बिना किसी पूर्व सूचना के एकाएक बीते दिवस सीबीएसई की दसवी बारहवीं के आए परिणामों ने इस बोर्ड के दसवी बारहवीं में अध्ययनरत परिवारों के बच्चों के चेहरे पर प्रसन्नता ला दी हैं। हमारी बेटियां बेेटे भी प्रसन्नता से झूम रहे हैं तथा इन्होंने नई उंचाईयों और भविष्य के लिए रणनीति भी परिजनों संग तैयार करनी शुरू कर दी है। कोई आईएएस आईपीएस व कुछ उद्योगपति व्यापारी व डॉक्टर इजीनियर व पत्रकार बनने का भी सपना भी देखने लगेंगे। जीवनकाल में यह हमेशा सुना जाता है कि दसवी बारहवीं की पढ़ाई बच्चों के लिए चुनौतीपूर्ण होती है और इसमें जिसने मैदान मार लिया वो आगे बढ़ने में भी सफल हो जाता है। मैं छात्र छात्राओं को मिली सफलता के लिए परिजनों को श्रेय देना चाहता हूं कि अगर छात्र छात्राएं मेहनत नहीं करते तो यह स्वर्णिम अवसर नहीं आता और परिवार साथ नहीं देता तो यह डगर आसान नहीं थे। जाने माने कव्वाल हबीब पेंटर की कब्वाली बहुत कठिन है डगर पनघट की कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी की तर्ज पर सबने मिलकर इसे पार कर लिया तो इस बात का प्रतीक है कि अन्य कठिनाई भी हमारे बच्चे आसानी से पार कर लेंगे।
जहां तक सवाल स्कूल के संचालकों का खुशियां मनाने का है तो इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती है लेकिन यह कहना कि स्कूल मैंनेजमेंट के कारण छात्रों को यह उपलब्धि मिली मुझे लगता है कि यह सही नहीं है क्योंकि अगर ये नामचीन स्कूलों के प्रधानाचार्या शिक्षक और प्रबंधन 50 प्रतिशत नंबर लाने वाले छात्रों को अपने यहां पढ़कार 80 प्रतिशत नंबर लाने में सफल होते तो इनकी उपलब्धि कही जा सकती थी। जब पहले ही 70 से 75 प्रतिशत नंबर से कम बच्चे अपने स्कूलों में नहीं लेते तो इस रिजल्ट को अपनी उपलब्धि बताना बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवाना के समान कह सकते हैं। अगर बच्चे और उनके अभिभावक खुश हैं तो स्कूल संचालक भी खुश हो लें लेकिन कुछ ऐसा भी करें कि कम नंबर लाने वाले बच्चों को पढ़ाकर उच्हें उच्च शिखर तक पहुंचाने में सफल रहे तो रिजल्ट को इनकी उपलब्धि कह सकते हैं।
(प्रस्तुतिः संपादक रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
छात्र छात्राओं की मेहनत ने चमकाया स्कूलों का नाम, बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवाना के समान नाचना ठीक नहीं
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