भले ही 18वीं लोकसभा की शुरुआत सत्तापक्ष व विपक्ष के बीच मतभेद-असहमति के बीच हुई, लेकिन जैसा अपेक्षित था ओम बिरला लगातार दूसरी बार लोकसभा स्पीकर पद के लिये चुने गए। इससे पहले एनडीए गठबंधन सरकार की आकांक्षा थी कि विपक्ष स्पीकर पद के लिये ओम बिरला का समर्थन करे, लेकिन विपक्ष लोकसभा उपाध्यक्ष पद को लेकर अड़ा रहा। संसद में संख्याबल के आधार पर एनडीए की दावेदारी तो तय ही थी, मगर प्रतीकात्मक विरोध के लिये इंडिया गठबंधन ने सबसे अनुभवी सांसद के. सुरेश को स्पीकर पद के लिये अपना उम्मीदवार बनाया था। इस बीच मंगलवार को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के घर हुई बैठक के बाद रात्रि में पार्टी ने घोषणा की कि राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष होंगे। ओम बिरला के लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी बधाई दी। राहुल ने कहा कि भले ही सरकार के पास राजनीतिक शक्ति है लेकिन विपक्ष भी देश के लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व कर रहा है। दरअसल, इंडिया गठबंधन कहता रहा है कि सरकार संसदीय परंपरा को दरकिनार करके डिप्टी स्पीकर पद विपक्ष को देने से इनकार कर रहा है। जबकि आम धारणा रही है कि डिप्टी स्पीकर पद विपक्ष को दिया जाता है। सत्ता पक्ष की दलील थी कि लोकसभा अध्यक्ष किसी दल विशेष का नहीं होता बल्कि सदन चलाने के लिये सब की सहमति से चुना जाता है। सत्ता पक्ष का आरोप है कि इंडिया गठबंधन दबाव की राजनीति करने में लगा है। वहीं एक रोचक पहलू यह भी है कि पिछली लोकसभा में डिप्टी स्पीकर पद पर कोई चुना ही नहीं गया। राजनीतिक पंडित इस नियुक्ति को संविधान के अनुसार अनिवार्य बताते हैं। बताया जाता है कि 1969 तक कांग्रेस ने अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पद अपने ही पास रखे। कालांतर अपनी सुविधा के अनुरूप विपक्षी दलों से यह पद साझा किया गया।
वहीं अब कांग्रेस ने राहुल गांधी को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया है। यहां उल्लेखनीय है कि वर्ष 2004 में चुनावी राजनीति में आने के बाद पहली बार राहुल गांधी किसी संवैधानिक पद पर आसीन हुए हैं। इससे पहले 2019 में पार्टी की पराजय को स्वीकार कर उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया था। लोकसभा अध्यक्ष पद पर ओम बिरला के चयन के बाद उन्होंने परिपक्व ढंग से अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि स्पीकर का दायित्व है कि विपक्ष के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करे। बहरहाल, दस साल तक लोकसभा को नेता प्रतिपक्ष का पद नहीं मिला था। दरअसल, दो आम चुनावों में कांग्रेस सांसदों का दस फीसदी हासिल नहीं कर पायी थी, जिसके चलते वह नेता प्रतिपक्ष का पद न पा सकी। इस बार के आम चुनाव में 99 सीटें हासिल करके कांग्रेस ने नेता प्रतिपक्ष का अधिकार हासिल किया। इंडिया गठबंधन का दावा है कि राहुल अब विपक्ष की आवाज होंगे। हालांकि, इस बार लोकसभा में उनकी मां सोनिया गांधी नहीं होंगी, क्योंकि वे राज्यसभा के लिये चुनी गयी हैं। लेकिन वायनाड उपचुनाव के जरिये प्रियंका गांधी के लोकसभा पहुंचने की प्रबल संभावना है। माना जा रहा है कि नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनकी जिम्मेदार राजनेता की छवि बन सकेगी। वजह है कि नेता प्रतिपक्ष देश में कई महत्वपूर्ण नियुक्तियों में भूमिका निभाता है। उम्मीद करें कि आम चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री पर तीखे हमले करने वाले राहुल प्रधानमंत्री के साथ इस दायित्व को सहजता से निभा पाएंगे। दरअसल, नेता प्रतिपक्ष के पास कई तरह के विशेष संवैधानिक अधिकार भी होते हैं। वह कई महत्वपूर्ण समितियों का सदस्य भी होता है। संयुक्त संसदीय समितियों व चयन समितियों में उसकी सक्रिय भूमिका होती है। जो ईडी, सीबीआई, केंद्रीय सूचना आयोग, केंद्रीय सतर्कता आयोग,लोकपाल, चुनाव आयुक्तों व एनएचआरसी के अध्यक्ष जैसे विशिष्ट पदों की नियुक्तियां करती हैं। विपक्षी नेता को कैबिनेट रैंक पद का दर्जा मिलता है। उम्मीद है इससे राहुल गांधी की छवि एक परिपक्व नेता के रूप में उभरेगी। आशा करें कि सहमति-असहमति के बीच स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपराओं को भी बल मिलेगा।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
एनडीए ने फिर ओम बिरला पर जताया भरोसा, नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल की भी नई पारी शुरू
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