asd असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का न्यूनतम वेतन उद्योगपतियों और श्रमिकों के बीच बातचीत से तय हो, मुख्यमंत्री जी श्रम विभाग के अधिकारियों की लापरवाही से कई योजनाएं लागू ही नहीं हो पा रही हैं

असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का न्यूनतम वेतन उद्योगपतियों और श्रमिकों के बीच बातचीत से तय हो, मुख्यमंत्री जी श्रम विभाग के अधिकारियों की लापरवाही से कई योजनाएं लागू ही नहीं हो पा रही हैं

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असंगठित क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए यह एक अच्छी खबर है कि मुख्यमंत्री के प्रयास से सरकार द्वारा श्रमिक अडडों को मॉडल के रूप में विकसित करने जा रही है। जहां डारमेट्री शौचालय कैंटीन टेªनिंग सुविधा उपलब्ध होगी। यहां श्रमिकों को दस रूपये में चाय नाश्ता और भोजन मिलेगा। यह सुनिश्चित करने के लिए खबर सामने आई है। सरकार द्वारा श्रमिकों की स्किल मैपिंग कराकर न्यूनतम मानदेय की गारंटी व्यवस्था लागू करने के निर्देश दिए गए हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि असंगठित कार्यबल को संगठित श्रम शक्ति में बदलने की दिशा में पहल की जा रही है। यूपी के सीएम योगी का कहना है कि श्रमिक और उद्योगपति एक दूसरे के पूरक है ना प्रतिर्स्पद्धी। उद्योगपति तभी सफल है जब श्रम कानूनों को संतुलित बनाया जाए। श्रम कानूनों का सरलीकरण ऐसा हो जिससे उद्योगों को सुविधा मिले और श्रमिकों के शोषण की कोई संभावना ना रहे। सीएम योगी गत दिवस प्रदेश की राजधानी में सेवायोजन की बैठक में बोल रहे थे।
मैं पिछले कई दशक से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सरकार से सुविधाएं देने और कुछ करने की मांग करता रहा हूं। मुख्यमंत्री ने इस बारे में प्रयास शुरू कर निर्णय लिया इसके लिए वो और सरकार बधाई के पात्र है। मगर इस सबके बीच यह ध्यान रखना होगा कि एसी दफ्तरों में बैठकर जो अफसर नीतियां बनाते हैं उनके ऊपर यह कार्य ना छोड़ा जाए। उन्हें निर्देश दिए जाएं कि वह दौरा करें और वहां चल रहे उद्योगों की स्थिति की समीक्षा करें। श्रमिकों से भी वार्ता की जाए कि वो क्या चाहते हैं। फिर सरकार दोनों के प्रतिनिधियों को बैठाकर ऐसा निर्णय ले कि दोनों ही खुशहाल रहे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो जो हाल ज्यादातर सरकारी कारखानों का होता है वो ही निजी उद्योगों का होने लगेगा। ऐसे में ना तो उद्योगों को बढ़ावा देने की नीति कामयाब होगी और ना श्रमिकों का भला। अगर दफतरों में बैठकर न्यूनतम वेतन तय किया जाएगा तो यह जरूरी नहीं कि हर उद्योग उसे देने में सक्षम हो।
मुख्यमंत्री जी अगर आप चाहते हैं यह प्रयास सफल हो तो इस योजना पर विचार विमर्श होना चाहिए। जिससे यह योजना सफल हो सके। आप श्रमिकों के लिए इतना सोच रहे हैं अच्छा है लेकिन जितने यह योजना लागू हो उतने शहरों में कुछ लाख से उपर होने वाले निर्माणों से जो हिस्सा श्रमिकों के लिए दिया जाता है जो आवास विकास प्राधिकरण के कुछ अफसरों की लापरवाही के चलते हो रहे अवैध निर्माणों से नहीं लिया जा रहा उसकी वसूली अगर होने लगे तो एक जिले में श्रमिकों के हित के लिए करोड़ों रूपये मिलने लगेंगे और उनसे श्रमिक और उनके परिवारों के लिए कई अभियान चल सकते है। लेकिन श्रम विभाग के अधिकारी इस वसूली पर इतना ध्यान नहीं देते। वरना जिन कच्ची कॉलोनियों और अवैध निर्माणों के खिलाफ सीएम पोर्टल पर शिकायत होती है अगर उनका सर्वे श्रम विभाग के अधिकारी करने लगे तो आपकी भावना के अनुसार श्रमिकों को लाभ मिलने लगेगा।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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