प्रयागराज 11 जून। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 3/7 में एफआइआर दर्ज होने मात्र से सस्ते गल्ले की दुकान का लाइसेंस निलंबित / निरस्त नहीं किया जा सकता। उसकी विधिवत जांच होनी चाहिए। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने मेरठ, आगरा, मुरादाबाद, अमरोहा सहित तमाम जिलों के दुकानदारों की याचिकाएं स्वीकार करते हुए केवल एफआइआर दर्ज होने के कारण लाइसेंस निरस्त किए जाने संबंधी आदेशों को रद कर दिया है और तत्काल दुकान बहाल करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाटिया की एकल पीठ ने मेसर्स साजिद, यतीस कुमार सहित कुल 22 याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा, अधिकारियों ने लाइसेंस निलंबित /निरस्त करने में पांच अगस्त 2019 के शासनादेश व हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का पालन नहीं किया। कोर्ट के समक्ष विधि प्रश्न यह था कि क्या एफआइआर दर्ज होने मात्र से बिना विधिवत जांच किए सस्ते गल्ले की दुकान का लाइसेंस निलंबित /निरस्त किया जा सकता है?
याची के अधिवक्ता विशाल टंडन का कहना था कि जिला आपूर्ति अधिकारी मेरठ ने बिना जांच व सुनवाई का मौका दिए केवल एफआइआर दर्ज होने के आधार पर लाइसेंस निरस्त कर दिया। पूरी जांच नहीं की, चार्जशीट नहीं दी और न ही गवाहों का परीक्षण करने दिया। आदेश के खिलाफ अपील भी कमिश्नर ने खारिज कर दी। सरकार के पांच अगस्त 2019 के शासनादेश का भी पालन नहीं किया जिसमें प्रारंभिक जांच करना जरूरी है। हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ द्वारा बजरंगी तिवारी केस में दिए गए फैसले का पालन नहीं किया। इसमें एफआइआर दर्ज होने के आधार पर ही लाइसेंस निरस्त करने किए जाने को अवैध करार दिया गया है।
राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता अशोक मेहता का तर्क था कि जांच में आधार कार्ड के दुरुपयोग से राशन की कालाबाजारी सामने आई है। इसके बाद एफआइआर दर्ज कर कार्रवाई की गई है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा, ‘बिना जांच केवल एफआइआर दर्ज होने के आधार पर दुकान का लाइसेंस निरस्त नहीं किया जा सकता।’ आदेश रद कर सभी
गाजिनाना जी है।