नोएडा 11 जून। दस वर्ष पहले अपहरण के बाद लापता हुए बेटे के मिलने की उम्मीद खो चुके माता-पिता की खुशी का ठिकाना उस समय नहीं रहा, जब उनके सामने पुलिस बेटे को लेकर आ गई।
दस वर्ष में बच्चे से किशोर अवस्था में पहुंचने से कद-काठी व चेहरे का हुलिया बदल गया था, लेकिन मां की ममता और चाचा को दाहिने हाथ की कटी अंगुली और चेहरे पर कट के निशान से हिमांशु को पहचानने में तनिक भी देर नहीं लगी। मां बेटे को गले लगाकर फफक पड़ी। बेटा भी माता-पिता, बड़े भाई और चाचा से मिलकर रो पड़ा।
मूलरूप से मैनपुरी के पलिया गांव के रघुवीर मिश्रा पत्नी अनीता व दो बेटे अंशुल एवं हिमांशु संग नोएडा के गेझा गांव में किराये पर रहते थे। रघुवीर सेक्टर 108 स्थित एक भवन में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता था। छह नवंबर 2015 को स्कूल जाते समय सात वर्षीय छोटे बेटे हिमांशु(कक्षा दो) का राजमिस्त्री का काम करने वाले मंगल कुमार उर्फ मंगलदास ने अपहरण कर लिया। मंगल मूलरूप से कानपुर का रहने वाला था और दिल्ली के बदरपुर में किराए के मकान पर लेकर रह रहा था।
मंगल के कोई बच्चा नहीं था। पत्नी का देहांत हो गया था। अकेलेपन से बचने के लिए उसने हिमांशु का अपहरण किया और साढ़े आठ साल अपने साथ बदरपुर किराए के मकान पर रखा। उसका नाम बदलपुर प्रियांशु रख दिया था।
वहीं पुलिस और स्वजन के सात साल तक काफी प्रयास के बाद भी हिमांशु नहीं मिला तो केस में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। करीब चार माह पहले रघुवीर भी परिवार संग मैनपुरी चले गए।
डेढ़ वर्ष पहले मंगलदास ने हिमांशु को अपने बड़े भाई राजू को सौंप दिया। बीते 28 मई को मंगलदास ने सूरजकुंड से एक अन्य सात वर्षीय बच्चे का अपहरण किया, लेकिन सीसीटीवी कैमरे में कैद होने की वजह से पकड़ा गया। पुलिस को उसने हिमांशु के अपहरण की कहानी भी बताई।
सोमवार रात को पुलिस हिमांशु को लेकर नोएडा के गेझा गांव आई। वहां सुरक्षा गार्ड का बड़ा बेटा अपने चाचा के साथ रह रहा था। उनसे हिमांशु को मिलवाया तो उन्होंने पहचान लिया। मंगलवार सुबह मैनपुरी से सुरक्षा गार्ड और उनकी पत्नी भी बेटे से मिलने नोएडा पहुंच गए। कद काठी व चेहरे का हुलिया बदला हुआ था, लेकिन माता-पिता ने भी पहचान लिया। इतने लंबे समय बाद बेटे को पाकर पूरा परिवार फपक पड़ा। वह बच्चे के मिलने की आस छोड चुके थे। हिमांशु को सकुशल बरामद करने के बाद फरीदाबाद पुलिस ने नोएडा फेज दो थाना पुलिस से संपर्क किया।
2015 में थाना क्षेत्र से लापता हुए बच्चोंं की जानकारी जुटाई, लेकिन प्रियांशु नाम का कोई बच्चा लापता नहीं हुआ था। ऐसे में बच्चे से जानकारी की तो उसने अपना नाम हिमांशु होना भी बताया। इससे हिमांशु के स्वजन तक जानकारी पहुंची। 2015 में हुई एफआईआर पर नंबर रघुवीर के भतीजे संतोष दुबे का था।
पुलिस ने हिमांशु के मिलने के बारे में बताया तो वह चौंक गया। उन्होंने यह जानकारी रघुवीर को फोन से दी। स्वजन ने सच्चाई जानने के लिए हाथ की अंगुली कटी होने व चेहरे पर निशान के बारे में पूछा तो पुलिस ने इसकी तस्दीक की।
इससे विश्वास होने पर बड़े बेटे अंशुल को पहचान के लिए भेजा। बेटे को दस साल बाद आंखों के सामने पाकर उनके चेहरे खुशी से खिल गए।