asd इमरजेंसी के 50 साल, हिटलर ने भी 1932 में लगाया था आपातकाल! इंदिरा जी ने इमरजेंसी क्यों लगाई, उत्पीड़न के लिए कौन जिम्मेदार है वो अलग बात है; मुझे भी दारोगा पकड़कर ले गए थे, वर्तमान में अगर इसे स्वर्णकाल बनाना हेै तो जनप्रतिनिधियों को सक्रिय होना होगा

इमरजेंसी के 50 साल, हिटलर ने भी 1932 में लगाया था आपातकाल! इंदिरा जी ने इमरजेंसी क्यों लगाई, उत्पीड़न के लिए कौन जिम्मेदार है वो अलग बात है; मुझे भी दारोगा पकड़कर ले गए थे, वर्तमान में अगर इसे स्वर्णकाल बनाना हेै तो जनप्रतिनिधियों को सक्रिय होना होगा

0

12 जून 1975 को समाजवादी नेता राजनारायण की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जो रायबरेली संसदीय क्षेत्र से चुनी गई थी का निर्वाचन अवैध घोषित होने के बाद इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा की। जिसके कल 50 साल पूरे हो जाएंगे। इसे हम इमरजेंसी और उस काल की याद करने जा रहे हैं। बता दें कि दुनिया में यह आपातकाल पहला नहीं था। इससे पूर्व 1932 में हिटलर द्वारा भी इसी तरह से जर्मनी में आपातकाल थोपा गया था। बाद में 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की। क्योंकि इसके तुरंत बाद समाचार पत्रों पर निगरानी शुरू कर दी गई थी इसलिए बताते हैं कि एक दो दिन बाद लोगों को आपातकाल की जानकारी हुई क्योंकि तब इंटरनेट और सोशल मीडिया नहीं था। आपातकाल यानी मीसा के 21 माह के काल में कुछ अच्छा और कुछ बुरा अनुभव हुआ क्योंकि मीसा में 35 हजार और डीआईएसआईआर ने 75 हजार से अधिक नेता और कार्यकर्ता जेल भेजे गए बताए जाते हैं। इस दौरान 18 साल से 20 साल के युवाओं की नसबंदी की गई क्योंकि उस समय सर्वेसर्वा इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी का अनकहे रूप में शासन चल रहा था। जितना मैने उस समय देखा उसके हिसाब से इस 21 माह के काल में इंदिरा के कम और संजय गांधी के आदेश सरकारी अधिकारी और मंत्री माना करते थे। इंदिरा गांधी ने अपना निर्वाचन निरस्त हो जाने के बाद यह निर्णय क्यों लिया इसे लेकर भी अलग अलग मत हो सकते हैं। क्योंकि सामान्य रूप से देखें तो आम आदमी भी व्यवस्थाओं केा बचाने की कोशिश करता है और जिसके पास ताकत होती है वो हर स्तर पर निर्णय ले सकता है। यह किसी से छिपा नहीं है कि जब आदमी सत्ताविहीन हो जाता है तो अपने भी पराए हो जाते हैं। और स्थिति क्या होती है यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि संजय गांधी और मंत्रियों ने कितने ही निर्णय इंदिरा गांधी से भी छिपाए। एक मुस्लिम क्षेत्र की घटना एक जो फिल्म में देखी उससे भी ऐसा ही अहसास होता है कि संजय गांधी निरंकुश हो गए थे। उन पर किसी का बस नहीं था। ऐसे में इंदिरा गांधी की सहेली पुपुल जयकर ने अपनी किताब में लिखा कि कैसे खुद इंदिरा जी अनर्थ होते देख विचलित हो गई और परेशान होकर विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक जे कृष्णामूर्ति के पास गईं और उनसे चर्चा के बाद उन्होंने 21 महीने बाद 1977 में इमरजेंसी समाप्त और चुनाव कराने का फैसला लिया। अगर ध्यान से सोचें तो उस समय अफसर अपने कार्यालयों में सही समय से बैठकर जनता की सुनने लगे थे। ट्रेन और बसें समय से चलने लगी थी। क्योंकि जमाखोरी के खिलाफ बड़ा अभियान चल रहा था तो नागरिक सुविधाएं भी ज्यादा प्राप्त हो रही थी। लेकिन धीरे-धीरे अपनी लोकतांत्रिक परंपराओं के लिए विश्व में जाने पहचाने वाले अपने देश में जो पुलिसिया आतंक शुरू हुआ उसने इमरजेंसी को काला अध्याय बनाने में बड़ी भूमिका निभाई क्योंकि जिस प्रकार से इंदिरा गांधी ने जे कृष्णामूर्ति की सलाह पर इमरजेंसी समाप्त कर चुनाव कराने का निर्णय लिया। वो इस बात का प्रतीक भी है कि जैसा हुआ वो शायद इंदिरा जी भी नहीं चाहती थी। यह भी सही है कि जयप्रकाश नारायण जी के आहवान पर जिस प्रकार उस समय युवाओं ने आंदोलन किए और जेल जाने से नही डरे उसने भी शायद इंदिरा गांधी को यह अहसास कराया कि कुछ गलत हो चुका है। जैसा सुनने को मिलता है संजय गांधी इससे और उग्र हो गए और नेताओं को जेलों में ठूंसना शुरू करा दिया और मीडिया पर अंकुश था