asd 45 साल तक महिला से 15 रूपये वेतन पर काम कराने वाले स्कूल संचालकों पर हो कार्रवाई

45 साल तक महिला से 15 रूपये वेतन पर काम कराने वाले स्कूल संचालकों पर हो कार्रवाई

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वर्तमान समय में जब सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के वेतन और सुविधाओं में सरकार भरपूर बढ़ोतरी कर रही है और उनकी सुख सुविधाओं का ध्यान देने की कोशिश हो रही है ऐसे में बेसिक शिक्षा विभाग बांदा के स्कूल में महिला चपरासी को 45 साल तक 15 रूपये वेतन देकर काम कराने वाले स्कूल से संबंध सभी जिम्मेदार लोगों के साथ साथ शिक्षा विभाग के संबंधित अधिकारियों पर भी हो कार्रवाई क्योंकि अदालत के आदेश के बावजूद भी 165 रूपये माह की पगार ना देने का जिम्मेदार तो उन्हें माना ही जाना चाहिए। एक महिला कर्मी के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों पर कुठाराघात का दोषी मानते हुए अदालत ने जो वेतन और अन्य देय देने के आदेश दिए हैं उनके साथ साथ मुझे लगता है कि सरकारी नीति के विपरीत जाकर कागजी खानापूर्ति की आड़ में दुनिया की आधी आबादी मातृशक्ति का जो उत्पीड़न किया गया है उसके लिए भी दोषी व्यक्तियों से अलग अलग मुआवजा यूपी सरकार महिला हित को ध्यान में रखते हुए दिलाए। खबर के अनुसार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा विभाग बांदा पर महिला चपरासी से पूर्णकालिक कर्मचारी के बतौर काम लेने के बावजूद निर्धारित वेतन नहीं देने पर एक लाख रुपये का हर्जाना लगाया है। महिला 45 साल तक 15 रुपये वेतन पर काम करते हुए 2016 में सेवानिवृत्त भी हो गईं।
उन्होंने दो बार हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हक हासिल नहीं हो सका। खफा कोर्ट ने हर्जाने सहित बकाया वेतन देने का आदेश दिया है। यह फैसला न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की अदालत ने बांदा जिले की भगोनिया देवी की 14 साल से लंबित याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।
वह 1971 में बेसिक शिक्षा विभाग के अधीन संचालित कन्या जूनियर हाईस्कूल में 15 रुपये वेतन पर सेविका के रूप में नियुक्त की गईं थीं। 1981 में उन्हें पूर्णकालिक चपरासी के रूप में प्रोन्नति देते हुए वेतन 165 रुपये निर्धारित हुआ। लेकिन, यह उन्हें दिया नहीं गया।
इसके खिलाफ उन्होंने 1985 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने बेसिक शिक्षा अधिकारी बांदा को वेतन संबंधी मांग निस्तारित करने का निर्देश दिया। बीएसए ने 165 रुपये वेतन देने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि उनकी सेवाओं और वेतन का अनुमोदन नहीं हुआ है। यह नियुक्ति अनियमित है। फिर, 1996 में उनकी पूर्णकालिक सेवा समाप्त कर दी गई। हालांकि, वह 2016 तक काम करतीं रहीं।
2010 में वह निर्धारित वेतन की मांग को लेकर फिर हाईकोर्ट आईं। वर्ष 2016 में वह सेवानिवृत हो गईं, लेकिन बेसिक शिक्षा विभाग ने बढ़े वेतन का भुगतान नहीं किया। 35 साल की पूर्णकालिक सेवा के बावजूद मात्र 15 रुपये प्रतिमाह वेतन ही मिलता रहा।
कोर्ट ने कहा कि पूर्णकालिक नियुक्ति रद्द करने के आदेश को याची ने चुनौती नहीं दी, लेकिन इसमें कोई विवाद नहीं है कि वह लंबे समय तक पूर्णकालिक चपरासी के रूप में काम करती रही हैं। लिहाजा, याची को पूर्णकालिक चपरासी के रूप में नियुक्त करने का आदेश लागू मानने योग्य है।
कोर्ट ने याची की पूर्णकालिक नियुक्ति की तारीख से 165 रुपये की दर से 35 साल की सेवा के लिए 69,300 रुपये अदा करने का आदेश दिया। साथ ही, दो बार कोर्ट आने के लिए विवश करने के लिए बेसिक शिक्षा विभाग पर एक लाख रुपये का हर्जाना लगाते हुए याची को भुगतान करने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने कहा…प्रजा के सुख में ही राजा का सुख निहित
हाईकोर्ट ने कहा, विपक्षियों ने अत्यधिक तकनीकी दृष्टिकोण अपनाया है, जो एक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के खिलाफ है। कोर्ट ने कौटिल्य के अर्थशास्त्र के राजधर्म के नीति वचन संबंधी श्लोक प्रजा सुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु हिते हितम्, नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम्… का भी उल्लेख किया। अर्थात, प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है। जो स्वयं को प्रिय लगे उसमें राजा का हित नहीं है। उसका हित तो प्रजा को जो प्रिय लगे, उसमें है।
कहते हैं कि परिवार का मुखिया और राजा वो ही सही होता है जो सबको साथ लेकर चले और उनकी कठिनाईयों का समाधान करता रहे। लेकिन इस व्यवस्था को स्कूल संचालकों द्वारा शायद नहीं अपनाया गया जिसका खामियाजा इन्हें मिलना ही चाहिए जिससे भविष्य में और लोग इस प्रकार की हिम्मत कर जरूरतमंद व्यक्तियों की मेहनत का दोहन ना कर पाए।

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