नई दिल्ली 27 फरवरी। केंद्र सरकार ऑनलाइन गेमिंग के क्षेत्र में बड़ा बदलाव करने जा रही है। इसके तहत देश की ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों को एकल नियामक ढांचे के अंतर्गत लाने की योजना तैयार की जा रही है, जिससे विभिन्न राज्यों में लागू अलग-अलग कानूनों को समाप्त किया जा सके।
गृह मंत्रालय ने इस विषय पर चर्चा के लिए एक समिति का गठन किया है। इस मामले से जुड़े दो लोगों ने यह जानकारी दी। समिति में गृह मंत्रालय के अधिकारी, कानूनी और नीति विशेषज्ञ और गेमिंग उद्योग के कार्यकारी शामिल हैं। शुरुआती चरण में इस बात पर विचार किया गया कि क्या एक नया कानून लाने की आवश्यकता है, जो गेमिंग (कौशल आधारित खेल) और जुआ (संयोग आधारित खेल) के बीच अंतर स्पष्ट करे। यह मुद्दा लंबे समय से विवादित रहा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ऑनलाइन गेमिंग को ‘कौशल का खेल’ और जुआ को ‘संयोग का खेल’ करार दे चुका है।
नए कानून की आवश्यकता
सरकार इस क्षेत्र में अपार विकास की संभावनाएं देख रही है। एक अधिकारी के अनुसार, ऑनलाइन गेमिंग उद्योग ने अपनी संभावनाओं को दर्शाते हुए कई प्रस्तुतियाँ दी हैं, जिससे विदेशी निवेश आकर्षित किया जा सके। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार एकल कानून को महत्वपूर्ण मानती है। यह कानून भारत की वित्तीय खुफिया इकाई (एफआईयू) को विदेशी कंपनियों पर नकेल कसने में भी मदद करेगा, जो अब तक इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित स्व-नियामक निकाय ढांचे से संभव नहीं हो सका है।
दूसरा कारण गृह मंत्रालय को विदेशी कंपनियों के ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी की पेशकश को लेकर चिंता है जिससे मनी लॉन्ड्रिंग हो सकती है. तेजी से विकास की संभावना सरकार गेमिंग इंडस्ट्री में देख रही है.
तकनीकी और गेमिंग कानून विशेषज्ञ जय सयता के अनुसार, इस तरह का एकीकृत कानून गेमिंग उद्योग के लिए राहत की बात होगी, जिसे अब तक कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
इसके अलावा दो और अन्य वजहों से भी सरकार सिंगल रेगुलेटरी फ्रेमवर्क को लागू करने का विचार कर रही है. इसमें से पहली वजह टैक्सेशन को लेकर स्पष्टता है. 1.12 लाख करोड़ रुपये के GST नोटिस को गेमिंग कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. जिसके बाद कोर्ट ने इन नोटिसों पर रोक लगा दी है. मामले में 18 मार्च को सुनवाई शुरू होगी.