लोकसभा चुनाव के परिणाम को लेकर हारी जीती सभी सीटों पर क्या स्थिति रही और इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं इसकी समीक्षा आजकल भाजपाईयों द्वारा जोर शोर से की जा रही है। कोई इस स्थिति के लिए अधिकारियों को जिम्मेदार बता रहा है तो कुछ का कहना है कि उच्च नेताओं ने कार्यकर्ताओं पर ध्यान नहीं दिया और उनकी बात नहीं सुनी। इसलिए ऐसा हुआ। मजे की बात यह है कि इन समीक्षा बैठकों में से कई में चुने गए और हारे दोनों ही उम्मीदवार नहीं पहुंच पा रहे हैं। कहीं कहीं तो हारा हुआ उम्मीदवार अपने जिलाध्यक्ष को दूसरे राजनीतिक दल का एजेंट बता रहा है तो आरोपित सांसद को नाकाबिल बताते हुए कह रहा है कि ऐसा निष्क्रिय सांसद हिंदुस्तान में दूसरा कोई नहीं होगा। चुनाव ग्राम प्रधान का हो या लोकसभा का हारी हुई पार्टी इस तरह के आरोप लगाती रही है। शायद पहली बार यह देखने को मिल रहा है कि सत्ताधारी दल के नेता कह रहे हैं कि हम मुश्किल से जीते अफसरों ने तो हरा ही दिया था। कई का आरोप है कि थानेदार से लेकर अधिकारियों तक डेली फोन नहीं उठाते। कार्यकर्ताओं का कहना है कि अभियान हम चलाएं और काम माननीयों के हों। समाचार पत्रों की खबरों से भी पता चल रहा है कि इन समीक्षा बैठकों में जिला और महानगर इकाईयों के बीच क्या गुटबंदी खुलकर सामने आ रही है। और उनमें से कुछ इनमें दूरी बनाए हैं। बड़े नेता पिछले पांच साल में रही कमियों से दुखी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने हेतु यह कहते नहीं थक रहे कि देवतुल्य कार्यकर्ता मन छोटा ना करें।
कमी कहां रही उसके लिए जिम्मेदार कौन था इसकी समीक्षा हर नेता कार्यकर्ताओं को करनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार पीएम बन गए। मंत्रिमंडल में विस्तार भी हो गया है। जो जिम्मेदारियां है वो भी दो चार दिन में पूरी हो जाएंगी। लेकिन जो सबसे बड़ा मुददा है उस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है क्येंकि नेता भले ही चुनाव लड़ाते हो लेकिन हार जीत का माहौल कार्यकर्ता ही बनाते हैं। यह पता होने के बाद भी राजनीतिक दलों के बड़े नेता अपने कार्यकर्ता और मतदाताओं से यह पूछने को क्यों तैयार नहीं है कि दो बार बड़ा बहुमत मिलने के बाद तीसरी बार में केंद्र में तीसरी बार गठबंधन की सरकार क्यों बनानी पड़ी जबकि चुनाव जीताते और हराते मतदाता ही है। जब तक इन्हें विश्वास में नहीं लिया जाएगा और परेशानी नहीं पूछी जाएगी तो दलों के नेता यह समझ लें कि विश्वास में लिए बिना और आम आदमी के रोजमर्रा के जरूरी कार्य को निपटाने की व्यवस्था तय किए बिना और वोटरों को विश्वास दिलाए बिना कि उनकी परेशानियों का समाधान किया जाएगा कोई भी आसानी से चुनाव नहीं जीत सकता। कुछ लोग यह कहते नहीं थकते कि गडबड़ हुई होगी लेकिन मैंने चुनावी कार्यप्रणाली को बहुत करीब से देखा है। यह विश्वास से कहा जा सकता है कि हार जीत मतदाता तय करते हैं कोई और नहीं। एक दूसरे पर आरोप लगाने की बजाय यह देखों की मतदाता ने तुम्हारे उम्मीदवार से मुंह क्यों मोड़ा। अगर आगे सफलता की सीढ़ी चढ़नी है तो मतदाताओं को विश्वास दिलाओं की हम हारे या जीते रहेंगे आपके साथ ही।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
आरोप लगाने से हार जीत तय होने वाली नहीं है, मतदाता से पूछो ऐसा क्यों हुआ वो क्या चाहता है
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