asd कौन करेगा कार्रवाई, सूचना मंत्री दें ध्यान!  सरकारी रेडियो स्टेशन हुआ गुमनाम, नियम विरूद्ध खबर और विज्ञापन चलाकर स्कूल संचालक कमा रहे हैं मोटा माल

कौन करेगा कार्रवाई, सूचना मंत्री दें ध्यान!  सरकारी रेडियो स्टेशन हुआ गुमनाम, नियम विरूद्ध खबर और विज्ञापन चलाकर स्कूल संचालक कमा रहे हैं मोटा माल

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देश में आई संचार क्रांति और डिजिटल मीडिया के आकार लेने से इसकी गति बेहिसाब बढ़ी है। परिणामस्वरूप अगर कोई घटना देश के किसी भी इलाके में होती है तो उसकी सूचना न्यूयॉर्क तक पहुंचती है कुछ ही मिनटों में। यह कह सकते हैं कि इलेक्टोनिक मीडिया और सोशल मीडिया ने खबरों को तेजी और प्रिंट मीडिया ने विश्वसनीयता दी उसके बावजूद पिछले पांच छह दशक पूर्व जो रेडियो का जलवा था उसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आज भी कई प्रकार से ऐसे रेडियो आ गए हैं जिनमें सैंकड़ों नए पुराने गाने सुनने को मिलते हैं और खेतों में बैठकर कृषि दर्शन की खबरें किसान सुनते हैं। इसलिए शायद रेडियो की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इसे बढ़ावा देने और नई तकनीकी की संचार व्यवस्था से जोड़ने में कोई कमी नहीं की है। देशभर में रेडियो सेवा निजी स्कूल और कुछ संस्थान व व्यक्ति लेकर इसे चला रहे हैं। इसमें कोई बुराई भी दिखाई नहीं देती लेकिन कुछ शिक्षा संस्थान इसके नियमों को तोड़कर अधिकारियों से मिलीभगत कर जिस उददेश्य से अपने स्कूल के बच्चों को साक्षर करने के साथ ही अब गलत तरीके से खबरें और विज्ञापन अपने सीमा क्षेत्र से आगे निकलकर चलाकर मोटा माल कमा रहे हैं। ऐसी चर्चा को इससे भी बल मिलता है कि कुछ जनपदों में सरकार ने अपने रेडियो स्टेशन खोल रखे हैं जिन्हें सबकुछ करने की अनुमति है लेकिन धीरे धीरे वो गुमनाम होते जा रहे हैं और रेडियो के प्राइवेट संचालक अपना कार्यक्षेत्र बढ़ाकर जानकारों के अनुसार सरकार को आर्थिक चूना भी लगा रहे है। उप्र के मेरठ में पूर्व सांसद राजेंद्र अग्रवाल ने अपने कार्यकाल में रेडियो स्टेशन की स्थापना कराने में सफल रहे। इस रेडियो स्टेशन के बारे में आम तो क्या खास लोग भी नहीं जानते हैं। आज कई लोगों से बात हुई तो उनका कहना था कि इनमें अधिकारी भी नियुक्त हैं व्यवस्थाएं भी है और खर्च भी हो रहा है लेकिन इससे जुड़े अफसरों की लापरवाही कहे या निजी रेडियो स्टेशन संचालकों से मिलीभगत जो भी हो सरकारी रेडियो स्टेशन गुमनाम और प्राइवेट नाम और माल दोनों कमा रहे हैं। एक व्यक्ति की यह बात सही लगी कि प्राइवेट व्यक्ति कोई काम करता है तो साल दो साल में उसकी कई शाखाएं नजर आने लगती है मगर सरकारी काम में बढ़ोत्तरी तो दूर असल भी गुमनाम होने लगता है। किला परिक्षितगढ़ रोड स्थित सरकारी रेडियो स्टेशन इसी श्रेणी में नजर आ रहा है। मेरा मानना है कि नई व्यवस्थाओं का उपयोग भी होना चाहिए और प्राइवेट लोग ज्यादा रेडियो स्टेशन का संचालन करें लेकिन सरकारी नियमों का पालन होना चाहिए तभी देश की आर्थिक व्यवस्था मजबूती से संचालित हो सकती है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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