ग्रामीण कहावत को ध्यान में रख देंखे तो आरएसएस परिवार और भाजपा एक जिस्म दो जान के समान हैं। और अगर सामान्य सोच के देखें तो एक सिक्के के दो पहलू इन्हें कह सकते हैं। जब से जनसंघ का उदय हुआ और संघ परिवार सामने आया तब से विद्वानों और जानकारों के अनुसार यह दोनों एक दूसरे के प्रतीक बनकर उभरे हैं और हमेशा भाजपा के नेता संघ से जुड़े लोगों का सम्मान करने में कोई कसर नहीं छोड़ते दिखाई दिए तो हर चुनाव में संघ परिवार के सदस्य जी जान से भाजपा के प्रति माहौल बनाने का काम करते रहे हैं। आम आदमी भी यह सोचता है कि आरएसएस और भाजपा का जो तालमेल है जनहित में वो बना रहे। उसके बावजूद यह बात सर्वव्यापी होने के बाद भी लोकसभा चुनाव के दौरान इन दोनों के बीच ना इत्तेफाकी की चर्चा कहां से शुरू हुई और कैसे निकली यह तो भाजपा और संघ परिवार के लोग ही जान सकते हैं। चुनाव निपट चुके हैं सरकार बन चुकी है। विपक्ष संघ परिवार की तरफ से कुछ नेताओं के व्यक्तिगत आए बयान और संघ से जुड़ी पत्रिका आर्गनाइजर में संघ परिवार के आजीवन सदस्य रतन शारदा के छपे विचारों को माध्यम बनाकर अब दोनों को घेरने की कोशिश की जा रही है। जहां तक राजनीति की बात है तो यह हमेशा होता रहा है लेकिन खुले रूप में संघ राजनीतिक संगठन की पहचान नहीं रखता है। जहां तक इसके कुछ नेताओं के बयानों की बात है तो किसने क्या कहा और किस रूप में वो सामने आया यह तो गहन विचार का विषय हो सकता है। मगर सबसे बड़ी बात यह है कि वैसे तो सभी दलों के नेता कार्यकर्ता राष्ट्र भक्त ही है और हमेशा देशहित में सोचते हैं। लेकिन संघ परिवार और भाजपा को प्राथमिकता पर रख खुलकर काम करताा है। इसलिए मुझे लगता है कि आम नागरिकों की भावनाओं का आदर करते हुए लोकसभा चुनाव में सरकार बनाने तक पहुंचाने वाले वोटरों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए अगर कहीं दोनों में विवाद है तो उसे समाप्त किया जाए। मुझे लगता है कि विदेश से प्रधानमंत्री मोदी जी के लौटने के बाद मोहन भागवत जी व दोनों ही संगठनों के कुछ असर रखने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को बैठकर इस बयानबाजी को बंद करने का निर्णय लेने के साथ कोई वैचारिक मतभेद नजर आता है तो उसका समाधान कर अपने सहयोगियों को निर्देश दिए जाने चाहिए कि सार्वजनिक मंचों पर वो कोई भी ऐसी बात नहीं करेंगे जिससे मनमुटाव होने की बात सामने आती हो। वैसे तो आरएसएस और भाजपा दोनों में ही मोहन भागवत का पूरा सम्मान है और उनकी बात कोई टाल नहीं सकता। बात करें पीएम मोदी की तो भाजपा में तो उनका इशारा ही हर काम के लिए काफी है और बाकी भाजपा हो या संध के साथ ही पूरे देश के नागरिकों के हित और देश की मजबूती के लिए हमेशा काम करते हैं। इसे ध्यान रखते हुए यह कहा जा सकता है कि अगर पीएम कोई बात कहेंगे तो उसका सम्मान भी सभी करेंगे। कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि पिछली सरकार में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जो महत्वपूर्ण निर्णय देश और जनहित में लिए गए भविष्य में भी बिना किसी विवाद के देशहित में करने से पहले सोचना ना पड़े इसके लिए सबको एक होना होगा। जहां तक बात इंद्रेश जी की है तो यह अहंकार वाली बात कहां से आई और क्यों आई इसका पता लगाया जाए क्योंकि खुद इंद्रेश जी तो संभलकर और समयानुसार बोलने में विश्वास रखते हैं जिसे लेकर कोई विवाद ना हो। इसलिए संघ परिवार ने उन्हें अल्पसंख्यकों को मुख्य धारा में शामिल करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
संघ प्रमुख और पीएम करें पहल! राष्ट्र और जनहित में समाप्त हो भाजपा और संघ को लेकर चल रही विवादित चर्चा
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