asd न्यायालय के आदेश अनुसार महाराष्ट्र सरकार निर्वाचन आयोग के सहयोग से चार माह में संपन्न कराएं जनहित में स्थानीय निकाय चुनाव

न्यायालय के आदेश अनुसार महाराष्ट्र सरकार निर्वाचन आयोग के सहयोग से चार माह में संपन्न कराएं जनहित में स्थानीय निकाय चुनाव

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महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण विवाद से जुड़े स्थानीय निवासी मंगेश शंकर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शंकरनारायण द्वारा कहा गया कि जयंत कुमार बंथिया के नेतृत्व वाले आयोग ने स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया। वह भी यह पता लगाए बिना कि राजनीतिक रूप से पिछड़े हैं या नहीं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस पर चर्चा करते हुए आदेश पारित किया कि महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण का मुददा बस 2022 की आयोग की रिपोर्ट से पहले की तरह रहेगा। इनका कहना था कि स्थानीय निकाय चुनाव समय समय पर जमीनी स्तर पर लोकतंत्र के संवैधानिक जनादेश का सम्मान किया जाना चाहिए। पीठ ने सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि आपने ओबीसी के कुछ वर्गों की पहचान कर ली है। याचिकाकर्ताओं की दलील पर प्रतिकूल प्रभाव बिना चुनाव क्यों नहीं करा जा रहे। इस पर मेहता ने सहमति जताई की चुनाव रोके नहीं जाने चाहिए। इस दौरान यह भी टिप्पणी की गई कि नौकरशाह सभी पंचायतों और निगमों पर कब्जा जमाए बैठे हैं। इतना ही नहीं अधिकारी की कोई जवाबदेही नहीं है। इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया ठप हो गई है। एक वकील ने भी यह तर्क दिया कि बंथिया आयोग की रिपोर्ट के अनुसार चुनाव नहीं कराए जाने चाहिए। क्योंकि ओबीसी के लिए 34 हजार सीटें अनारक्षित कर दी गई हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति कोटिश्वर सिंह की पीठ ने देश में आरक्षण की तुलना रेल से करते हुए कहा कि जो लोग एक बार डिब्बे में चढ़ जाते हैं वो नहीं चाहते कि दूसरे लोग अंदर आए। यह टिप्पणी ओबीसी आरक्षण की विरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए की गई। अदालत का कहना था कि राजनीतिक पिछड़ापन सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन से अलग है। ओबीसी को राजनीतिक रूप से पिछड़ा नहीं माना जा सकता। चुनाव समय से होंगे या कोई और अड़ंगा अटकेगा यह तो समय अनुसार ही पता चलेगा। लेकिन फिलहाल अदालत की यह टिप्पणी अपने आप में महत्वपूर्ण है। और महाराष्ट्र सरकार को उच्च न्यायालय के निर्देश अनुसार चुनाव कराने चाहिए। क्योंकि जो समय सीमा इसके लिए निर्धारित की गई है उसके हिसाब से ही निर्वाचन आयोग निर्णय ले। यही समाज हित में कह सकते हैं। मुझे लगता है कि ऐसे मामलों में होने वाले मुकदमों और विवादों में जो समय और धन की बर्बादी होती है उसे रोकने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकारों को ऐसे निर्णय लेने चाहिए जिनसे विवाद खड़ा ना हो। और अगर देखा जाए तो अब हर कोई आरक्षण की मांग करने लगा है। पिछले दिनों सवर्णों के आरक्षण की मांग उठी। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार जातियों दलों और प्रमुख नागरिकों के सांसद विधायकों की समिति बनाएं और आरक्षण से संबंधित सभी मामलों में विचार मांगे जाएं। उसके बाद निर्णय लिया जाए तो अच्छा है। क्योंकि यह बात न्यायाधीश ने की सही है कि आरक्षण रेल के डिब्बे की तरह हो गया है जिसमें कोई एक बार चढ़ गया वो नहीं चाहता कि दूसरा कोई इसमें आए। कई बार एक ही श्रेणी के लोग एक दूसरे का विरोध खुलकर करते है। जनहित को ध्यान रखते हुए तथा स्थानीय निकायों के कार्य संपन्न कराएं जाएं इसलिए चाह माह में निर्वाचन आयोग को चुनाव संपन्न कराकर और उसे अदालत को अवगत भी कराना चाहिए।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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