ही। बताते हैं कि जब अधिकारी हस्तारक्षर कर देता था तब समाचार पत्र छपते थे। जो भी हुआ वो गलत था या सही सबका अपना दृष्टिकोण है। कोई उसे लोकतंत्र पर बेड़ियां बता रहा है तो कुछ का कहना है कि जेल जैसा बन गया था देश। कुछ कहते हैं कि अनुशासन पर या आफत पर्व इमरजेंसी लोकतंत्र का काला अध्याय बन गई थी। इसके लिए संजय गांधी जिम्मेदार थे या इंदिरा गांधी इसका फैसला अब नहीं हो सकता क्येांकि दोनों ही हमारे बीच नहीं हैं। अब इमरजेंसी के 50 साल पूरे होने पर देशभर में सत्ताधारी दल विरोध दिवस मनाने जा रहा है ऐसा होना भी चाहिए। क्योंकि अगर राजनीतिक विचारों के मतभेद वाले इस ओर जनता का ध्यान नहीं खीचेंगे तो और मजबूती कैसे मिलेगी।
प्रिय पाठकों इमरजेंसी से मेरी यादें भी काफी जुड़ी हैं क्योंकि मीसा लगे एक साल बीता होगा कि जमाखोरी और मुनाफाखोरी के खिलाफ कांग्रेसियों द्वारा शुरू किए गए आंदोलन के तहत देशभर में व्यापारियों के यहां छापेमारी की जा रही थी। उस समय युवा रहे अधिवक्ता रोहिताश्व अग्रवाल, कुंवरपाल यादव, शहर कांग्रेस अध्यक्ष के साथ मुनाफाखोरी का विरोध करने निकले और सोतीगंज घासमंडी गंज बाजार व सब्जी मंडी में पहुंचे तो तीखी बहस के बाद गेंहू व अन्य खाद्य सामग्री विक्रेता ने विरोध किया जिस पर युवा व्यापारी विरोध में उतरे और कांग्रेसियों को घेर लिया। हंगामे की खबर सुनकर पुलिस पहुुंच गई। ज्यादातर लोग निकल भागे। उस समय मैं गंज बाजार स्थित सिंघल भंडार पर चार रूपये महीना की नौकरी करता था। उस समय पुलिस के हाथ कोई आया नहीं तो मुझे पकड़कर थाने ले गए। इमरजेंसी का हौव्वा कह लो या जान बचाने का डर कई घंटे तक ना कोई देखने आया ना मिलने और पुलिस वाले डंडा चला रहे थे। तभी कुछ कांग्रेस वहां पहुंचे और उन्होंने इंस्पेक्टर से यह कहकर मुझे थाने से निकाला कि यह लड़का वहां नहीं था। उसके बाद भी खाद्य सामग्री का ब्लैक चरम पर था। उसे काबू करने के लिए कांग्रेसी गुटों में बंटकर बाजारोें में घूमा करते थे। कल 25 जून को हम 50वीं सालगिरह विरोध इमरजेंसी का हम मनाने जा रहे हैं। जब लोगों पर ज्यादतियां हुई और आज भी माननीय अदालत पुलिस पर जो टिप्पणी कर आदेश दे रही हैं उसे देखकर एक बात कही जा सकती है कि देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ जी, गृहमंत्री अमित शाह साहब, लोकतंत्र को जिंदा रखने और आम आदमी की समस्या समाधान के लिए जो प्रयास कर रहे हैं वो सराहनीय है लेकिन पुलिस के उत्पीड़न की जो घटनांए सुनने पढ़ने को मिलती है वो पुरानी यादें ताजा करने में कम नहीं है। विरोध दिवस मनाने वालों की भी सराहना की जानी चाहिए कि वो पांच दशक बाद विरोध दिवस मना रहे हैं जो बड़ी बात है। इसके साथ ही अगर पुलिस उत्पीड़न भ्रष्टाचार खाद्य साम्रगियों में मिलावटखोरी रोकने के लिए अफसरों की लापरवाही रोककर इन्हें अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिए सक्रिय किया जाए तो यह काल स्वर्ण अक्षरों में लिखा जा सकता है। मगर इसके लिए विरोध के साथ आम आदमी की समस्याओं के समाधान के लिए गांधी वादी तरीके आंदोलन किए जाने की जरूरत है। मजबूत इच्छाशक्ति से समाज हित में हम काम करेंगे तो पीएम मोदी का यह कार्य अपेक्षित राष्ट्र की संकल्पना में साकार हो सकता है। जहां तक पुरानी यादों की बात है तो वो कितना याद रहती है उसका अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि इमरजेंसी के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस का लगभग सूपड़ा साफ हो गया था और उसके बाद के चुनावों में वह पूर्ण बहुमत से सरकार में आई और इंदिरा गांधी पीएम बनी।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

Share.

Leave A Reply

sgmwin daftar slot gacor sgmwin sgmwin sgm234 sgm188 login sgm188 login sgm188 asia680 slot bet 200 asia680 asia680 sgm234 login sgm234 sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin asia680 sgmwin sgmwin sgmwin asia680 sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgm234 sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin sgmwin ASIA680 ASIA680