asd डीजे की तेज आवाज पर लगे रोक, निर्देशों का पालन ना कराने वाले थानेदारों के खिलाफ हो कार्रवाई

डीजे की तेज आवाज पर लगे रोक, निर्देशों का पालन ना कराने वाले थानेदारों के खिलाफ हो कार्रवाई

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डीजे और लाउडस्पीकर से अगर मध्यम आवाज में गाने भजन बजते हैं तो कानांें और मन को भी अच्छे लगते हैं लेकिन कुछ आयोजकों और निरंकुश डीजे संचालकों द्वारा शादी बारातों धार्मिक व अन्य आयोजनों में कानफोडू आवाज में जो डीजे बजाए जाते हैं उसे अगर ध्यान से देखें तो आम आदमी तो परेशान होता ही है आयोजकों का मुख्य उददेश्य भी पूरा नहीं हो पाता। पूर्व में सरकार और अदालत द्वारा तेज आवाज और कुछ स्थानों पर डीजे बजाने पर रोक होने के बावजूद इन आदेशों को लागू करवाने में सक्षम विभिन्न विभागों के हुक्मरानों की लापरवाही के चलते सरकारी और अदालतों के निर्णय का उल्लंघन तो हो ही रहा है। आम आदमी भी परेशान हो रहा है। स्थिति यह हो गई है कि अब स्कूली छात्र और शिक्षक मुखर होकर इसके विरोध में सामने आ गए हैं और आम आदमी तो पहले से ही इसे लेकर परेशान है। नागरिकों की इस बात से मैं सहमत हूं कि अभी इसके रोकने के लिए जिम्मेदार अभी हमारी आवाज को नक्कार खाने की तूती समझ रहो हो और जिस प्रकार अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता लेकिन आंख जरूर फोड़ सकता है। उसी के समान जल्दी ही हमारी आवाज जनमानस के स्वर में बदलेगी और अगर इन पर रोक नहीं लगाई गई तो आगे चलकर कई समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। बीते दिनों एक खबर के अनुसार कुछ छात्रों द्वारा डीएन इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य से इस बारे में की गई शिकायत पर उप्र प्रधानाचार्य के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सुशील सिंह ने लिखित में शिकायत की है। जो इस बात का प्रतीक है कि अगर इधर ध्यान नहीं दिया गया तो यह आवाज और भी मुखर हो सकती है।
मुझे लगता है कि सरकार को ऐसे स्पष्ट आदेश करने चाहिए कि स्कूलों अस्पतालों के पास डीजे ना बजाया जाए। अगर जरूरत हो तो वो धीमी आवाज में बजाए जाए तथा इस बारे में जो सरकारी आदेश हैं उनका पुलिस निकलने वाली सवारियों और बारातों आदि में सख्ती से पालन कराएं और जिस क्षेत्र में इसका उल्लंघन होता पाया जाए उसके डीजे संचालक और थानेदार से जवाब तलब हो। उसके खिलाफ की जाए कार्रवाई। क्योंकि अब यह समस्या काफी गंभीर होती जा रही है। कई स्थानों पर डीजे की आवाज से लोगों की खिड़कियों के शीशे टूट चुके हैं तो कई नागरिकों की कानों की झिल्ली भी इससे प्रभावित हो रही है। अपने घरों पर आराम करने वाले हार्ट पेशेंट को भी इससे खतरा बना रहता है। जो किसी भी रूप में जनहित में नहीं कहा जा सकता।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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