कुछ शब्द और बातें सुनने में बहुत अच्छी और मनभावन लगती हैं क्योंकि उनको सुनकर ऐसा अहसास होता है कि अब हमारे शहर की और हमारी अपनी एक अलग पहचान होगी। यहां हर व्यक्ति स्वाभिमानी और अपने सम्मान की रखवाली करने वाला होगा। जैसे एक खबर पढ़ने को मिली इंदौर में नए साल से भीख देने वालों पर दर्ज होगी एफआईआर। कुछ दिन पहले एक खबर सुनने को मिली थी कि यूपी के मेरठ में अब नहीं दिखाई देंगे भिखारी। दोनों ही शब्द कानों को अच्छे लगते हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या ऐसा वर्तमान में हो पाना संभव है। क्योंकि जिन लोगों पर यह जिम्मेदारी होगी वो कोरोना काल के कई सालों में सड़कों के किनारे रहने वाले भिखारी जो जब कोई कुछ देने आता है कि मक्खियों के समान उसके चारो तरफ एकत्र हो जाते है। उन्हें उस जानलेवा बीमारी के दौरान नहाने और साफ सुथरा रहने तक को तैयार नहीं कर पाए तो क्या वाकई में वो जिम्मेदार इन भिखारियो के लिए ऐसी व्यवस्था कर पाएंगे की वो नजर आ आएं। दूसरे बात करें मध्य प्रदेश के इंदोर शहर की तो यहां के कलेक्टर साहब आशीष सिंह ने बीते दिनों फरमाया कि नए साल से इंदौर में भीख देने वालों पर दर्ज होगा मुकदमा। यह कुछ ऐसा ही फरमान है जैसे एक किवदंती काफी सुनने को मिलती है कि एक आदमी के दो बेटे थे एक सीधा दूसरा चंचल। परिवार पूरा महादेव के चरणों में सिर झुकाता था लेकिन जो चंचल था वो ऐसा नहीं करता था। एक बार उसने घंटा ही चुरा लिया तो महादेव ने घर के मुखिया को दर्शन दिए कि या तो अपने बेटे को समझा ले वरना दूसरे से भी हाथ धो बैठेगा। इंदौर के कलेक्टर का फरमान भी ऐसा ही लगता है। उन्हें जो बात भिखारियों को कहनी चाहिए थी कि भीख मांगने पर कार्रवाई होगी लेकिन वो जानते हैं कि उन्हें भीख मांगने से नहीं रोका जा सकता तो उन्हेंोंने भीख देने वालों को जेल भेजने का फरमान जारी कर दिया।
कलेक्र साहब और अन्य जिम्मेदार लोग यह समझ लें कि हर व्यक्ति जानता है कि आसानी से ना भीख मांगना बंद हो सकता है ना देना क्योंकि जिनके पास साधन नहीं है या जिन्हें आदत पड़ गई है उन्हें जेल भेज दें मगर वो अपनी फितरत से बाज आने वाले नहीं है। जो भीख देना धर्म का काम समझते हैं वो भीख देना छोड़ेगा नहीं। यह जरूर है कि थोड़े समय बाद कलेक्टर के लिए इतना विवाद खड़ा होगा कि वो उसमें उलझकर रह जाएंगे। इसका मतलब यह नहीं है ऐसा नहीं होना चाहिए मगर हर उस व्यक्ति को जो ऐसा अच्छा काम करना या कराना चाहता है पहले उसे इन भिखारियों के पुर्नवास और इनके बच्चों के पढ़ने रोजगार की व्यवस्था करनी होगी तो शायद ऐसा संभव हो सकता है क्योंकि खुशहाल परिवार हर परिवार का सपना होताहै। मुझे आज भी याद है कि मेरठ के कलेक्टर रहते हुए संजय अग्रवाल के निर्देश पर मेरठ में भिखारियों व कुष्ठ रोगियों के पुनर्वास हेतु सरकारी योजनाओं में जनसहयोग से आवास उपलब्ध कराए गए थे लेकिन आज से लगभग दो दशक पूर्व भी आवास उपलब्ध कराने के बावजूद यह तय नहीं हो पाया कि भिखारी भीख नहीं मांगेगे क्योंकि कुछ दिन बाद सबने मकान तो किराए पर दे दिए और फिर से सड़कों पर भीख मांगने लगे। इस बारे में वरिष्ठ संपादक रिश्तांे का संसार मेरठ का संचालन करने वाले महेश शर्मा का यह कथन सही लगता है कि जब भगवान ने ही सबको एक समान नहीं बनाया तो और वो इनकी समस्याओं का हल नहीं कर पा रहा है तो आम आदमी की क्या हैसियत। इसलिए कलेक्टर साहब भीख मांगना और देना दोनों बंद कराईये लेकिन देने वालों पर एफआईआर जान का बवाल बन जाएगा। यह कार्य किसी अच्छी भावना से किया जा रहा हो उसे अच्छा नहीं कह सकते है। मैं यह नहीं कहता कि यह असंभव है लेकिन आसानी से संभव भी नहीं है। इसलिए मुंगेरी लाल के सपने ना देखे जाएं तो अच्छा है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
भीख देने वालों पर होगा केस दर्ज, हुजूर मंगेरी लाल के सपने ना देखें जो अच्छा है
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