देश की आजादी के संघर्ष के दौरान स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अमादा महापुरूषों और वीरों को प्रोत्साहित करने में सक्षम रहे गली मौहल्लों से प्रकाशित होने वाले लघु समाचार पत्रों की प्रशंसा पीएम साहब से लेकर जनपद के स्थानीय नेता भी मंचों पर खूब करते हैं। लेकिन जितना देखने में आ रहा है उसके हिसाब से वैसे तो इस वर्ग के समाचार पत्र संचालकों को हमेशा ही नजरअंदाज किया जाता रहा है लेकिन पिछले लगभग एक दशक द्वारा केंद्र व प्रदेश सरकारों द्वारा समय समय पर सरकारी नौकरों के साथ साथ नागरिकों को सुविधाएं देने और बजट में उनके लिए सुविधाओं और सहायताओं का पिटारा खोलने का काम भी किया गया। मगर लघु भाषाई समाचार पत्र संचालकों के उत्पीड़न और अधिकारियों द्वारा इन्हें अनकहे रूप से बंद कराने के लिए अपनाई जा रही नीति ने लघु और भाषाई समाचार पत्रों व उनके संचालकों की आर्थिक रूप से रीढ़ की हडडी कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई लगती है। पिछले दिनों केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और अब यूपी सरकार द्वारा जो बजट पेश किया गया उसमें जो अभी तक दिखाई दिया उसमें कहीं ऐसा नहीं लगता कि आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले योद्धाओं का उत्साह बढ़ाने तथा उन्हें सहयोग देने वाले समाचार पत्रों जो इस श्रेणी में आते हैं उनके लिए कोई सुविधा नहीं दी गई ऐसा नजर आ रहा है।
मैं ना तो केंद्र व प्रदेश सरकार का विरोधी हूं ना आलोचक। बड़े समाचार पत्र निरंतर तरक्की करें और चैनल भी समृद्धि प्राप्त करें मगर जिस प्रकार से सरकार ने खासकर डीएवीपी आरएनआई और प्रदेशों के सूचना विभाग के अफसरों द्वारा समाचार पत्रों के बजट का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा बड़े अखबारों व चैनलों को दिया जा रहा है उसे उचित नहीं कहा जा सकता। पूर्व में 75 प्रतिशत विज्ञापन बजट से लघु और भाषाई समाचार पत्रों को आगे लाने के लिए खर्च होता था मगर अब तो अफसर इस श्रेणी के समाचार पत्रों का उत्पीड़न करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। प्रधानमंत्री जी एवं मुख्यमंत्री जी आप क्योंकि हर वर्ग की सुविधा और उन्नति की सोच रहे हैं तो फिर इस वर्ग के समाचार पत्र संचालकों और अखबारों के उत्थान के बारे में विचार क्यों नहीं किया जा रहा। एक बात सबको समझ लेनी होगी कि इस श्रेणी के समाचार पत्र संचालक सरकारी नीतियां खबरों के रूप में आम आदमी तक पहुंचाते हैं। सरकार बड़े समाचार पत्रों के बीच संतुलन बनाकर किसी को निरंकुश होने का मौका नहीं देते। इसलिए मेरा सभी जनप्रतिनिधियों से अनुरोध है कि वो सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए और ऑल इंडिया न्यूज पेपर एसोसिएशन आईना के पदाधिकारी व सदस्यों व समाचार पत्र संगठनों के सुझाव को मानकर हर श्रेणी के समाचार पत्र चैनल, सोशल मीडिया को दिए जाने वाले विज्ञापनों में संतुलन बनाएं जिससे सही समाचारों और परिस्थितियों का आदान प्रदान होता रहे।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
देश की आजादी में मुख्य भूमिका निभाने वाले अखबारों का, पीएम साहब बजट में लघु और भाषाई समाचार पत्रों को नजरअंदाज क्यों कर रही हैं सरकारें; अफसरों द्वारा किया जाने वाला आर्थिक मानसिक सामाजिक उत्पीड़न रोका जाए
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