुकदमे लंबित हैं और जहां वकील रिसीवर नियुक्त हैं। यह भी जानना चाहा है कि ऐसे मुकदमे कब से लंबित हैं और मौजूदा स्थिति क्या है। अदालत ने रिसीवर के रूप में नियुक्त व्यक्तियों, विशेष रूप से अधिवक्ताओं के नाम और स्थिति बताने के लिए कहा है। यह भी जानना चाहा है कि रिसीवरों को दिया जाने वाला पारिश्रमिक क्या है?
पीठ ने कहा, न्यायालयों को न्याय का मंदिर माना जाता है, इनका ऐसे लोगों के समूह के लाभ के लिए उपयोग या दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिनका मुकदमों को लंबा खींचने में निहित स्वार्थ हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट में मथुरा के मंदिरों में रिसीवरों के रूप में वकीलों की नियुक्ति के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 27 अगस्त के आदेश को ईश्वर चंद शर्मा की ओर से चुनौती दी गई है। शर्मा की ओर से पेश वकील अविकल प्रताप सिंह की दलीलों को सुनने के बाद शीर्ष कोर्ट ने मामले में कई प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया और सुनवाई की अगली तारीख 19 दिसंबर तय कर दी।
हाईकोर्ट ने कहा था, दीवानी कार्यवाही को समाप्त कराने का कोई प्रयास नहीं किया जाता है क्योंकि मंदिर प्रशासन का पूरा नियंत्रण रिसीवर के हाथों में होता है। अब अधिकतर मुकदमे मंदिरों के प्रबंधन और रिसीवर की नियुक्ति के संबंध में हैं। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि एक वकील किसी मंदिर, विशेषकर वृंदावन और गोवर्धन के प्रशासन और प्रबंधन के लिए पर्याप्त समय नहीं दे सकता। मंदिर प्रबंधन में कौशल के साथ-साथ पूर्ण समर्पण और निष्ठा की आवश्यकता होती है, लेकिन यह मथुरा शहर में प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया है।
27 अगस्त को आदेश में इलाबाहाद हाईकोर्ट ने कहा था, उत्तर प्रदेश, विशेष रूप से मथुरा जिले में, मंदिरों में ट्रस्टों के प्रशासन के संबंध में मामलों की भयावह स्थिति है। 197 मंदिरों में से वृंदावन, गोवर्धन, बलदेव, गोकुल, बरसाना, मठ आदि में स्थित मंदिरों के संबंध में दीवानी मुकदमे लंबित हैं। ये मुकदमेबाजी 1923 से लेकर 2024 तक यानी 100 साल तक पुराने हैं। प्रसिद्ध मंदिरों में मथुरा न्यायालय के वकीलों को रिसीवर नियुक्त किया गया है। रिसीवर का हित मुकदमे को लंबित रखने में है।
मुख्यमंत्री, विधायक के फ्लैक्स
दूसरी ओर एक मामले में केरल हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार और त्रावणकोर देवस्वओम बोर्ड (टीडीबी) की प्रशंसा या बधाई संदेश वाले फ्लेक्स बोर्ड मंदिरों में न लगाए जाएं। अदालत ने कहा कि श्रद्धालु मंदिरों में भगवान के दर्शन को आते हैं न कि मुख्यमंत्री, विधायक या बोर्ड सदस्यों के चेहरे देखने।
न्यायमूर्ति अनिल के. नरेंद्रन और न्यायमूर्ति मुरली कृष्णा एस. की पीठ ने यह फैसला राज्य के अलप्पुझा जिले में चेरथला के निकट थुरवूर महाक्षेत्रम (मंदिर) में लगाए गए एक फ्लेक्स बोर्ड के खिलाफ शिकायत के आधार पर हाईकोर्ट द्वारा स्वयं शुरू की गई सुनवाई के दौरान दिया। पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, राज्य देवस्वओम मंत्री वी. एन. वासवन, टीडीबी अध्यक्ष और विधायक की तस्वीरों वाले फ्लेक्स बोर्ड में बधाई संदेश दिए गए हैं। इस घटना पर नाराजगी जताते हुए पीठ ने कहा कि इस तरह की गतिविधियों की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस गलतफहमी में न रहें कि आप (टीडीबी) मंदिरों के मालिक हैं। बोर्ड एक न्यासी है जो अपने अधीन मंदिरों का प्रबंधन करता है। अनावश्यक रूप से बंद कैदियों की रिहाई सुनिश्चित करें मद्रास हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल से यह सुनिश्चित करने को कहा कि जेलों में अनावश्यक रूप से बंद कैदियों की रिहाई की प्रक्रिया की औपचारिकताएं जल्द पूरी की जाएं। इस देखते हुए मंदिर समितियों के सदस्यों को किसी के महिमामंडन या लाभ पहुंचाने से बचना चाहिए।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
यूपी हो या केरल: मंदिरों में व्यक्तिगत लाभ की व्यवस्था ठीक नहीं, अदालत का निर्णय है समयानुकुल
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