माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ सहित हर जनप्रतिनिधि भयमुक्त वातावरण में सांस लेने और किसी भी तरह का बोझ आम आदमी पर ना डालने तथा सस्ता और सुलभ न्याय दिलाने की बात के साथ उसे स्वस्थ और स्वालंबी बनाए रखने के लिए वचनबद्ध नजर आता है लेकिन अगर बस अडडों रेलवे स्टेशनों आदि पर शराब की दुकानें खुलने लगी तो सब जानते हैं कि नशा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तो फिर आम आदमी स्वस्थ कैसे रह सकता है।
दूसरी ओर यह किसी से छिपा नहीं है कि वर्तमान में नागरिक सरकारी कार्यवाहियों और कुछ अफसरों द्वारा विभिन्न वाहनों से लोगों को परेशान करने के चलते और जगह जगह गंदगी आम आदमियों को नई बीमारियां प्रदान कर रहे हैं ऐसे में उसके पास रोटी कमाने के लिए काम करने के बाद जो समय बचता है उसमें वह अपने स्वास्थ्य के लिए सचेत रहते हुए काम करता है लेकिन आजकल बनाए जा रहे फालतू नियमों जैसे अब प्राइवेट वाहन मालिकों को सहेजनी होगी अपने वाहन रजिस्टेशन की फाइल। इस मामले में भी क्यों ट्रांसपोर्टर संगठित होकर विरोध करने में सक्षम है इसलिए उन्हें इससे बाहर रखा गया है दूसरी ओर शोरूमों के मालिक जो अब तक यह काम करते थे उनसे परिवहन विभाग के ज्यादातर अधिकारियों और कर्मचारियों को कई सुविधा प्राप्त होने की बात चलती है इसलिए उनका यह बोझ वाहन मालिकों पर डालने के साथ साथ सौ रूपये के स्टांप पर एक शपथ पत्र दाखिल करने का फरमान जारी किया गया। क्या ऐसे में आम आदमी अपने निजी कार्यों के लिए फुरसत कैसे निकाल पाएगा।
देश में इस समय सामान्य माहौल नजर आ रहा है। कहीं किसी प्रकार बदअमनी नजर नहीं आती है जिसे लेकर नागरिकों के देर रात घर से बाहर निकलने पर रोक लगाने की आवश्यकता हो। लेकिन एक खबर से पता चलता है कि मेरठ महानगर में रात्रि को अकारण लेट नाइट अगर कोई निकलता है तो उसे हवालात में काटनी होगी रात। सवाल यह उठता है कि शहर में ना तो कर्फ्यू है और ना कोरोना जैसी महामारी तो फिर यह आदेश क्यों। कई बार ऐसा होता है कि रात में छोटे घर और प्रदूषण रहित हवा नहीं मिल पाती इसलिए लोग सड़क पर रात्रि में ताजी हवा खाने हेतु निकल आते हैं लेकिन अब कोई ठोस सबूत नहीं बताया गया तो फिर बचना मुश्किल है। इसके पीछे उददेश्य बताया जा रहा है कि चोरी की वारदातों को रोकने के लिए ऐसा किया जा रहा है जबकि शासन स्तर पर ऐसा कोई नियम कानून नहीं बनाया गया है।
इसी प्रकार से कस्बा फलावदा में विद्युत संविदा कर्मचारी संघ ने फरमान जारी किया कि अफसरों ने दबाव दिया तो बहिष्कार करेंगे। यह किसी से छिपा नहीं है कि अगर यह बहिष्कार करेंगे तो परेशानी नागरिकों को उठानी पड़ेगी। इन खबरों को देखें तो चाकू खरबूजे पर गिरे या खरबूजा चाकू पर कटना खरबूजे को ही है। इसी प्रकार से मामला कोई भी हो उसका खामियाजा भुगतना जनता को ही पड़ेगा अगर यह बातें लागू हो जाती है तो। मुख्यमंत्री जी वर्तमान समय में जब चारों ओर से आम आदमी किसी ना किसी परेशानी को झेल रहा है तो परिवहन विभाग पुलिस और बिजली विभाग के कुछ निरंकुश अधिकारियेां और कर्मचारियों के यह आदेश लागू हो गए तो पूर्व की व्यवस्था को देखकर यह लगता है कि आम आदमी का तो जीना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि कोरोना काल में पुलिस ने जो बाहर निकलने के प्रतिबंध के चलते नागरिकों का उत्पीड़न किया था उसमें देश के कई लोगों ने आत्महत्या तक कर ली थी और शराब व नशोखोरी से कितने नुकसान उत्पन्न हो सकते हैं इन सभी को ध्यान में रखते हुए कुछ अधिकारी ऐसा माहौल ना बनाएं कि नागरिक अपने आपको गुलाम या बंधुआ मजदूर ना समझने लगे। अगर ऐसा हुआ तो शांति और कानून व्यवस्था की परेशानी उत्पन्न होगी। इसलिए स्पष्ट आदेश जिले के अधिकारियों को दिए जाएं कि जब तक कोई आदेश निर्देश ना दिए जाए तब तक कोई कानून जिले के लिए ना बने। वरना कुछ निरंकुश अफसर अपने आदेशों से नागरिकों का जीना दुश्वार कर सकते हैं।
पीएम साहब और सीएम साहब दें ध्यान! जब तक केंद्र और प्रदेश में शासन स्तर पर कोई नियम ना बने तब तक स्थानीय स्तर पर कोई ऐसा लागू ना हो ?
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