सावन माह की शिवरात्रि आगामी 23 जुलाई को मनाई जाएगी और यूपी व उत्तरांखड आदि राज्यों के शिवभक्त कावंड़िये 11 जुलाई से गंगाजल लेकर अपने गंतव्यों की ओर रवाना होने लगेंगे। जैसे जैसे यह शिवरात्रि पर्व नजदीक आता जाएगा कांवड़ियों की भीड़ भी बढ़ती जाएगी। अभी दूसरे प्रदेशों के शिवभक्तों का जल लेकर जाना शुरू हो गया है। पहले कांवड़ का जोर यूपी और उत्तराखंड में ज्यादा रहता था लेकिन अब दिल्ली हरियाणा राजस्थान और छत्तीसगढ़ सहित देशभर में भक्त जल लाकर अपने इष्टदेव भगवान शंकर को जल अर्पित कर मनोकामना मांगते हैं। सब श्रद्धा और समर्पण से भगवान को याद कर अगले साल भी बुलाना जैसी कामना करते हैं। आज से लगभग चार दशक पहले तक कांवड़ शिविर इतने बड़े स्तर पर नहीं लगते थे। पहले ज्वालापुर बहादराबाद रूड़की मंगलौर मुजफफरनगर गंगनहर में कांवड़ सेवा शिविर लगने शुरू हुए जहां भोजन और दवाई की व्यवस्था होती थी। अब ज्वालापुर से लेकर दिल्ली हरियाणा तक कांवड़ियों के आने वाले मार्ग पर लोग सेवा शिविर लगाते हैं। लेकिन अब जो शिविर लगते हैं वो कहीं पर एक दर्जन शिविर एक साथ लगते हैं तो कही एक एक किलोमीटर पर यह दिखाई देते हैं। इनमें विश्राम भोजन और चिकित्सा की सुविधाएं होती हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ मिलते हैं।
इसी हिसाब से उत्तराखंड यूपी दिल्ली के उच्च अधिकारी आपसी तालमेल बनाकर व्यवस्था बनाते हैं। बीते दिवस कांवड़ मेले को लेकर यूपी और उत्तराखंड के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक होना शुरू हो गई और जिलों में भी रोज ही तैयारियों की समीक्षा चल रही हैं। हर जिले के अधिकारियों में जिम्मेदारी बांटने के साथ ही जोन और सेक्टर बांटकर 24 घंटे संचालित होने वाले कॉल सेंटर बनाए जा रहे हैं। हर कोई कांवड़ मेले की सफलता और शिवभक्तों की सेवा के लिए हर संभव प्रयास करता है। देखने में आ रहा है कि व्यवस्थाएं हर स्तर पर होती है और घोषणाओं को लागू करने के प्रयास भी किए जाते हैं मगर शिवरात्रि आते आते नियम कानून सब हवा हवाई हो जाते हैं क्योंकि जिन बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए वो दिया नहीं जाता और भीड़ आने पर कुछ नहीं किया जा सकता। लगभग तीन सप्ताह अभी शिवरात्रि के हैं। 15 दिन यात्रा शुरू होने मंे भी हैं। शासन प्रशासन व्यवस्थाओं को लागू कराने के लिए कुछ सुझाव हैं जिम्मेदार प्रदेश और जिले के अधिकारी दें ध्यान
1 यात्रा शुरू होने से पूर्व जुलाई के पहले सप्ताह में हरियाणा उत्तराखंड यूपी के प्रशासन को थानों में एसडीएम सीओ और थानेदार की उपस्थिति में शिविर लगाने वालो और कांवड़ियों की बैठक बुलाई जाए और जो परेशानियां आती हैं उनके लिए सहयोग मांगा जाए और शिविर लगाने वालों की सूची तैयार की जाए।
2 इस मौके पर डीजे का विरोध कोई नहीं करता है यह सब जानते हैं लेकिन कुछ लोग इतनी तेज आवाज में इन्हें बजाते हैं कि मकानों की दीवारें हिल जाती हैं और कमजोर दिल वालों को परेशानी होती है इसलिए डीजे संचालकों की बैठक कर लेकर इन्हें आवाज कम करने के लिए कहा जाए।
3 शिवभक्तों के सेवा शिविर की सड़क से दूरी बनाने की जिम्मेदारी थानेदार व सीओ को सौंपी जाए। मेरठ से बाहर के कांवड़ियों को कांवड़ मार्ग से ही जल ले जाने की व्यवस्था बनाई जाए। मोदीनगर के कांवड़ियों को परतापुर बाईपास से निकाला जाए। मेरठ शहर के कावंड़ियों को ही शहर में आने की अनुमति दी जाए जिससे नागरिकों को होने वाली परेशानियों से बचाया जा सके। जब कांवड़ियों का जोर कम होगा तो आवागमन मंें परेशानी नहीं होगी।
4 रोडवेज और रेलवे को शिवभक्तों को लाने ले जाने की पूर्ण व्यवस्था की जाए।
5 कांवड़ मार्गों पर बिजली के खंबों पर पॉलिथीन मानक के अनुसार लगाई जाए। इससे हादसों से बचा जा सकता है।
6 कांवड़ मार्ग में जो पेड़ सही नहीं माने जाते वहां बैरिकैंिडंग कराई जाए जिससे कांवड़िये बचकर निकल सके।
मुझे लगता है कि यह कुछ ऐसी व्यवस्थाएं है जिसे उच्च अधिकारियों से सलाह मशविरे से जिले के अधिकारी बनाएं तो कांवड़िये सही सलामत गंतव्य पहुंचकर जलाभिषेक कर सकते हैं। यह बात विश्वास से कही जा सकती है। कुल मिलाकर कहने का मतलब है कि तैयारियों के हिसाब से व्यवस्था बना ली जाए तो यह कांवड़ यात्रा सुखद और खुशहाली के माहौल में हो सकती है क्योंकि दो दशक में जो देखा उसके अनुसार शांति और कानून व्यवस्था के लिए पुलिस प्रशासनिक अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते दिखाई देते हैं लेकिन अन्य विभाग अपनी जिम्मेदारियों पर ज्यादातर मामलों में पूरा सिद्ध नहीं उतरते।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सिर्फ तैयारी और घोषणाओं से कांवड़ यात्रा सफल हो पाना संभव नहीं, जिम्मेदार थानों में मीटिंग और सड़क से हटकर शिविर लगाने व डीजे की आवाज कम कराएं तो अच्छा है
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