आज हम चौधरी चरण सिंह साहब की 38वीं पुण्यतिथि मना रहे हैं। दो बार यूपी के मुख्यमंत्री और फिर उप प्रधानमंत्री और फिर देश के पांचवे प्रधानमंत्री बने चौधरी साहब ईमानदारी और सच्चाई के प्रतीक थे। मेरा भी उनसे निकट का संबंध रहा। मैंने देखा कि अगर वो एक सख्त छवि के नेता थे तो निर्मल मन के मुखिया भी थे इसलिए लोकदल के नेता कार्यकर्ता उनका सम्मान करने के साथ उनसे बहुत कुछ सीखते भी थे। प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने मुझे मेरठ इकाई का महासचिव बनाया जिसे लेकर उस समय टाइम्स ऑफ इंडिया आदि में चर्चा हुई कि देश के पीएम को इतनी फुरसत कहां से हैं मगर उनका यह काम दर्शाता है कि वो जातिवाद में विश्वास नहीं रखते थे। उन्हें हर वो व्यक्ति प्रिय था जो ईमानदारी से कार्य और जरूरतमंदों की सहायता करे। चौधरी साहब ने दो कानून भी दिए चकबंदी अधिनियम और जमींदारी उन्मूलन अधिनियम लागू कराए और किसानों को हक दिलाया लेकिन वो पटवारी व्यवस्था के विरोधी रहे। और इस व्यवस्था को उन्होंने चौधरी साहब की राजनीतिक इच्छाशक्ति कितनी मजबूत थी कि उन्होंने बागपत के माया त्यागी कांड में सत्ता छोड़ मैदान में उतरने का साहस दिखाया। खबरों से पता चलता है कि दो बार यूपी के सीएम रहे चौधरी साहब ने मेरठ आगरा विवि से लॉ की डिग्री की और जनता पार्टी का गठन कर कांग्रेस के खिलाफ मजबूत विपक्ष खड़ा किया। इंजीनियर बन देश और गांवों में सुविधाओं का संचार करने के लिए उन्होंने रूड़की इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश के लिए परीक्षा दी। 30 सीट में 29 वां नंबर उनका आया। ड्राइंग में कम नंबर आने पर उनसे कम नंबर वाले को प्रवेश मिला। इस घटना ने उन्हें अंतरमुखी बना दिया और सोचने की क्षमता को बढ़ावा दिया। वो जब किसी विषय पर बोलते थे तो आंकड़े उनकी अंगुलियों पर होते थे। बेगमपुल स्थित भोपाल सिंह नर्सिंग होम के संस्थापक डॉ. भोपाल सिंह ने जानकारी अनुसार चौधरी चरण सिंह को छात्रवृति दी थी। अपने जीवन की शुरूआत से ही वो गरीब मजदूर किसान और असहायों के साथ ईमानदार युवाओं को प्रोत्साहन देते रहे। चौधरी साहब समयानुसार निर्णय लेने और इच्छाशक्ति के मामले में मजबूत नेता के रूप में पहचाने जाते थे। अनुशासनहीनता उन्हें बर्दाश्त नहीं थी। ऐसे महान राजनेता रहे चौधरी साहब के सानिध्य में मुझे भी बहुत कुछ सीखने को मिला। दसियों बार किसान आंदोलन और मजदूरों की समस्याओं को लेकर चलाए गए आंदोलनों में मैं भी शामिल रहा। जिस माया त्यागी कांड को लेकर वह मैदान में उतरे उसमें मैंने भी सक्रिय भूमिका निभाई थी क्योंकि इस घटना का विरोध कर रहे नेता ओमवीर सिंह को जब पुलिस पकड़कर मेरठ लाई तो बेगमपुल पर हुई मुलाकात में जब इस घटना का पता चला तो एमएलसी तीरथ सिंह, मुरादनगर से विधायक को खबर दी और भीड़ इकटठा हो गई और धीरे धीरे यह आंदोलन राष्ट्रीय हो गया क्योंकि यह उस समय की एक घिनौनी घटना थी।
उस दौरान चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में जगत सिंह जी नरेंद्र सिंह एडवोकेट प्रभुदयाल रामदयाल शखावत हुसैन तीरथ सिंह कटार सिंह जैसे प्रमुख नेता सक्रिय थे। चौधरी साहब युवाओं को बढ़ावा देेने में अग्रणी रहे। जब देंवेद्र सिह मेरठ कॉलेज के प्रधान बने तो उनके कार्यक्रम में चौधरी साहब मेरठ आए। एक घटना मुझे याद है कि जब चौधरी नरेंद्र पाल के निवास पर एक कार्यक्रम में भाग लेने चौधरी साहब यहां आए तो नरेंद्र सिंह एडवोकेट ने कहा कि रालोद का अहसास तो शहर में रवि बिश्नोई ही कराते हैं। जिस पर उन्होंने मुझे शाबाशी दी। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि देश के पांचवे पीएम बने चौधरी चरण सिंह राजनीतिक एवं किसान नेता व पार्टी अध्यक्ष और एक पीएम का नाम ही नहीं था वो एक विचारधारा थे। किसान परिवार में जन्म लेकर देश की सत्ता के शिखर तक पहुंचे चौधरी साहब के रूप में उस महापुरूष को याद करते हैं जिसने भारतीय राजनीति को गांव खेत से जोड़कर नई दिशा दी। वो ऐसे नेता थे जो धर्म जात से नहीं बंधे। उनके लिए सबसे बड़ा धर्म किसान मजदूर और देश और खेती के लिए संघर्ष करने वाले सादगी से पूर्ण नेता थे। उनकी ईमानदारी के लिए आज भी उन्हें जाना जाता है। चौधरी साहब उस समय भी सर्वसमाज के नेता के रूप में स्थापित थे क्योंकि जब उन्हें मौका मिला तो सबसे पहले वैश्य समाज से संबंध सेठ पृथ्वीनाथ को आगे बढ़ाया। सरदार तीरथ सिंह को एमएलसी बनवाया और कैंट बोर्ड के सदस्य गजाधर तिवारी को खुर्जा से लोकसभा चुनाव लड़ाने का वादा किया। यह बातें दर्शाती हैं कि चौधरी साहब अपने आप में एक व्यक्तित्व नहीं पूरी समाज की यूनिवर्सिटी थे और उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री रहते हुए इजरायल के साथ कूटनीतिक रिश्ते बढ़ाए। 15 अगस्त 1979 को ऐतिहासिक भाषण दिया। उनकी ईमानदारी की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी कि हम सबसे विदाई के वक्त उनके पास न खेती थी ना अपना मकान। 1902 में हापुड़ के ग्राम नूरपुर में जन्में और 29 मई 1987 को बैंकुंठ धाम चले गए।
चौधरी चरण सिंह का सफर
जन्म: 1902 में हापुड़ जिले के नूरपुर मंडैया गांव में हुआ, मृत्यु 29 मई 1987 दिल्ली में
सियासत का सफर
देश के पांचवे प्रधानमंत्री
28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक
उप प्रधानमंत्री 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979
तक
केंद्रीय वित्त मंत्री 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979
तक
केंद्रीय गृह मंत्री 24 मार्च 1977 से एक जुलाई 1978 तक
उप्र के मुख्यमंत्री 3 अप्रैल 1967 से 25 फरवरी 1968 तक और 18 फरवरी 1970 से एक अक्तूबर 1970 तक
उप्र सरकार में राजस्व मंत्री 1952
राजनीतिक पार्टी स्वतंत्रता सेनानी, 1967 तक कांग्रेस में रहे और उसके बाद जनता पार्टी सेक्यूलर 1979 में बनाई , 1937 में बागपत की छपरौली सीट से लेजिस्लेटिव एसेंबली सदस्य चुने गए। आगरा यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री लेकर सत्याग्रह आंदोलन में कूदे
1930 में नमक कानून तोड़ने पर छह माह जेल में रहे
उनके बारे में जितना कह लो कम है लेकिन एक बात जरूर थी कि वो छोटे से छोटे कार्यकर्ता को नाम से जानते थे। बुलंदशहर में एक जनसभा में बैठे फकीर को उसका नाम लेकर उसे अपने पास बुला लिया। उसी प्रकार घमंडी लाल साईकिल से पूरे देश में प्रचार करते थे। उन्हें चौधरी साहब का आशीर्वाद प्राप्त था। शिवाजी रोड पर अपनी बहन और भांजे के यहां आते थे तो राजेंद्र सिंह उनसे मेरे बारे में चर्चा किया करते थे। इसलिए उनका आशीर्वाद मेरे साथ रहा और लगता है कि मेरे में मजबूत इच्छाशक्ति और कुछ भी करने की सोच बनी रहती है वो चौधरी साहब के सानिध्य का परिणाम कह सकते हैं। आज डॉ. राजकुमार सांगवान बागपत से सांसद है तो नरेंद्र खजूरी एससी-एसटी आयोग के सदस्य हैं और चौधरी साहब पौत्र जयंत चौधरी केंद्र में मंत्री है और चौधरी साहब के द्वारा शुरू की नीति को आगे बढ़ाकर गरीबों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। चौधरी चरण सिंह साहब की 38वीं पुण्यतिथि पर उन्हें नमन करता हूं। 12 तुगलक रोड पर जाने से दिल्ली का रास्ता देखा। तभी अनपढ़ होने के बाद भी पढे लिखों का काम कर रहा हूं। शायद यह उन्हीं का आशीर्वाद है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
एक विचारधारा थे चौधरी चरण सिंह
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