क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रदेशों की सरकारों और राजनीतिक दलों द्वारा किया जाने वाला प्रयास कोई नई बात नहीं है। जहां तक मुझे लगता है कि मातृभाषा हिंदी के साथ साथ सभी प्रदेशों में वहां के नागरिकों को जो हिंदी जानते हैं उसे और बाकी अपनी भाषा या दोनों का ही समयानुसार उपयोग करे तो कोई बड़ी बात नहीं कही जा सकती। लेकिन भाषा की लड़ाई लड़ते लड़ते 2025-26 के लिए शुक्रवार को पेश किए जाने वाले बजट हेतु तमिलनाडु सरकार ने बीते गुरूवार को जारी लोगो में भारतीय रूपये के प्रतीक चिन्ह की जगह एक तमिल अक्षर का उपयोग जो किया गया उसे किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता। क्योंकि आज नोट पर छपनी वाली भाषा को लेकर तमिलनाडु सरकार ने कुछ हठधर्मी दिखाने की कोशिश की है। अगर इसे अभी नियमानुसार कार्रवाई कर रोका नहीं गया और ऐसा करने वालों को यह नहीं समझाया गया कि यह गलत है और इसका क्या खामियाजा हो सकता है तो कुछ अन्य प्रदेश भी देश के राष्ट्रीय बिंदुओं को लेकर इस प्रकार की बातें करने के साथ ही उनमें बदलाव की कोशिश कर सकते हैं। मैं सत्ताधारी दल सहित किसी राजनीतिक दल का समर्थक नहीं हूं। मौके पर राष्ट्र की एकता और अखंडता सुरक्षा और नागरिकों के हित और विकास में जो होता है उसी के हिसाब से बात करता हूं। इसलिए तमिलनाडु सरकार द्वारा उठाए गए निंदनीय कदम के बारे में केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के इस कथन का पूर्ण रूप से समर्थन करता हूं डीएमके के लोग अपनी भाषा या उससे संबंध तस्वीर हर कमरे में रखते हैं लेकिन राज्य सरकार की सत्तारूढ़ पार्टी के तमिल भाषा के दोहरे मापदंड है। जिसे किसी भी रूप में ठीक नहीं कह सकते। यह सरकार का एक खतरनाक मानसिकता का संदेश है जो राष्ट्रीय एकता को कमजोर करता है और क्षेत्रीय गौरव के बहाने अलगाववादी भावनाओं को बढ़ावा देता है।
बताते हैं कि रूपये का यह विवादित लोगो सनातन धर्म को लेकर कई बार विवादित टिप्पणी कर चुके सीएम के बेटे के बाद अब रूपये का विवादित लोगो गुवाहाटी के प्रोफेसर डी उदयकुमार एक द्रुमुक विधायक के पुत्र हैं और उनके द्वारा यह लोगो खबरों के अनुसार तैयार किया गया। संविधान विरोधी और एक प्रकार से राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने वाले उक्त प्रयास के लिए मुझे लगता है कि केंद्र सरकार के गृह और कानून मंत्रालय को जो अब तक हिंदी से संबंध मुददे को लेकर ज्यादातर बातों को नजरअंदाज करते रहे हैं उसे चाहिए कि इस बारे में ठोस कदम उठाए जाएं और रूपये का लोगो बदलने के लिए दोषी मानते हुए तमिलनाडु सरकार को इस विवाद के निपटने तक वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाए और यह मामला एक समिति बनाकर जिसमें विरोधी दलों के मुख्यमंत्री भी शामिल हो और उनकी राय लेकर आगे के कदम उठाए जाएं लेकिन किसी भी राष्ट्रीय स्तर के बिंदु को प्रदेश सरकारों को उसमें एक शब्द बदलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। क्योंकि अगर अब स्टालिन सरकार और रूपये के लोगो का बदलाव करने वाले सीएम के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो पहले सनातन फिर हिंदी का विरोध करने वाले अब इस राष्ट्रीय मुददे पर भी अपनी मनमर्जी दिखाने लगे हैं। केंद्र सरकार को इस पर ब्रेक अनिवार्य रूप से लगाना चाहिए। जहां तक मुझे लगता है किसी भी प्रदेश में सरकार द्वारा अभी तक रूपये के लोगो आदि के मुददे नहीं उठाए गए जिस प्रकार तमिलनाडु सरकार उठा रही है। अपने प्रदेश में जनहित की नीतियां बनाना प्रदेश सरकार का काम है लेकिन राष्ट्रीय मुददो पर निर्णय लेना केंद्र सरकार का अधिकार है। इसमें कोई अड़चन आती है तो केंद्र सरकार नियमों में बदलाव कर राष्ट्रपति से अनुमति लेकर फैसला करे लेकिन मनमर्जी चलाने का अधिकार किसी भी प्रदेश सरकार को नहीं दिया जाना चाहिए। मेरा तो ऐसा ही मानना है बाकी क्या करना है क्या होना चाहिए यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तय करना है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
रूपये के लोगो में तमिलनाडु सरकार का बदलाव केंद्र ले सख्त निर्णय, राष्ट्रपति शासन लगाने में भी पीछे नहीं रहना चाहिए
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