केंद्र व प्रदेश सरकारें बेसिक से लेकर उच्च शिक्षा उपलब्ध कराने और साक्षरता दर बढ़ाने के लिए प्रयास कर रही है। लेकिन जिस प्रकार से यूपी में सरकारी सहायता से चल रहे उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रबंध कमेटी और प्राचार्य के बीच मनमुटाव के किस्से सुनने पढ़ने को मिलते हैं। उससे यही कहा जा सकता है कि ऐसे माहौल में ना तो बच्चे पढ़ सकते है और सरकारी सहायता का दुरूपयोग भी होता है। गलती चाहे मैनेजमेंट की हो या प्राचार्य की।
सरकार ने हर स्तर की शिक्षा देने के लिए नीति नियम बनाए हुए हैं। उन्हीं के आधार पर चलने वाले स्कूलों को सहायता व सुविधाएं दिए जाने की बात भी होती है। मगर जिस प्रकार से स्कूल कॉलेजों में विवाद बढ़ रहा है वो किसी के भी हित में नहीं है। वर्तमान में मेरठ के शारदा रोड स्थित कनोहर लाल स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय की प्रबंध समिति और प्राचार्य डॉ. अलका के बीच चल रहा विवाद बढ़ता जा रहा है। थाने में एफआईआर और मुकदमेबाजी की बात सुनने को मिलती है। वो गलत हैं।
मुझे लगता है कि प्रदेश के शिक्षा विभाग को उच्च शिक्षा अधिकारी को आदेश देने चाहिए कि वो जिलाधिकारी से मार्गदर्शन प्राप्त कर इस विवाद को सुलझवाए वरना प्रदेश के जिन कॉलेजों में इस तरह की बात सुनने को मिल रही है वहां की प्रबंध कमेटी को भंग कर वहां प्रशासक बैठाया जाए। अगर प्राचार्य की कमी नजर आती है तो उन्हें सुधार की चेतावनी दी जाए। अगर स्थिति नहीं सुधरती तो उनका तबादला किया जाए। लेकिन किसी भी रूप में छात्रों का भविष्य प्रबंध समिति और प्राचार्य के कारण प्रभावित नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे छात्रों की सोच और कार्यनीति भी प्रभावित होती है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
बैठाया जाए प्रशासक कनोहर लाल स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय में
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