नई दिल्ली 25 फरवरी। उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि यूपी के संभल में मुगल कालीन जामा मस्जिद के पास स्थित विवादित ‘निजी कुआं’ सार्वजनिक भूमि पर स्थित है। सुप्रीम कोर्ट ने 10 जनवरी को यूपी सरकार से कहा था कि वह स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करे जिसके बाद यूपी सरकार की ओर से यह जवाब दाखिल किया गया है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच के सामने यूपी सरकार की ओर से दायर इस रिपोर्ट में कहा गया कि याचिकाकर्ता मस्जिद मैनेजमेंट कमिटी एक सार्वजनिक कुएं पर निजी अधिकार स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में शाही जामा मस्जिद, संभल की प्रबंधन समिति की ओर से एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट संभल के जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दे कि मस्जिद के प्रवेश द्वार के पास स्थित निजी कुएं पर यथास्थिति बनाए रखी जाए। बिना शीर्ष अदालत की अनुमति के इस संबंध में कोई भी भविष्य की कार्रवाई न की जाए। यह कुआं उन 19 कुओं में से एक है, जिन्हें जिला प्रशासन की ओर से वर्षा जल संचयन, भूजल पुनर्भरण और सभी समुदायों के उपयोग के लिए पुनर्जीवित किया जा रहा है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि यह कुआं, जिसे स्थानीय रूप से धरनी वराह कूप के नाम से जाना जाता है, मस्जिद के भीतर नहीं बल्कि उसके पास स्थित है। इसका मस्जिद से कोई संबंध नहीं है। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि यहां तक कि विवादित धार्मिक स्थल स्वयं भी सार्वजनिक भूमि पर स्थित है। यह कुआं सार्वजनिक कुआं है और मस्जिद/विवादित धार्मिक स्थल के अंदर कहीं भी स्थित नहीं है। वास्तव में, मस्जिद के अंदर से इस कुएं तक कोई पहुंच भी नहीं है।
उत्तर प्रदेश प्रशासन ने इस कुएं की स्थिति की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया, जिसमें संभल के उप-जिलाधिकारी (एसडीएम), क्षेत्रीय अधिकारी (एरिया ऑफिसर) और नगर पालिका परिषद, संभल के कार्यकारी अधिकारी शामिल थे।
समिति की ओर से किए गए स्थल निरीक्षण में पाया गया कि विवादित कुआं मस्जिद की चारदीवारी के बाहर स्थित है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि याचिकाकर्ता मस्जिद कमिटी ने भ्रामक तस्वीरें संलग्न कर यह दिखाने का प्रयास किया कि यह कुआं मस्जिद परिसर के भीतर स्थित है। निरीक्षण के दौरान यह भी पाया गया कि यह कुआं समय-समय पर सभी समुदायों द्वारा उपयोग में लाया जाता रहा है। हालांकि, वर्तमान में इस कुएं में पानी नहीं है।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि 1978 के सांप्रदायिक दंगों के बाद इस कुएं के एक हिस्से पर एक पुलिस चौकी बना दी गई थी, जबकि दूसरा हिस्सा 1978 के बाद भी उपयोग में था। वर्ष 2012 में इसे ढक दिया गया और वर्तमान में इसमें कोई जल नहीं है। राज्य सरकार ने कहा कि वह क्षेत्र में शांति और सौहार्द सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है और इस प्रकार के सार्वजनिक कुओं के उपयोग पर कोई प्रतिबंध लगाना उस लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक नहीं होगा।
शीर्ष अदालत में स्थिति रिपोर्ट दाखिल कर सरकार ने कहा कि मस्जिद भी सार्वजनिक भूमि पर बनी है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ के समक्ष यूपी सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता शाही जामा मस्जिद प्रबंधन समिति ने गलत तस्वीर पेश कर कोर्ट को गुमराह करने का प्रयास किया है। कुआं शाही मस्जिद परिसर के पास है, मस्जिद परिसर के भीतर नहीं। सरकार ने बताया कि कुएं का मस्जिद से संबंध नहीं, यहां तक कि शाही मस्जिद ही सरकारी जमीन पर बनी है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई मंगलवार को होगी।