asd मुस्लिम पुरुषों के बहुविवाह पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी, क़ुरान का स्वार्थ के लिए दुरूपयोग उचित नहीं

मुस्लिम पुरुषों के बहुविवाह पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी, क़ुरान का स्वार्थ के लिए दुरूपयोग उचित नहीं

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प्रयागराज 15 मई। मुस्लिम पुरुषों के चार शादियां करने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी दी है. कहा कि मुस्लिम पुरुष तभी दूसरी शादी करें जब वो सभी बीवियों के साथ एक समान व्यवहार कर सकें. कोर्ट ने आगे कहां- कुरान में खास वजहों से बहुविवाह की इजाजत की गई है, लेकिन कुछ पुरुष इसका अपने स्वार्थ के लिए दुरुपयोग करते हैं.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुरादाबाद से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी दी है. कहा- इस्लामी काल में विधवाओं और अनाथों की सुरक्षा के लिए कुरान के तहत बहुविवाह की सशर्त इजाजत दी गई है. लेकिन, पुरुष अपने स्वार्थ के लिए इसका दुरुपयोग करते हैं.

कोर्ट ने याची फुरकान और दो अन्य की ओर से दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान समान नागरिक संहिता यानि यूनिफॉर्म सिविल कोड की वकालत करते हुए ये बात कही. याची फुरकान, खुशनुमा और अख्तर अली ने मुरादाबाद सीजेएम कोर्ट में 8 नवंबर 2020 को दाखिल चार्जशीट का संज्ञान और समन आदेश को रद्द करने की मांग में याचिका दाखिल की थी. तीनों याचियो के खिलाफ मुरादाबाद के मैनाठेर थाने में 2020 में आईपीसी की धारा 376,495, 120 बी, 504 और 506 के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई थी.

इस केस में मुरादाबाद पुलिस ने ट्रायल कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी है. कोर्ट ने चार्जशीट का संज्ञान लेकर तीनों को समन जारी किया है. एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि याची फुरकान ने बिना बताए दूसरी शादी कर ली है. जबकि, वह पहले से ही शादीशुदा है. उसने इस शादी के दौरान बलात्कार किया. याची फुरकान के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि एफआईआर करने वाली महिला ने खुद ही स्वीकार किया है कि उसने उसके साथ संबंध बनाने के बाद उससे शादी की है.

कोर्ट में कहा गया कि आईपीसी की धारा 494 के तहत उसके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है. क्योंकि मुस्लिम कानून और शरीयत अधिनियम 1937 के तहत एक मुस्लिम व्यक्ति को चार बार तक शादी करने की इजाजत है. कोर्ट में यह भी दलील दी गई की विवाह और तलाक से संबंधित सभी मुद्दों को शरीयत अधिनियम 1937 के अनुसार तय किया जाना चाहिए. जो पति के जीवनसाथी के जीवन काल में भी विवाह करने की इजाजत देता है.

याची फुरकान के वकील ने जाफर अब्बास रसूल मोहम्मद मर्चेंट बनाम गुजरात राज्य के मामले में गुजरात हाईकोर्ट के 2015 के फैसले का हवाला दिया. इसके अलावा कुछ अन्य अदालतों के फैसलों का भी हवाला दिया गया. कहा कि धारा 494 के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए दूसरी शादी को अमान्य होना चाहिए. लेकिन, अगर मुस्लिम कानून में पहली शादी मुस्लिम कानून के तहत की गई है तो दूसरी शादी सामान्य नहीं है.

राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में इस दलील का विरोध किया गया और कहा कि मुस्लिम व्यक्ति द्वारा किया गया दूसरा विवाह हमेशा वैध विवाह नहीं होगा. क्योंकि यदि पहला विवाह मुस्लिम कानून के अनुसार नहीं किया गया बल्कि पहला विवाह हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अनुसार किया गया है और वह इस्लाम धर्म अपनाने के बाद वह मुस्लिम कानून के अनुसार दूसरा विवाह करता है तो ऐसी स्थिति में दूसरा विवाह अमान्य होगा और आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध लागू होगा.

हाईकोर्ट ने अपने 18 पन्ने के फैसले में कहा कि विपक्षी संख्या 2 के कथन से स्पष्ट है कि याची फुरकान ने उससे दूसरी शादी की है. दोनों ही मुस्लिम महिलाएं हैं इसलिए दूसरी शादी वैध है. कोर्ट ने कहा कि याचियों के खिलाफ वर्तमान मामले में आईपीसी की धारा 376 के साथ 495 व 120 बी का अपराध नहीं बनता है. कोर्ट ने इस मामले में विपक्षी संख्या 2 को नोटिस जारी किया है. 26 मई 2025 को मामले की अगली सुनवाई होगी.

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