अनुसूचित जाति व जनजाति आरक्षण से क्रीमीलीयर को अलग करने के मुददे पर देशभर में हुए भारत बंद का बिहार को छोड़ कम जगहों पर असर दिखाई दिया। लेकिन मुझे लगता है कि इस संदर्भ में निर्णय लेने से पूर्व उसके परिणामों के बारे में भी सोचते हुए सरकार से पूरी तौर पर ऐसे मुददों पर क्या हो सकता है जानकारी लेने के साथ साथ समाज से भी उसकी राय जानी चाहिए। वैसे तो यह भी कह सकते हैं कि जाति जिला कोई सा भी हो जो काबिल है उसे आगे बढ़ने का मौका मिले और इस क्रम में जो जातियां कमजोर हैं उन्हें सरकार उच्च स्तरीय शिक्षा दिलाने के अतिरिक्त वो आगे बढ़ सके उन्हें आर्थिक सहायता भी परिवार चलाने के लिए दी जानी चाहिए क्योंकि इस प्रकार के आंदोलन से जिन परिवारों को इसका लाभ मिलने की उम्मीद है उनमें भी आपसी तनाव बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए जो व्यक्ति पढ़ लिखकर आगे बढ़ रहा है वो चाहे किसी भी जाति का हो आरक्षण से संबंध है तो उसे लाभ मिलना चाहिए और सही बात तो यह लगती है कि जो लोग आरक्षण का लाभ प्राप्त कर ऊचे ओहदों पर विराजमान हो गए हैं ओर संपन्न हैं उन्हें आरक्षण की व्यवस्था अगर एक दो बार मिल चुकी है तो उन्हें अपने दम पर आगे बढ़ने के लिए मजबूर किया जाए। जो आर्थिक सामाजिक ओर शिक्षा में कमजोर हैं उन्हें आगे बढ़ाकर अच्छे पदों पर बैठने परिवार को खुशहाल बनाने और देशहित में काम कराने का मौका दिया जाना चाहिए।
बताते हैं कि पूर्व मंें भी इस संदर्भ में निर्णय हुए थे लेकिन कई प्रदेशों ने उसे अपने यहां लागू नहीं किया था जिससे लगता है कि कोई ना कोई कमी जरूर रही होगी। अब जो यह फैसला हुआ है मैं इसको लेकर किसी का विरोध ना तो करता हूं लेकिन इस पर चर्चा और रायशुमारी जरूर होनी चाहिए। बीते दिवस इस मुददे पर देशभर में आंदोलन व धरना प्रदर्शन हुए। बिहार में उग्र प्रदर्शन तो यूपी में शांति बनी रही। लेकिन एक बात जो विशेष रूप से दिखाई दी धरना प्रदर्शन तो सब जगह मजबूती से हुए लेकिन बंद का बिहार का छोड़कर कोई खास असर नहीं दिखा। इसके बारे में आम आदमी में जो चर्चा हो रही है उसके हिसाब से नौकरीपेशा और सियासी लोग इसमें ज्यादा जुटे मगर सभी जातियों के वो लोग जो व्यापार से संबंध हैं या रोजी रोटी जुटाने को प्राथमिकता मानते हैं वो इससे अलग रहे इसी लिए शायद बाजार बंदी के मामले में कोई खास असर नहीं दिखाई दिया। फैसले के विरोध में ज्ञापन देने के लिए भारी भीड़ जुटी जिससे लगता है कि कुछ लोग इससे पीड़ित हो सकते हैं। दूसरी तरफ क्रीमीलेयर के समर्थन में भी वाल्मिीकी समाज द्वारा प्रदर्शन किया गया जो इस बात का अहसास कराता है कि भविष्य में किसी समय इस मुददे को लेकर कुछ लोगों में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है अगर ऐसा होता है तो वो किसी के हित में नहीं कहा जा सकता। सभी को आगे बढ़ने और पात्रों को उनका अधिकार मिले और टकराव भ्ीा ना हो इसके लिए सरकारों को कोई मजबूत कार्य नीति विपक्षी दलों के साथ बैठकर तैयार करनी चाहिए। और जो अच्छा लगे सबके सामने रखकर समाज में शांति और भाईचारे की स्थापना के प्रयास किए जाएं और निर्णय में कुछ गलत लगता है तो पुन इस मामले को अदालत ले जाएं या राष्ट्रपति के यहां ले जाकर जो अच्छा हो सके वो कराने का प्रयास कराएं जिससे सबको न्याय मिलने का मार्ग प्रशस्त होने की उम्मीद की जा सकती है। कुछ मिलाकर कहने का औचित्य है कि हर नागरिक को सम्मान के साथ जीने और अपने अधिकार दिया जाना सरकार की जिम्मेदारी है। इसमें अड़चन को दूर कराने की कोशिश उसे ही करनी होगी। क्योंकि आम आदमी विभिन्न परेशानी के इस दौर में कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सरकार दे ध्यान! क्रीमीलेयर के मुददे पर सरकार कराए रायशुमारी हर व्यक्ति को मान सम्मान और उसका अधिकार मिलना ही चाहिए, ऐसे आंदोलनों से टकराव की स्थिति बनने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता
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