एक युवा वकील जिसके द्वारा व्यक्तिगत रूप से जरूरतमंद को कानूनी सहायता उपलब्ध कराई गई की प्रशंसा करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना एवं न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा द्वारा कहा गया कि गरीब वादकारियों की सहायता के लिए युवा वकील आगे आएं और जरूरतमंद व्यक्तियों की मदद करें जिससे सिर्फ मामले की सुनवाई समय से ना होने के चलते जो लोग जेलों में पड़े रहते हैं उन्हें और उनके परिवारों को राहत मिल सके। न्यायमूर्तियों का प्रेरक संदेश जो युवाओं के लिए दिया गया वो समाज के लिए एक बड़ी सहायता भी बन सकता है उन व्यक्तियों के लिए जो मुकदमे का खर्च ना उठाने के चलते परेशान रहते हैं। मेरा केंद्र और प्रदेश सरकार से आग्रह है कि जब गर्भावस्था में महिला की चैकिंग के तरीके बदलने की मांग की जा रही है तो जेलों में जो फिल्मों में दिखाया जा रहा है अगर वो सही है तो महिला हो या पुरूष निर्वस्त्र करके उनकी जांच पर प्रतिबंध लगे। दूसरे शरीफ और अपराध से संबंध ना रखने वाले लोग विभिन्न कारणों से जेल चले जाते हैं वो बाहर उसी सोच के साथ आएं जिसके साथ गए थे। इसलिए ऐसे कैदियों को अपराध से अलग रखने और जेल नियमो के अनुसार उन्हें साफ सुथरा माहौल पौष्टिक आहार और सुलभ शौचालय उपलब्ध कराने की व्यवस्था हो और जेल का माहौल शरीफ कैदियो के लिए नरक जैसा या कष्टदायक ना हो पाए इस हेतु सामाजिक संस्थाओ के सहयोग से पूर्ण पुलिस सुरक्षाा में आकस्मिक रूप से जेल और बैरकों का निरीक्षण हो। हर तीसरे महिने में गोपनीय रिपोर्ट ली जाए कि व्यवस्था सही है या नहीं। दूसरे दूसरे हम कैदियों को सुधारने और समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए आए दिन अनेक प्रयास करते नजर आ रहे हैं तो फिर पुराने और दबंग कैदियों के उत्पीड़न से परेशान अगर कोई ट्रायल वाला कैदी उसका जवाब देता है तो उसे एकांतवास वाली कोठरियों में ना भेजा जाए क्योंकि वहां दस दिन में ही उसके बीमार हो जाने और निगेटिव भावना से ग्रस्त होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। मेरा मानना है कि अब हर जिले में हमारे नौजवान वकालत के पेशे में आ रहे हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति द्वारा जरूरतमंद कैदियों की मदद के लिए युवाओं को आगे आने का जो आहवान किया गया है अपने निर्णय में उसे ध्यान में रखते हुए देश के सभी जनपदों में दस दस पांच पांच कर सौ वकीलों का एक पैनल गठित कर उन्हें अलग अलग समय में जेलों में भेजकर जांच पड़ताल करानी चाहिए और इस दौरान उन्हें जेल के अतिरिक्त बाहरी पुलिस व्यवस्था और सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए। जो कैदी बीमार हों उन्हें जेल के अस्पतालों में रखा जाए ना कि धुरंधर अपराधियों और प्रभावशाली बंदियों को अस्पतालों मंे भेजकर पात्रों को बैरकों में ही जो छोड़े जाने की बात सुनाई देती है उसे सही किया जाए। तथा महिला बंदियों की देखभाल के लिए ऐसी महिला अधिकारी तैनात की जाए तो उन्हें व्यवहारिक और पारीवारिक माहौल उपलब्ध कराए। इसके साथ ही जेल मंत्रालय को हर जेल के जेलर से लेकर सिपाही तक को वो सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं तो एक पारिवारिक व्यक्ति को उपलब्ध होती है जिससे वह किसी प्रकार की भावना से ग्रस्त होकर ना तो कैदियों का उत्पीड़न करें ना किसी को करने दें। तथा पीएम मोदी की स्वच्छता अभियान के तहत बैरकों में सफाई हो और साफ पानी और खाना उपलब्ध हो अथवा जिन कैदियों का व्यवहार सही होता है उनके छह महीने निगरानी कर समय से पूर्व उन्हें रिहाई दी जाए जिससे जेलों में कैदियों की संख्या कम हो इसके लिए जल्दी जल्दी सुनवाई और मुकदमों का निस्तारण के लिए भी सरकार और अदालत को व्यवस्था करनी होगी। तभी कैदियों को सम्मानजनक माहौल और कुछ सीखने और करने का मौका भी जेल में उपलब्ध हो पाएगा जिससे वो बाहर आकर जीवन यापन लायक कमा सके।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
कारागार के माहौल में सुधार जरूरी है! कैदियों की निर्वस्त्र कर होने वाले वाली जांच बंद हो, विचाराधीन बंदियों के मुकदमे की पैरवी हेतु गठित हो वकीलों के पैनल
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