आए दिन मीडिया में देखने पढ़ने व सुनने को मिलता है कि आग लग गई पटाखा फैक्ट्री में हुआ विस्फोट, इतने मरे इतने हुए घायल। सरकार प्रति व्यक्ति इतने लाख का देगी मुआवजा। मानवीय संवेदनाओं को देखते हुए यह मुआवजा व घायलों के इलाज की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए।
मगर सवाल उठता है कि आखिर आम आदमी के खून पसीने की कमाई जो टैक्स के रूप में सरकार को मिलती है उससे कुछ लोगों के स्वार्थीपन के चलते यह मुआवजा कब तक बांटा जाता रहेगा।
क्योंकि विकास प्राधिकरण और अन्य अवैध निर्माण रोकने से संबंध विभागों के अफसरों की लापरवाही और जल्दी माल कमाकर अमीर बनने की इच्छा के चलते जो चारों तरफ अवैध निर्माण बढ़ रहे हैं और उनमें सरकारी नियम विरूद्ध फैक्ट्रियां कैमिकल और पटाखों के चल रही हैं उन पर कार्रवाई नहीं की जाती। फैक्ट्री का मालिक मुनाफा कमाकर मालामाल होता रहता है और अफसर नजराना लेकर खुश होते रहते हें। लेकिन जो इनमें हताहत होते हैं उनके परिवारों के लिए यह जीवनभर का दुख बन जाता है। जो मुआवजा दिया जाता है उसकी पूर्ति के लिए जनता पर विभिन्न प्रकार से टैक्स बढ़ा दिया जाता है। मुझे लगता है कि जो मुआवजा दिया जाता है वो घटनाओं से संबंधित हुक्मरानों की निजी संपत्ति से दिया जाए और गलत तरीके से फैक्ट्रियां चलाने वालों पर शिकंजा कसा जाए और दीपावली आदि पर पटाखें चलाने की छूट नहीं होती तो उनकी फैक्ट्रियां क्यों चलती है। मेरा मानना है कि पटाखों, प्लास्टिक और अन्य कैमिकल बनाने वाली फैक्ट्रियों के संचालन पर प्रतिबंध लगाकर इनमें होने वाली घटनाओं में कमी लाई जाए वहीं जो मुआवजे देकर विभिन्न प्रकार की वसूली होती है उसे भी कम किया जाए। यही राष्ट्र और मानवहित में है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
आखिर कब तक बांटती रहेगी सरकार मुआवजा!
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