प्रयागराज 20 अप्रैल। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोशल मीडिया पर भगवान शिव की अपमानजनक तस्वीरें पोस्ट कर अपमान करने के आरोपी की मुकदमा रद्द करने की अर्जी खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा, धार्मिक भावना नागरिकों के लिए अत्यधिक महत्व रखती है। इन भावनाओं को आहत करना व्यक्तियों की गरिमा और धार्मिक मान्यताओं का अपमान है।
न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की कोर्ट ने कहा, धार्मिक मान्यताओं का उपहास हमारे लोकतांत्रिक समाज के मूलभूत मूल्यों को कमजोर करता है। ऐसे में न्यायपालिका संदेश दे कि इस तरह का आचरण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और उचित कानूनी परिणाम भुगतने होंगे। धार्मिक मान्यताओं को बदनाम करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग है।
मामले में ओवैस खान पर 4 जून 2022 को पुलिस स्टेशन छर्रा, अलीगढ़ में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया था। आरोप है कि सोशल मीडिया पर आरोपी ने जानबूझकर भगवान शिव की अपमानजनक तस्वीरें पोस्ट की थीं।
उसने सड़क पर बने डिवाइडर को शिवलिंग बताते हुए उपहास और हिंदू समाज पर अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया था। मामले में ट्रायल कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए समन जारी किया है। आरोपी ने दर्ज मुकदमों और ट्रायलकोर्ट की कार्रवाई को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की।
आवेदक के वकील ने कहा, आवेदक को झूठा फंसाया गया है, क्योंकि उसने खुद टिप्पणी पोस्ट नहीं की है बल्कि यह टिप्पणी उसके अकाउंट को हैक करने के बाद की गई है। कथित टिप्पणी कोई अपराध नहीं है, बल्कि यह एक सहज बयान है।
आवेदक के खिलाफ कोई प्रथमदृष्टया मामला नहीं बनता है, इसलिए सभी कार्रवाई रद्द की जानी चाहिए। वहीं, अपर शासकीय अधिवक्ता शशिधर पांडे ने आवेदन का पुरजोर विरोध करते हुए तर्क दिया कि जांच के बाद मामले में आरोप पत्र दायर किया गया है। आवेदक की अपमानजनक टिप्पणी से धार्मिक भावना को ठेस पहुंची थी। इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र किया, जिसके मुताबिक बोलने की स्वतंत्रता का उपयोग दूसरों की भावनाओं का उल्लंघन करने के लाइसेंस के तौर पर नहीं किया जा सकता है। वर्तमान मामले में शिवलिंग पर की गई टिप्पणी स्पष्ट रूप से आवेदक द्वारा दूसरे समुदाय की धार्मिक भावनाओं के प्रति दुर्भावनापूर्ण इरादे को दर्शाती है।
इस कार्रवाई को अनुच्छेद 19 के तहत निहित अधिकार का जामा नहीं पहनाया जा सकता है।