नई दिल्ली 23 जनवरी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तमिलनाडु सरकार की ओर से जारी कथित मौखिक आदेश पर आपत्ति जताई, जिसमें अयोध्या में राममंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के सीधे प्रसारण व राज्य में मंदिरों में पूजा- भजन पर प्रतिबंध लगा दिया था।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, राज्य के अधिकारी इस आधार पर पूजा और समारोह के आवेदन को खारिज नहीं कर सकते कि आसपास के इलाकों में अल्पसंख्यक रह रहे हैं। पीठ ने तमिलनाडु के अतिरिक्त महाधिवक्ता अमित आनंद तिवारी से कहा, हम स्पष्ट करते हैं… इस कारण से ऐसा न करें यह कोई आधार नहीं हो सकता आप डाटा रखिए कितने आवेदनों की अनुमति दी गई या कितने अस्वीकृत किए गए कारण यही है, तो आप दिक्कत में पड़ जाएंगे।
अदालत ने भाजपा के प्रदेश सचिव विनोज की ओर से दायर याचिका पर तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी किया। तिवारी ने कहा, ऐसा कोई मौखिक आदेश जारी नहीं किया है। कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है यह राजनीति से प्रेरित है। पीठ ने कहा, हम मानते और विश्वास करते हैं कि अधिकारी कानून के अनुसार काम करेंगे, न कि किसी मौखिक निर्देश के आधार पर अधिकारियों को कानून के अनुसार चलना चाहिए। प्राप्त आवेदनों का रिकॉर्ड भी बनाए रखना चाहिए। उन्हें अर्जियों की जांच करनी चाहिए और स्पष्ट आदेश पारित करना चाहिए।
तब तो न जुलूस संभव है, न अनुष्ठान
जस्टिस दत्ता ने सुनवाई के दौरान कहा, राज्य सरकार ने जो तर्क मैं न कोई जुलूस निकल सकता है, न अनुष्ठान हो सकता है। साथ ही, शीर्ष अदालत ने विनोज की याचिका पर तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर जवाब-तलब करते हुए मामले को 29 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
पीठ ने कहा- यह कारण मनमाना
पीठ ने कहा, यह समरूप समाज है। केवल इस आधार पर न रोकें कि वहां ए या बी समुदाय है। अस्वीकृति के लिए क्या कारण दिए जाते हैं? यह कारण कैसे दिया जा सकता है कि हिंदू किसी स्थान पर अल्पसंख्यक हैं, इसलिए आप अनुमति नहीं देंगे। पीठ ने राज्य सरकार से कहा, यह कारण मनमाने हैं। अगर कारण यही है राज्यभर में तो नहीं हो सकता है।
कुछ थानों ने जारी किए आदेश
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, कुछ पुलिस थानों ने इस तरह के आदेश दिए हैं। उन्होंने कहा, आसपास रहने वाले ईसाई या अन्य समुदाय कभी समस्या नहीं हो सकते। तिवारी ने पूछा, अगर वे मस्जिद के सामने जुलूस निकालना चाहते हैं, तो क्या होगा।
पीठ ने वकील से कहा, आपके पास हमेशा इसे विनियमित करने की शक्ति है। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील दामा शेषाद्री नायडू ने तर्क दिया, एक धर्मविशेष से नफरत करने वाला राजनीतिक दल सत्ता में आया है, जो चाहता है कि सरकार भी उस धर्म से नफरत करे
राज्य को सख्त संदेश जाना चाहिए
मेहता ने आगे कहा, इस स्थिति से स्तब्ध हूं। देश की सर्वोच्च न्यायपालिका से राज्य सरकार को सख्त संदेश जाना चाहिए कि भारत का संविधान देश को नियंत्रित करता है, यह तमिलनाडु पर भी लागू होता है किसी को भी धार्मिक अनुष्ठान करने से नहीं रोका जा सकता है।