पहले यूपी विधानसभा में अंग्रेजी बोली जाए फिर उसका किया जाए अनुवाद को लेकर नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद जी का कहना है कि सपा और हम अंग्रेजी के विरोधी नहीं है लेकिन विधानसभा की कार्यवाही में इसका इस्तेमाल ना हो। अगर खबर को पढ़कर सोचें तो माता प्रसाद का कथन सही है क्योंकि अंग्रेजी और फिर उसका अनुवाद हर व्यक्ति आसानी से नहीं समझ पाएगा। मगर सवाल उठता है कि उन्हें ऐसा करने की नौबत ही क्यों पड़ी। बताते चलें कि जब से होश संभाला और जनसंघ व भाजपा नाम और राजनीति समझ में आई तब से यही देखते सुनते चले आ रहे हेैं कि भाजपा और जनसंघ अंग्रेजी का विरोध और हिंदी का समर्थन करते रहे हैं कुछ वर्षों पहले तक जब भाजपा सत्ता में नहीं आई थी तो इनके नेता कार्यकर्ता अंग्रेजी के विरोध में मार्च निकालते थे और अंग्रेजी के पोस्टर हटाए जाते थे। मुझे आज भी याद है कि जब दिल्ली की पहली सीएम सुषमा स्वराज द्वारा हरियाणा में अंग्रेजी भाषा का खुला विरोध किया जाता था और जब वह केंद्र में सूचना प्रसारण मंत्री बनी तो उनसे हुई मुलाकात में मेरे द्वारा बताया गया कि डीएवीपी हर विज्ञापन अंग्रेजी में जारी कर रहा है तो उन्होंने अपने पीएस को यह आदेश दिया था कि हिंदी भाषी क्षेत्र में हिंदी और अन्य में अंग्रेजी में पत्रावलियां भेजी जाए। उप्र हिंदी भाषी है और यहां अंग्रेजी का विरोध होता रहा है और प्रदेश में मातृभाषा और संस्कृत को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं ऐसे में अगर तमिलनाडु विधानसभा में विधायक अंग्रेजी में बोले तो सही लगता है लेकिन यूपी विधानसभा में अंग्रेजी बोली जाए तो वो समझ से बाहर है। दूसरी तरफ विधानसभा में सपा के बागी विधायक राकेश प्रताप सिंह द्वारा कुछ सदस्यों पर वंदे मातरम गीत का अपमान का आरोप लगाया गया जिस पर विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने कहा कि सभी को नैतिक दायित्वों व राष्ट्रगान व राष्ट्रीय गीत का सम्मान करें। सवाल यह उठता है कि सपा के बागी विधायकों को यह मुददा क्यों उठाना पड़ा। अगर ऐसा हो रहा था तो पहले ही सदस्यों को सचेत करना चाहिए था। भाजपा हमेशा से ही वंदेमातरम गायन को महत्व देती रही है। ऐसे में यूपी विधानसभा में सपा विधायक को यह मुददा उठाना पड़ा जो सोचनीय है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
भाजपा ध्यान दें! यूपी विधानसभा में अंग्रेजी बोलने और वंदे मातरम के अपमान का सपा को क्यों उठाना पड़ा मुददा
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