हम जबसे पैदा होते हैं तब से हमारे रिश्तें विभिन्न नामों से परिवार के सदस्यों से जुड़ने शुरू हो जाते हैं। कुछ बंधु होते हैं तो कुछ सखा। जैसे जैसे हम बड़े होने लगते हैं और संबंध बनने लगते हैं तो लगता है कि इन्हीं के सहारे हमारा जीवन चलेगा। यह सही भी है क्योंकि एक दूसरे की मदद से हम आगे भी बढ़ते हैं और अपने काम के अनुसार सम्मान संपदा प्राप्त करते हैं। लेकिन जीवन में कितना ही हम कह लें कि हम दो शरीर एक जान हैं लेकिन जीवन में प्रेम तो इसी माध्यम से प्राप्त होता है मगर एक जिस्म दो जान होना मुश्किल है। जहां तक बंधुओं की बात है वो जीवन में हमारे जाने के बाद रोते हैं। चित्रों पर फूल चढ़ाकर यह अहसास भी कराते हैं कि उक्त व्यक्ति हमारे साथ था लेकिन ज्यादातर भूल जाते हैं और हमारे साथ जाता सखा। हम समझते हैं कि जो हमारे मित्र है वो ही हमारे सखा है लेकिन जीवन में हम जो धर्म कर्म करते हैं हमारे द्वारा एक दूसरे की सेवा की जाती है जरूरतमंदों के उत्थान और विकास के लिए हम काम करते हैं और भगवान को याद कर जो सेवा कार्य किया जाता है सही में हमारा असली सखा वही है। कहते भी हैं कि अच्छे कार्यों का फल उपर जाकर मिलता है। भगवान सेवा करने वालों को स्वर्ग में स्थान देते हैं। जो समाज में देखते हैं उससे यह लगता है कि भगवान और उसके दिखाए मार्ग पर चलते हुए जो सदकार्य हमने किए वो ही हमारे असली सखा है और उनको ही जमाना यह कहकर याद करता है कि फला व्यक्ति ने जीवनभर धर्म के लिए काम किया। फलां व्यक्ति सेवा भावी था। यह शब्द हमें मरने के बाद भी जिंदा रखते हैं हमारे लिए रोने वाले नहीं। परिवार के कुछ सदस्य ऐसे होते हैं जो हमारे अच्छे कार्यों को आगे बढ़ाते हैं और वो ही हमारे लिए मौत के बाद विचारों में जिंदा रहने का माध्यम है। दोस्तों मैं कोई धर्म प्रचारक या समाजसेवी नही हूं लेकिन जितना देख रहा हूं वो यह है कि बिना सोचे कि इस काम का फल क्या मिलेगा भगवान के दिखाए मार्ग पर चलते हुए परसेवा करते रहो। दूसरों को खुशी मिले ऐसे काम करने से हमारा जीवन सफल होगा। परमधाम को प्राप्ति होगी या नहीं वो सोचना भगवान का काम है। आपने देखा होगा कि कुछ लोग मछलियों और चीटिंयो को आटा खिलाते हैं तो कुछ नमकीन अन्य भोजन सामग्री इधर उधर रखते हैं जिससे जीव जंतु उन्हें खा सके। इसका कोई फल मिलने की आशा किए बिना किया गया कार्य ही परमसुख की प्राप्ति कराता है। जो जीवन मानवयोनि में हमें मिला उसका जितना उपयोग परसेवा के लिए कर लोगे उतना अच्छा है क्योंकि बंधुओं के लिए हम सबकुछ कर रहे हैं और सखा भी अनजान बने रहे इस पर जागरूकता से चलने आवश्यकता है। जिस प्रकार हम गाड़ी खरीदते हैं फिर भी उसकी देखभाल पर ध्यान देते हैं तो फिर ऊपर वाले द्वारा जो मानव जीवन दिया गया है उसको स्वस्थ सुरक्षित रखने के लिए हम पीछे क्यों है। कुछ धन अपनी मानसिक संतुष्टि के लिए ऐसे कार्यों में खर्च करना चाहिए जो मानसिक शांति देकर विकारों से बचा सके। इसे ही महामानवों ने स्वस्थ जीवन की संज्ञा दी होगी। परसेवा करें और जीव जंतुओं को भोजन उपलब्ध कराने में सहयोग करें। मेरी निगाह में जीवन का यही सार है बाकी सब सुख सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए जो रिश्ते बनाए हैं हम उनका उपयोग कर ही रहे हैं।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
जीव जंतुओं का ध्यान रखना परसेवा को महत्व देना ही सच्चा सखा है हर जीने मरने में हमारे साथ रहेगा इस सुख और परमधाम की प्राप्ति हेतु मिलकर करो काम
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