Date: 23/12/2024, Time:

‘धमकी-झांसा देकर महिला से संबंध बनाना रेप माना जाएगा’, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला

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प्रयागराज, 16 सितंबर। इलाहाबादा हाईकोर्ट ने एक निर्णय में कहा है कि कोई व्यक्ति भले ही महिला की सहमति से उसके साथ शारीरिक संबंध बनाता हो, लेकिन यदि महिला भयभीत या भ्रमित होकर ऐसी सहमति देती है तो ऐसे संबंध को दुष्कर्म ही माना जाएगा। न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता ने यह टिप्पणी करते हुए आगरा के राघव कुमार नामक एक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। राघव ने दुष्कर्म के मुकदमे को चुनौती देते हुए हाइकोर्ट पहुंचे थे।
यह मामला 15 नवंबर 2018 को महिला पुलिस स्टेशन आगरा में एक महिला द्वारा दर्ज की गई एफआईआर से जुड़ा है। एफआईआर में भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं, जिनमें 376 (बलात्कार), 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) शामिल हैं, के तहत मामला आगरा में दर्ज किया गया था।

शिकायतकर्ता महिला ने आरोप लगाया कि आरोपी और उसके परिवार के सदस्यों ने धमकियों और झूठे वादों का उपयोग करके उसकी असहमति के बावजूद उसे यौन संबंध में धकेल दिया। शिकायतकर्ता, जो एक उच्च शिक्षित महिला है, उसने दावा किया कि आरोपी ने उसे धोखा दिया और यौन उद्देश्यों के लिए उसका शोषण किया और फिर ब्लैकमेल किया।
आगरा का मामला, दोनों एक साथ पढ़ते थे

एफआईआर के अनुसार, आरोपी और शिकायतकर्ता पूर्व सहपाठी थे और कई वर्षों से एक-दूसरे को जानते थे। 2016 में आरोपी के परिवार ने विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे शिकायतकर्ता ने अस्वीकार कर दिया। कहा गया कि इसके बावजूद आरोपी ने संपर्क बनाए रखा और बाद में उसे अपनी मां की बीमारी का बहाना बनाकर अपने घर बुलाया।

शिकायतकर्ता के अनुसार, आरोपी ने उसे चाय में नशीला पदार्थ मिलाकर बेहोश कर दिया। जब वह होश में आई, तो उसने खुद को नग्न पाया और पता चला कि उसकी नग्न तस्वीरें ली गई थीं। आरोपी और उसके परिवार ने इन तस्वीरों का उपयोग उसे ब्लैकमेल करने और यौन संबंध बनाने के लिए किया। और इनकार करने पर तस्वीरें सार्वजनिक करने की धमकी दी।

महिला ने आगे कहा कि आरोपी ने उसका भावनात्मक और आर्थिक शोषण किया, और जब उसने शादी की मांग की, तो उसने मना कर दिया गया और कहा कि उसके कार्यों का उद्देश्य पहले के विवाह प्रस्ताव के अस्वीकार के प्रतिशोध के रूप में था। अदालत के सामने मुख्य कानूनी मुद्दा यह था कि क्या आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच का संबंध सहमति के साथ था, और यदि नहीं, तो क्या आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार का आरोप लगाया जा सकता है। अदालत ने आईपीसी की धारा 375 के तहत सहमति के परिभाषा की जांच की और यह विचार किया कि क्या शिकायतकर्ता की सहमति डर, धमकी या गलत धारणा के तहत दी गई थी, जिससे यह कानूनी रूप से अमान्य हो गई।

न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता ने आईपीसी की धारा 90 का संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया है- अदालत ने जोर देकर कहा कि सहमति स्वेच्छा से होनी चाहिए और इसमें सक्रिय और तर्कसंगत विचार शामिल होना चाहिए। जबरदस्ती, धमकी या धोखे से प्राप्त सहमति कानून द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा नहीं करती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने विश्लेषण में देखा कि यद्यपि शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच एक लंबा संबंध था। प्रारंभिक यौन संबंध स्थापित करने का कार्य शिकायतकर्ता की स्वतंत्र सहमति के बिना किया गया था। अदालत ने कहा- यदि कोई पुरुष किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध और उसकी सहमति के बिना यौन संबंध स्थापित करता है, तो उसे महिला के साथ बलात्कार करने के रूप में माना जाएगा।

हालांकि यदि कोई पुरुष किसी महिला के साथ उसकी सहमति से यौन संबंध स्थापित करता है, तो ऐसा यौन कार्य बलात्कार नहीं माना जाएगा। हालांकि , यदि ऐसी सहमति डर या गलत धारणा के तहत दी गई थी, तो ऐसी दूषित सहमति के साथ किया गया यौन कार्य बलात्कार माना जाएगा।

न्यायमूर्ति गुप्ता ने आदेश में कि शिकायतकर्ता की सहमति डर और ब्लैकमेल के माध्यम से प्राप्त की गई थी, जिससे यह अवैध हो गई। उन्होंने यह भी कहा कि विवाह के बहाने या धमकी के तहत दी गई सहमति वैध नहीं मानी जा सकती। अदालत ने आरोपी द्वारा उद्धृत निर्णयों की प्रासंगिकता को यह कहते हुए खारिज कर दिया वे उन मामलों में लागू नहीं होता जहां प्रारंभिक कार्य महिला की इच्छा के विरुद्ध किया गया था।

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