वैसे तो देश प्रदेश की सरकारें आम आदमी का विश्वास और समर्थन प्राप्त करने के लिए आए दिन जनहित में नियम कानून बना रही है। जिनका अगर पालन हो जाए तो महात्मा गांधी के सपने साकार होते देर नहीं लगेगी। कारण कुछ भी हो सभी आदेश लागू नहीं किए जाते। इसलिए कभी कभी नागरिकों के सामने विकट समस्याएं आती हैं और उन्हें अदालतों की शरण लेनी पड़ती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अदालतें जो फैसलें ले रही है ज्यादातर में आम आदमी को राहत मिलने की उम्मीद बढ़ती है।
बीते दिवस इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 11 साल पूर्व दिए गए पुराने फैसले का हवाला देते हुए मुस्लिम महिला की याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार की तो सोशल मीडिया पर अश्लीलता को रोकने की भी स्पष्टता दी। यह भी जता दिया कि लोकसेवकों पर केस को पूर्व अनुमति की जरूरत नहीं है। खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शरिया अदालत, काजी अदालत या काजियात अदालत यानी दारुल कजा आदि भले किसी भी नाम से बुलाया जाए, कानून की नजर में कोई मान्यता नहीं है। जस्टिस सुधांशु धूलिया, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने यह फैसला देते हुए कहा कि ऐसी अदालतों द्वारा जारी कोई भी निर्देश किसी पर बाध्यकारी नहीं हो सकता। पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिम महिला की अपील स्वीकार कर फैसला दिया।
पीठ ने शीर्ष अदालत द्वारा 2014 में विश्व लोचन मदन बनाम भारत सरकार के मामले में पारित फैसले का हवाला देते हुए कहा कि शरिया अदालत आदि को किसी भी नाम से पुकारा जाए, कानूनी तौर पर कोई मान्यता नहीं है। पीठ ने जस्टिस अमानुल्लाह द्वारा लिखित फैसले में कहा कि ऐसे निकायों द्वारा पारित कोई भी फैसला या निर्देश बाध्यकारी नहीं है। ऐसे निर्देशों को किसी भी बलपूर्वक लागू नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे निकायों से पारित फैसला या निर्देश कानून की नजर में तभी टिक सकता है, जब प्रभावित पक्ष मर्जी से उसे स्वीकार करे और निर्देश किसी अन्य कानून से संघर्ष न करे। शीर्ष अदालत ने अपील मान परिवार अदालत, इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में महिला और पति के बीच काजी अदालत के समक्ष हुए समझौते से संबंधित दस्तावेज पर भरोसा करने के लिए परिवार अदालत की खिंचाई की। पीठ ने साफ किया कि काजी अदालत में हुए समझौता पत्र के अवलोकन से भी यह स्पष्ट हो जाता है कि इसमें कोई स्वीकृति दर्ज नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी, सोशल मीडिया मंचों पर अश्लील सामग्री के प्रसारण पर रोक के अनुरोध वाली याचिका पर केंद्र और अन्य को नोटिस जारी किया। जस्टिस बीआर गवई,ऑगस्टीन मसीह की पीठ ने ओटीटी और सोशल मीडिया पर अश्लीलता को गंभीर मुद्दा और चिंताजनक बताते हुए कहा कि कुछ नियमन की जरूरत है। इसके समाधान के लिए कार्यपालिका और विधायिका को समुचित कदम उठाने हैं, क्योंकि यह उनके अधिकार क्षेत्र में है। गवई ने कहा कि वैसे भी, हम (न्यायपालिका) पर आरोप लग रहे हैं कि हम विधायिका,कार्यपालिका की शक्तियों का अतिक्रमण कर रहे हैं। वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लोक सेवक आधिकारिक कर्तव्यों से बाहर गैरकानूनी काम करते हैं तो केस दर्ज कराने से पूर्व मंजूरी की जरूरत नहीं होती है।
अगर न्यायाधीश फैसले देने के साथ साथ उन्हें लागू भी करवाना विभागों से सुनिश्चित करा दें तो आम आदमी उनका आभारी रहेगा क्योंकि कई बार देखने में आता है कि जो आदेश होते हैं उनका पुलिस और विभाग पालन नहीं करते और इस पर अदालतें नाराजगी भी व्यक्त कर चुकी है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
माननीय न्यायालय अपने फैसलों का पालन भी सुनिश्चित कराने की व्यवस्था कर दे तो आम आदमी राहत महसूस करेगा
0
Share.