Date: 22/11/2024, Time:

विवि की फर्जी मार्कशीट बनाने वाले गिरोह का भंडाफोड़

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आगरा 12 जनवरी। आगरा में एसटीएफ ने फर्जी मार्कशीट बनाने वाले गिरोह का भंडाफोड़ किया है। पुलिस ने गैंग के चार सदस्यों को अरेस्ट किया है जिनमें एक आगरा के डॉ. भीमराव आंबेडकर विवि का चतुर्थ श्रेणी बाबू है तो वहीं दूसरा शिकोहाबाद की जेएस यूनिवर्सिटी का टेक्निकल बाबू है। इसके अलावा ताजगंज और मधु नगर के रहने वाले दो सदस्यों को भी अरेस्ट किया है जिनमें से एक गैंग का सरगना है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, एसटीएफ ने बीती रात को थाना ताजगंज क्षेत्र के देवरी रेाड स्थित रचना पैलेस से सभी को अरेस्ट किया है। एसटीएफ ने गिरोह के पास से डॉ. भीमराव आंबेडकर विवि समेत 250 से अधिक विभिन्न यूनिवर्सिटीज की अंक तालिका बरामद की हैं। इसके आलवा यूपी समेत अन्य प्रदेशों के माध्यमिक शिक्षा परिषद की अंकतालिका और मोहरें भी मिली हैं।

अर्जुन, डॉ. भीमराव आंबेडकर विवि का चतुर्थ श्रेणी बाबू। मोहित गुप्ता, शिकोहाबाद की जेएस यूनिवर्सिटी का टेक्निकल बाबू। नेकराम, गिरोह का सरगना, ताजगंज देवरी रोड का रहने वाला। पंकज शर्मा, गिरोह का सदस्य, मधु नगर थाना सदर का रहने वाला।

एसटीएफ की गिरफ्त में आया फर्जी अंकतालिका गिरोह 25 हजार रुपये में हाईस्कूल फेल को भी बीए-बीएससी पास बना देता था। विश्वविद्यालय के कर्मचारी कोरे अंकपत्र और डिग्रियां गिरोह को उपलब्ध करा देते थे। कंप्यूटर पर सॉफ्टवेयर की मदद से अंक चढ़ाकर प्रिंट निकालने के बाद मुहर और हस्ताक्षर कर डिग्री-अंकतालिका तैयार कर देते थे। फर्जी अंकपत्र का प्रयोग निजी कंपनी में नौकरी से लेकर निजी उपयोग में हो रहा है। एसटीएफ के सीओ उदयप्रताप सिंह ने बताया कि शहर में काफी समय से फर्जी अंकतालिका-डिग्री बनाने वाला गिरोह सक्रिय है। इसकी जानकारी पर निरीक्षक हुकुम सिंह के साथ टीम को लगाया था। इसके बाद गिरोह पकड़ा गया। आरोपी नेेकराम से पूछताछ में पता चला कि वह 2007 में भी लोहामंडी पुलिस ने पकड़ा था। तब भी फर्जी अंकतालिका बरामद हुई थीं। उसको शाहगंज और हरीपर्वत पुलिस भी पकड़ चुकी है। वह तेहरा में अपना कॉलेज चलाता है। उसका आपराधिक इतिहास खंगाला जा रहा है।

एसटीएफ के निरीक्षक हुकुम सिंह ने बताया कि गिरोह दो तरीके से फर्जीवाड़ा करता था। सदस्य एक तो अलग-अलग विश्वविद्यालय और कॉलेजों में सक्रिय रहते थे। बीए, बीएससी, एलएलबी, डी-फार्मा, बी-फार्मा, बीएड आदि के बारे में जानकारी लेने आने वाले विद्यार्थियों को अपने झांसे में लेते थे। उनका अलग-अलग कॉलेज में फार्म भी भरवा देते थे। इसके बाद 1-2 लाख रुपये में फर्जी अंकतालिका दे देते थे, जब अंकतालिका की जांच होती है तो उसका कॉलेज में फॉर्म भरा होने की वजह से रिकॉर्ड निकल आता है। वहीं दूसरा तरीका फर्जी अंकतालिका सॉफ्टवेयर की मदद से तैयार करने का है।

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