केंद्र व प्रदेश की सरकारें हर बच्चे को साक्षर बनाने के लिए उच्च शिक्षा देने वाले बड़े स्कूलों में दाखिले की सीमा बढ़ाने के साथ ही अन्य सुविधाएं देने की भरपूर प्रयास कर रही है। दूसरी ओर इंग्लिश मीडियम सीबीएसई बोर्ड द्वारा डमी स्कूलों के छात्रों को परीक्षा से हटाने की तैयारी शिक्षा का स्तर बढ़ाने और फर्जी स्कूलों पर रोक लगाने के लिए की जा रही नजर आती है लेकिन ज्यादातर निजी स्कूलों के संचालकों की मनमानी के चलते शिक्षा की दुकान बन गए साक्षरता के मंदिरों की व्यवस्थाओं को लेकर अभिभावकों में बेचैनी और मायूसी नजर आ रही है। क्योंकि केंद्र और प्रदेश के शिक्षा विभाग के उन अधिकारियों की लापरवाही जिन्हें स्कूल संचालकों की मनमानी पर रोक लगानी चाहिए की वजह से आर्थिक परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है।
वर्तमान समय में सभी स्कूलों में एडमिशन का दौर चल रहा है। लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारियों की कुंभकर्णी नींद अभिभावकों के अनुसार एनसीईआरटी की किताबे भी सभी स्कूलों व कक्षाओं में उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं ओर खासकर नामचीन स्कूलों के संचालक तो कई जगह प्रधानाचार्य और स्कूल से संबंध सामग्री बेचने वालों की सांठगांठ के चलते बच्चों को सस्ती पठनीय सामग्री उपलब्ध कराने की मंशा के विपरीत महंगे दामों पर काफी सस्ती किताबें बेची जा रही हैं और इसके साथ ही अन्य सामग्री तय दुकानों द्वारा लेने के लिए मजबूर किया जाना बताया जाता है।
कुछ अभिभावकों का यह भी कहना है कि कई सौ कीमत की कुछ किताबें ऐसी लगाई गई हैं जो साल भर में शायद दस बार भी पढ़ने के काम ना आती हों लेकिन स्कूल उन्हें लेना अनिवार्य कर रहे हैं। एक अप्रैल से निजी स्कूलों का नया शैक्षिक सत्र शुरू होगा। लेकिन अभी तक जिन स्कूलों में दाखिले हो रहे हैं उनमें शिक्षा विभाग के आदेशों के अनुसार एनसीईआरटी की किताबें नहीं मिल रही हैं और स्कूलों द्वारा नामित दुकानदार अनाप शनाप कीमतें लेकर सामान बेच रहे हैं। बताते हैं कि नया सत्र शुरू होते ही स्कूल हर साल विभिन्न तरीकों से पांच से दस प्रतिशत फीस बढ़ा देते हैं। मजे की बात यह है कि हर साल स्कूल की सभी कक्षाओं से संबंध किताबों में थोड़ा फेरबदल किया जाता है जिससे प्रकाशक को पुरानी किताबों में सही कराकर बेचने पर लाभ होता है और अभिभावकों पर आर्थिक बोझ पड़ता है। कई लोगों ने बताया कि तय दुकानों से ही जूते ड्रेस खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। स्थिति यह है कि कुछ स्कूलों की छठी कक्षा तक का सिलेबस सात हजार रूपये की कीमत तक पहुंच गया है। बेसिक शिक्षा अधिकारी आशा चौधरी का कहना है कि स्कूल संचालक एक दूकान से कॉपी खरीदने को बाध्य नहीं कर सकते। एक तय मानक तक दाम ले सकते हैं। कोई शिकायत करेगा तो स्कूल पर कार्रवाई की जाएगी। सवाल यह उठता है कि सरकार ने सस्ती और आसान शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए अधिकारी तैनात किए गए हैं तो इन्हें शिकायत का इंतजार क्यों। खुद बाजारों में घूमकर देखना चाहिए कि क्या स्थिति है और स्कूल क्या कार्यप्रणाली अपना रहे हैं। बताते चलें कि कुछ सालों पहले जब शिकायत सामने आई तो सरकार ने मंडलायुक्त की अध्यक्षता में अभिभावकों और स्कूल संचालकों की कमेटियां बनाई थी जिन्हें जिम्मेदारी दी गई थी वो बच्चों का उत्पीड़न रोकने के लिए आदि का कार्य करेंगी। उस समय मंडल स्तर पर इनकी बैठक होने की खबर मिली लेकिन वर्तमान में जिला या मंडल स्तर पर शासन की नीति के तहत शिक्षा का प्रचार प्रसार और सस्ती किताबें और तय फीस की व्यवस्था लागू कराने के लिए इनकी बैठक बुलाई गई हो ऐसा पता नहीं चल रहा है। देखना यह है कि मंडलायुक्त और डीएम स्कूलों से संबंध परेशानियों को लेकर छप रही खबरों का स्वयं संज्ञान लेकर इस परेशानी से अभिभावकों को छुटकारा दिलाने के लिए कार्रवाई करते हैं।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
स्कूल संचालकों की मनमानी, अभिभावक और छात्र परेशान, बेसिए शिक्षा अधिकारी को है इंतजार, मंडलायुक्त और जिलाधिकारी कब देंगे ध्यान
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