नई दिल्ली 17 जनवरी। ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन (टीएंडडी) से होने वाली हानि बिजली सेक्टर में सुधार की राह में सबसे बड़ी अड़चन थी लेकिन अब जो आंकड़े सामने आ रहे हैं उससे साफ है कि इस अड़चन को दूर करने में सफलता मिलने लगी है।
पिछले दस वर्षों में टीएंडडी हानि 27 फीसद से घट कर 15 फीसद के करीब पहुंच गई है जो सरकार के लक्ष्य के मुताबिक है। दूसरे शब्दों में कहें तो जितनी आपूर्ति बिजली वितरण कंपनियां (डिस्काम) कर रही हैं उसमें से 86 फीसद का शुल्क वह वसूलने लगी हैं। इससे उत्साहित बिजली मंत्रालय ने इस हानि के स्तर को घटा कर 12 फीसद करने का फैसला किया है।
बिजली मंत्री आर के सिंह ने यह जानकारी सोमवार को दी। टीएंडडी हानि के कम होने के पीछे एक बड़ी वजह यह है कि देश के अधिकांश हिस्सों में बिजली वितरण कंपनियों ने बिजली चोरी रोकने के पुख्ता इंतजाम किये हैं।बिजली वितरण कंपनियां जितनी बिजली आपूर्ति करती हैं और इसके जितने हिस्से का शुल्क वसूलने में वह सफल होती हैं इसके बीच का अंतर ही टीएंडडी हानि के तौर पर चिन्हित होता है। वैसे कुछ हिस्सा तकनीक कारणों की वजह से भी बीच में खत्म हो जाती हैं लेकिन टीएंडडी बनाने में एक बड़ा हिस्सा बिजली चोरी का है।
आज से डेढ़-दो दशक पहले भारत में 30 फीसद तक बिजली आपूर्ति की बिलिंग नहीं होती थी और कई वैश्विक रिपोर्टों में भारत में टीएंडडी हानि को दुनिया में सबसे ज्यादा बताया गया था। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट (वर्ष 2018) में कहा गया था कि बिजली चोरी से भारत को अपनी जीडीपी का 1.5 फीसद नुकसान उठाना पड़ता है।
बिजली मंत्रालय के आंकड़ों से साफ है कि कई राज्यों में स्थिति काफी सुधरी है लेकिन बिहार, उत्तर प्रदेश, पूर्वोत्तर के राज्यों में टीएंडडी हानि का स्तर अभी भी राष्ट्रीय स्तर से काफी ज्यादा है। बिजली मंत्री आर के सिंह का कहना है कि, “पिछले दस वर्षों में बिजली की खपत भारत में 1.36 लाख मेगावाट से बढ़ कर 2.41 लाख मेगावाट हो चुकी है। इस दौरान प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 70 फीसद तक बढ़ा है। इसके बावजूद टीएंडडी से होने वाली हानि में कमी होना काफी महत्वपूर्ण है। वर्ष 2022-23 में राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत 15.4 फीसद रहा है। अब हमने बिजली वितरण कंपनियों के लिए टीएंडडी के लक्ष्य को घटा कर 12 फीसद करने का फैसला किया है।”