कानपुर देहात 30 मई। एक मासूम की पहली सांसें डस्टबिन की गंदगी में दम तोड़ गईं, क्योंकि जिन हाथों में उसे सहारा मिलना चाहिए था, वे हाथ सोए हुए थे। बुधवार रात लगभग तीन बजे मेडिकल कॉलेज के महिला अस्पताल में नींद में डूबे स्टाफ ने न सिर्फ एक प्रसूता की चीखों को अनसुना किया, बल्कि उसके बच्चे को जीवन और मौत के बीच झूलने के लिए छोड़ दिया। नतीजा? बेड पर प्रसव के बाद नवजात पास में रखे डस्टबिन में गिर गया। इलाज के कुछ घंटों के बाद नवजात ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
उधर, सीएमएस की तरफ से गठित जांच समिति को डॉक्टर और स्टाफ नर्स ड्यूटी पर नहीं मिले। समिति ने निलंबन की संस्तुति की है। हालांकि, सीएमओ ने दोनों की बर्खास्तगी के लिए शासन को पत्र लिखा है।
कानपुर देहात रूरा थाना क्षेत्र के सुनील नायक की पत्नी सरिता को प्रसव पीड़ा हुई। रात लगभग डेढ़ बजे मेडिकल कॉलेज लाया गया। स्टाफ ने औपचारिकता निभाते हुए भर्ती किया और फिर सब सोने चले गए। न कोई डॉक्टर, न कोई नर्स, न कोई इंसानी जुबान, न सुनने वाला कोई कान।
रात दो बजे महिला ने बेड पर बच्चे को जन्म दिया। लेकिन कोई मदद न मिलने के कारण नवजात पास में रखे गंदगी से भरे डस्टबिन में गिर गया। मां ओमवती ने चीख-चीख कर स्टाफ को जगाया, गिड़गिड़ाई, लेकिन नींद इन ‘जिम्मेदारों’ पर भारी थी। बच्चा एसएनसीयू में भर्ती तो हुआ, मगर सुबह 10 बजे उसने दम तोड़ दिया।
जिस नवजात ने दुनिया की पहली सांसें लीं, उसे अस्पताल के सिस्टम ने डस्टबिन में फेंक दिया। इससे ज्यादा अमानवीयता और क्या होगी?
परिवार के मुताबिक, स्टाफ ने घटना को दबाने की कोशिश की। दोपहर में बिना किसी स्पष्टीकरण के मृत्यु प्रमाणपत्र थमाया गया और शव ले जाने को कहा गया। पीड़ित परिवार ने डायल 112 पर कॉल कर पुलिस को सूचित किया, तब कहीं जाकर मामला उजागर हुआ।
वही पूरे मामले को लेकर डॉ. सज्जन लाल वर्मा, प्राचार्य, मेडिकल कॉलेज कानपुर देहात ने बताया है कि जांच में साफ हुआ कि डॉ. रश्मि पाल और स्टाफ नर्स प्रियंका सचान ड्यूटी के समय मौजूद ही नहीं थीं। जांच समिति ने दोनों को दोषी पाया है और निलंबन की संस्तुति की है। दोनों की बर्खास्तगी के लिए शासन को पत्र भेजा है।