जब से समझने की सोच मिली हमेशा एक बात सुनते चले आ रहे हैं कि अपने वर्ग और क्षेत्र के लोगों संस्थाओं की समाजहित के साथ ही मदद करने के लिए काम करना चाहिए। इस मामले में अगर किसी विषय को प्रथम कहा जा सकता है तो वो शिक्षा ही है। क्योंकि उससे जहां समाज प्रगृति की ओर चलता है वहीं देश के विकास में योगदान मिलता है और बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर अपने परिवार और अपनों का नाम रोशन करते हैं। मगर देखने में आ रहा है कि वर्तमान में जब हमारी सरकारें शिक्षा में सुधार शिक्षा संस्थानों का विस्तार करने में कोशिश कर रही है उस समय जिन बड़े शिक्षा संस्थानों को सरकार की सोच और नीति को अपनाकर छोटे स्कूलों जो आगे नहीं बढ़ पा रहे है को गोद लेकर उनका विकास और समयानुकुल चलाने की व्यवस्था करने की बजाय फर्जी डिग्रियां बांटने में लगे हैं। कोई एमबीए की डिग्री दे रहा है तो कुछ अब कई ऐसी छवि के लोंगों को जिनका समाज में गलत तरीके से पैसा कमाने के अलावा कोई योगदान नहीं है उन्हें पीएचडी की डिग्री भी बांट रहा है। मैं किसी को पीएचडी डिग्री मिलने और अपने नाम के आगे डॉक्टर लिखने का विरोधी नहीं हूं। समाज में कोई अच्छा कार्य करता है तो अन्यों को प्रेरणा देने हेतु पात्रों को सम्मान मिलना ही चाहिए। लेकिन जैसा कि आजकल कुछ प्रकरणों को लेकर चर्चा हो रही है उससे यह लगा है कि कई बड़े नाम से संचालित विवि और कॉलेज फर्जी डिग्रियां बांटने और पीएचडी का सम्मान देने में लगे हैं। सही गलत तो चर्चा करने और डिग्री बांटने वाले जान सकते हैं।
अभी पिछले दिनों विवि से लेकर कॉलेजों तक डिग्री बांटने वाले नैक संस्थान के एक पदाधिकारी इस काम के लिए रिश्वत लेने के आरोपित हुए और उन्हें लेकर खूब खबरें छपी। आजकल यूपी के हापुड़ के मोनाड विश्वविद्यालय में फर्जी मार्कशीट व डिग्रियां बांटने की खबर चली तो जब एसटीएफ ने खोजबीन और छापेमारी की तो इसमें 1372 फर्जी मार्कशीट व डिग्री बरामद हुई। पिलखुवा कोतवाली में विश्वविद्यालय चेयरमैन सहित आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। विजेंद्र को कोर्ट ले जाती पुलिस दिखाई दे रही। छापे में टीम ने कैंपस से 1372 फर्जी मार्कशीट व डिग्री, 262 फर्जी प्रोविजनल व माइग्रेसन प्रमाण पत्र, 14 मोबाइल फोन, एक आईपैड, 7 लैपटॉप, 26 इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और 6.54 लाख रुपये भी बरामद किए हैं। आरोपियों को यहां अदालत में पेश किया गया। यहां से संदीप सहरावत नामक व्यक्ति को उसकी कार से गिरफ्तार किया गया। उसके पास से मोनार्ड विद्यालय की आठ फर्जी मार्कशीट मिली। उसने पूछताछ में विद्यालय के चेयरमैन विजेंद्र सिंह हुडडा और अन्य के साथ मिलकर फर्जीवाडे़ का खुलासा किया। इसमें विजेंद्र हुडडा के साथ मुकेश ठाकुर गौरव शर्मा सनी कश्पय इमदान विपुल ताल्यान को हिरासत में लिया गया। ऐसी भी चर्चा सुनने को मिली कि इस मामले में कई नामचीन व्यक्ति और इस शिकंजे में फंस सकते हैं। इसके बाद जो एक विषय चर्चा का उभरकर सामने आ रहा है वो पिछले दिनों जेपी ग्रुप ऑफ इंडस्टी के प्रबंध निदेशक को शोभित विवि से मिली पीएचडी की उपाधि का है। चर्चा के अनुसार रियल एस्टेट के उद्योगपित और उपभोक्ताओं पर उनका शोध का विषय रहा और उन्होंने डॉक्टर अनुज गोयल के निर्देशन में शोध किया बताते है। इसमें शैक्षिक दृष्टिकोण को महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। व्ययवसाई और नीति निर्माण का यह मार्ग प्रशस्त करता है। मैं ना तो इन्हें डिग्री देने और शोध का विरोधी हूं क्योंकि पात्र हैं तो उसे हर तरह का सम्मान मिलना ही चाहिए। लेकिन यह भी जरूरी है कि अगर किसी बात को लेकर समाज में संदेह की स्थिति उत्पन्न होती है तो उसकी समीक्षा जरूर कराई जानी चाहिए। मेरा मानना है कि जेपी ग्रुप ऑफ इंडस्टी के प्रबंध निदेशक को मिली पीएचडी उपाधि और डॉ अनुज गोयल और डॉ. उमेश कुमार के निर्देशन में जिन विषयों पर इन्हें डिग्री दी गई है उसकी शिक्षाविदों की कमेटी बनाकर सरकार या प्रशासन बंद कमरे में जेपी ग्रुप ऑफ इंडस्टी के प्रबंध निदेशक विशाल अग्रवाल से उनके शोध के बारे में चर्चा करे जिससे यह स्पष्ट हो सके कि उन्होंने क्या लिखा और क्या कहा। कुछ लोगों का यह कथन भी सही है कि जेपी ग्रुप ऑफ इंडस्टी के प्रबंध निदेशक द्वारा जो मवाना रोड पर कॉलोनी काटी है उसकी एक कमेटी बनाकर समीक्षा कराई जाए क्योंकि इस कॉलोनी में कुछ प्लॉट पास कराकर कृषि भूमि पर निरंतर अवैध रूप से कच्ची कॉलोनी को विस्तार दिया गया है। कई का कहना है कि नियमविरूद्ध काटी गई कॉलोनी में स्कूल में से रास्ता दे दिया गया है। सही गलत का जांच पर ही पता चल सकता है। हमारा काम समाज की भावनाओं से आम आदमी को अवगत कराना है। उसकी निगाह में कुछ गलत हो रहा है तो सबको बताना है। इसी व्यवस्था में उक्त लाइनों का प्रकाशन किया जा रहा है।
एक बात मैं अपने मन से कह सकता हूं कि डिग्री बांटनें में अग्रणी विवि को शिक्षा को आगे बढ़ाने का काम करना है तो हर जिले में ऐसे अनेको स्कूल है जो जर्जर भवन होने के चलते जिम्मेदारी पूरा नहींे कर पा रहे है। पीएचडी बांटने वालों से आग्रह है कि कुछ स्कूलों को गोद लें और सुविधाओं से युक्त बनाए तो हर बच्चे को साक्षर बनाने के लिए यह व्यवस्था जरूरी है जो शायद कुछ लोगों को महिमामंडित करने में लगी विवि के लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं। जिस प्रकार से मोनाड विवि में कार्रवाई की गई उसी प्रकार से पीएचडी और अंधाधुंध डिग्री बांटने वालों की जांच भी हो तो अच्छा है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
मोनाड विश्वविद्यालय का फर्जी डिग्री प्रकरण, कई नामचीन हस्तियों पर कस सकता है शिकंजा, विशाल अग्रवाल को मिली पीएचडी की भी जनहित में हो समीक्षा
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