महाकुंभ के स्नान पर लगभग 50 करोड़ श्रद्धालुओं के वहां पहुंचने और डुबकी लगाने की खबरें पढ़ने सुनने को मिल रही हैं। यह एक ऐसा पर्व है जिसमें देश और दुनिया से भक्त और लोग प्रयागराज पहुंच रहे हैं। अब इतनी भीड़ पहुंच रही है तो वहां जाने के लिए यात्रियों की बस और रेलवे स्टेशनों के साथ सड़क मार्ग पर भीड़ होना अनिवार्य है। अब कोई कहे कि सरकार ने व्यवस्था नहीं की इसलिए होने वाली भगदड़ों में लोगों की मौत हुई। सबकी अपनी अपनी सोच है। किसी को सुझाव देने और अपनी बात कहने से रोका नहीं जा सकता। जिन परिवारों के लोग बिछड़े हैं वो कितने ही धार्मिक क्यों ना हो उनके लिए यह दुख जीवनभर का रोग हो गया। यह भी सही है कि जितनी योजनाएं बनाई गई उन्हें सही से विस्तार में लाया जाता और अफसर जागरूक रहते तो इन मौतों को रोकने या कम करने में सफलता मिलती। जाना था कुंभ धर्म कमाने हिस्से में आई मौत। कुछ नेता रेलमंत्री तो कुछ यूपी सरकार का इस्तीफा मांग रहे हैं। इसके पीछे उनकी मंशा को किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। हो सकता है कि कुछ लोगों को मेरी बात बुरी लगे तो कई सरकार का पिठठू भी कह सकते है। जो भगवान को प्यारे हुए उनके प्रति दुख मुझे भी है लेकिन समय से पूर्व मौत को गले ना लगाना पड़े इसके लिए यह जरूरी है कि हम खुद एहतियात बरतें और भीड़ में ऐसे धार्मिक स्थलों से बचें क्येांकि हम कुंभ के दौरान नहाए या सामान्य सभा में पुण्य तो हमें मिलना ही है तो फिर ऐसी भीड़ में कहीं भी जाने का रिस्क क्यों लिया जाए। दिल्ली की दुर्घटना और कुंभ मेले में जो भगदड़ मची उसकी तो जांच होगी ही लेकिन मुझे लगता है कि हमें अफवाहों से ऐेसे मामलों में बचकर रहकर खुद निर्णय लेने की जरूरत है। जिस प्रकार से रेलों में यात्री जबरदस्ती दस की पर एक हजार घुसते नजर आ रहे हैं ऐसे में कोई भी दुर्घटना हो जाना आश्चर्य की बात नहीं है इसके लिए सरकार और रेल मंत्रालय को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए। अगर हम समझदारी से काम ले तो पुण्य भी मिलेगा। जान भी बची रहेगी । पिछले कुछ सालों में धार्मिक स्थलों में हुई भगदड़ में हुई मौत का एक खबर के अनुसार विवरण
पिछले साल दो जुलाई को उत्तर प्रदेश के हाथरस में स्वयंभू भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ में 121 लोगों की मौत हुई थी जिनमें ज्यादातर महिलाएं थीं।
इसी प्रकार, 2005 में महाराष्ट्र के मंधारदेवी मंदिर में 340 से अधिक श्रद्धालु मारे गए तथा 2008 में राजस्थान के चामुंडा देवी मंदिर में कम से कम 250 श्रद्धालु मारे गए। 2008 में हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में एक धार्मिक सभा में भगदड़ मचने से 162 लोगों की जान चली गई।
हाल के वर्षों में देश में हुईं ऐसी प्रमुख त्रासदियों की यहां जानकारी दी गई है।
-दो जुलाई 2024: उत्तर प्रदेश के हाथरस में स्वयंभू भोले बाबा उर्फ घ्नारायण साकार हरि द्वारा आयोजित ‘सत्संग’ में भगदड़ मचने से महिलाओं और बच्चों सहित 100 से अधिक लोग मारे गए।
-31 मार्च, 2023: इंदौर शहर के एक मंदिर में रामनवमी के अवसर पर आयोजित हवन कार्यक्रम के दौरान एक प्राचीन ‘बावड़ी’ या कुएं के ऊपर बने स्लैब के ढह जाने से कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई।
-एक जनवरी, 2022: जम्मू-कश्मीर में प्रसिद्ध माता वैष्णो देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण मची भगदड़ में कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई और एक दर्जन से अधिक घायल हो गए।
-14 जुलाई, 2015: आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में ‘पुष्करम’ उत्सव के पहले दिन गोदावरी नदी के तट पर एक प्रमुख स्नान स्थल पर भगदड़ मचने से 27 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई और 20 अन्य घायल हो गए।
-तीन अक्टूबर, 2014: दशहरा समारोह समाप्त होने के तुरंत बाद पटना के गांधी मैदान में भगदड़ मचने से 32 लोग मारे गए और 26 अन्य जख्मी हो गए।
-13 अक्टूबर, 2013: मध्यप्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 115 लोग मारे गए और 100 से ज्यादा घायल हो गए। भगदड़ की शुरुआत इस अफवाह के कारण हुई कि श्रद्धालु जिस नदी के पुल को पार कर रहे थे, वह टूटने वाला है।
-19 नवम्बर, 2012: पटना में गंगा नदी के तट पर अदालत घाट पर छठ पूजा के दौरान एक अस्थायी पुल के ढह जाने से मची भगदड़ में लगभग 20 लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।
आठ नवम्बर, 2011: हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर हर-की-पौड़ी घाट पर भगदड़ में कम से कम 20 लोग मारे गए।
इनमें से ज्यादातर दुर्घटनाएं हमारी नासमझी भी इसके लिए जिम्मेदार नजर आता है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
कुंभ स्नान को लेकर भगदड़, सरकार ही नहीं हम भी दोषी हो सकते हैं, धार्मिक अवसरों पर हुई कुछ भगदड़ों से ऐसा लगता है
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