चौधरी चरण सिंह विवि के वैज्ञानिकों द्वारा राख में कई प्रकार की विशेषताएं खोजी गई हैं। यहां के भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा आदि सहित शोधार्थी गरिमा कोरिया की विवि में कार्यरत डॉ. सुधीर गुजरात बॉटेक्नोलॉजी की प्रो. आदि द्वारा की गई खोज के अनुसार भारतीय जीवन पद्धति में चूल्हे की राख हमेशा महत्वपूर्ण रही है। वर्तमान में हम दवाईयों पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। जबकि राख का धार्मिक और औषधीय पक्ष उज्जवल है। भारतीय जीवन पद्धति में राख इसीलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका धार्मिक और औषधीय दोनों पक्ष उज्जवल है। यही राख खेतों में पहुंचने पर पोषक तत्वों से भरी खाद बन जाती है तो शरीर पर मलने पर भस्म। माथे पर लगाते ही सनातनी तिलक। रसोई में बर्तनों को साफ करने की अचूक औषधि है। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (सीसीएसयू) के विज्ञानियों ने राख में कैल्शियम, पोटैशियम, सिलिका और कार्बन जैसे रसायनों के मिलने की पुष्टि करते हुए तीन पेटेंट हासिल किया है, वहीं नौ रिसर्च पेपर भी प्रकाशित करने में सफलता मिली है। राख में बैक्टीरिया को नष्ट करने का गुणधर्म भी मिला।
शोध के दौरान चीड़ की लकड़ी की राख में सिलिका और पोटैशियम मिला है। इसके अलावा अंडे के छिलकों की राख में सिलिका और कैल्शियम तो कंडे या उपले की राख में सिलिका व कार्बन होने की पुष्टि हुई है।
मुझे लगता है कि सरकार को इस शोध पर ध्यान देकर हवन और शमशान की राख पर भी शोध कराने चाहिए। इसके परिणाम खबर के हिसाब से निकलते हैं तो दवाईयों की बढ़ती खपत और कई बीमारियों से नागरिकों को छुटकारा मिलेगा और गरीब आदमी इसका उपयोग कर दवाईयों से बचेगा और उसका स्टेमिना भी बढ़ेगा। इसे बात से इनकार नहीं किया जा सकता। यह भी हो सकता है कि भविष्य में यह गंभीर बीमारियों से बचाने और इलाज का मुख्य साधन बन जाए। इसलिए संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए इनके प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा , डॉ. सुधीर और डॉ. गरिमा के शोध को आगे बढ़ाने के लिए इन्हें सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए क्योंकि यह हमारी पारपंरिक सोच को मजबूत करेगा।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
चुटकी भर राख का महत्व सामने लानेे के लिए प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा , डॉ. सुधीर और डॉ. गरिमा को बधाई, सरकार दे बढ़ावा
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