नई दिल्ली 18 फरवरी। पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम-1991 के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने और इसके प्रभावी कार्यान्वयन की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई नहीं हो सकी। अदालत अप्रैल के पहले सप्ताह में इस मामले पर सुनवाई करेगी। साथ ही शीर्ष कोर्ट ने मामले में दाखिल की गई नई याचिकाओं पर नाराजगी भी जताई।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने मामले की सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश ने पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम को लेकर दाखिल नई याचिकाओं पर कहा कि याचिकाएं दाखिल किए जाने की एक सीमा होती है। बहुत सारे आईए (अंतरिम आवेदन) दाखिल किए गए हैं। हम शायद इस पर सुनवाई नहीं कर पाएं। उन्होंने यह टिप्पणी तब की, जब एक वादी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने दिन में सुनवाई के लिए एक नई याचिका का उल्लेख किया।
शीर्ष अदालत ने 12 दिसंबर, 2024 को मामले में महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश पारित करते हुए देशभर की अदालतों को किसी भी धार्मिक स्थानों के चरित्र में बदलाव/सर्वेक्षण की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने से रोक दिया था। यहां तक शीर्ष अदालत ने नई याचिकाओं के पंजीकरण पर भी रोक लगा दी थी और कहा था कि कोई भी अदालत तब तक मामले में कोई भी अंतरिम या अंतिम निर्णय पारित नहीं करेगी, जब तक शीर्ष अदालत में सुनवाई पूरी नहीं हो जाती।
शीर्ष अदालत ने वाराणसी में ज्ञानवापी, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद सहित 10 मस्जिदों के मूल धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण की मांग पर भी रोक लगा थी। शीर्ष अदालत ने यह आदेश, उत्तर प्रदेश के संभल जिले की शाही जामा मस्जिद में सर्वेक्षण को लेकर हुई हिंसा के बाद मामले की सुनवाई करते हुए दिया था। इस हिंसा में 4 लोगों की मौत हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट पूजा स्थल विशेष प्रावधान अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने और इस कानून के प्रावधानों को प्रभावी तरीके से लागू करने की मांग को लेकर दाखिल कई याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया था।
यह कानून किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को 15 अगस्त, 1947 के बाद से किसी भी तरह के बदलाव पर रोक का प्रावधान करता है। हालांकि अयोध्या के रामजन्मभूमि विवाद को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया था क्योंकि कानून बनने से पहले, यह मामला अदालत में लंबित था।
शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी की इस दलील पर गौर किया कि विवादित संरचना याचिकाकर्ताओं के स्वामित्व वाली निजी भूमि पर बनाई गई है। नई याचिका में कहा गया कि प्राधिकारियों ने 9 फरवरी को कुशीनगर में मदनी मस्जिद के बाहरी और सामने के हिस्से को ध्वस्त कर दिया था।
कार्रवाई में कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं
पिछले साल शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए अपने फैसले में दिए गए निर्देशों का हवाला देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि कृपया देखें कि उन्होंने किस तरह से इस (संरचना) को ध्वस्त किया है। याचिका में आरोप लगाया गया कि विध्वंस की कार्रवाई उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना व कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन कर की गई।