सरकारी अस्पतालों मेडिकल कॉलेजों और गांव देहात में स्थित डिस्पेंशनरियों में कार्यरत डॉक्टरो की प्राइवेट प्रैक्टिस पर पिछले कई सालों से रोक लगी हुई है। बीच बीच में मिलने वाली शिकायतों और अपने सूत्रों से पता चलने का संज्ञान लेकर चिकित्सा विभाग के अधिकारियों और मंत्रालय द्वारा कुछ कार्रवाई भी प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले सरकारी चिकित्सकों पर की जाती रही है लेकिन जिलों में इस बात की निगरानी सही से ना होने और सीएमओ साहब के इस ओर पूरा ध्यान ना देने से स्वास्थ्य क्षेत्र के इस मामले में चिकित्सों की निरंकुशता और प्राइवेट प्रैक्टिस का प्रेम बढ़ता ही जा रहा है।
इस मामले में पिछले दिनों सहारनपुर के जिलाधिकारी मनीष बंसल की अध्यक्षता में कलक्ट्रेट सभागार में हुई एक बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ होगी कड़ी कार्रवाई। इस मामले मंे शिकायतों की जांच हेतु डीएम की अध्यक्षता में एक सतर्कता समिति गठित हुई है जिसे अच्छा प्रयास कह सकते हैं। मेरा मानना है कि मुख्यमंत्री जो पीएम मोदी जी की हर आदमी को आसानी से और सुलभ चिकित्सा उपलब्ध कराने की भावनाओं और योजनाओं को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य मंत्री और उच्च अधिकारियों के साथ विचार कर इस मामले में सख्ती और सतर्कता की शुरूआत करा दें तथा जिलों में डीएम की निगरानी इस मामले में बढ़ा दी जाए तो मुझे लगता है कि सरकार चिकित्सकों की प्राइवेट प्रैक्टिस पर बड़ी तादात में रोक लग सकती है और आम आदमी को उसका लाभ पूरी तौर पर मिलने लगेगा। क्योंकि सरकार सुविधाएं दे रही है और डॉक्टरों की सेवाएं बढ़ जाएंगी तो इस क्षेत्र में बढ़ोत्तरी होगी। लेकिन भय बिन प्रीत ना होए गोपाला की नीति को जब तक नहीं अपनाया जाएगा तब तक सरकार तो स्वास्थ्य विभाग का बजट भी बढ़ाती रहेगी लेकिन मोटी तनख्वाह और सुविधा लेने वाले कुछ डॉक्टर खाएंगे सरकार की और सुविधाएं जुटाएंगे परिवार के लिए और सेवाएं देंगे धनवानों को। बस यही तिलिस्म तोड़ने की जरूरत है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सरकारी डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक हेतु जिलों में बढ़ाई जाए निगरानी
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