asd गडबड़ के आरोप जीतने वाले नेता क्यों नहीं लगाते, हारने वालों को ही यह क्यों दिखाई देता है, बंद हो आरोप ?

गडबड़ के आरोप जीतने वाले नेता क्यों नहीं लगाते, हारने वालों को ही यह क्यों दिखाई देता है, बंद हो आरोप ?

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वैसे तो निर्वाचन आयोग अपने हिसाब से ज्यादातर मौकों पर निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने का पक्षधर रहा है। लेकिन टीएन शेषन के निर्वाचन आयुक्त बनने के बाद से जो चुनावी प्रक्रिया में अभूतपूर्व सुधार और इस दौरान गड़बड़ करने वाले निरंकुश लोगों पर कार्रवाई की शुरूआत हुई वो हमेशा उल्लेखनीय कही जाएगी। क्योंकि एक तो नियमों का सख्ती से पालन शुरू हुआ। दूसरे टीएन शेषन ने खुद कड़े कदम उठाए इसलिए उनका स्वर्णिम काल चुनाव सुधारों के लिए याद किया जाएगा। चुनाव चाहे ग्राम प्रधान के हो या लोकसभा के प्राइवेट संस्थाओं के हो या एनजीओ के ज्यादातर मौकों पर पराजित होने वाले उम्मीदवार जिन्हें पहले से ही यह आभास हो जाता है कि उनकी लुटिया डूबने वाली है वो चुनाव में गड़बड़ होने और चुनाव में पक्षपात कराने के आरोप लगाने लगते हैं। जिससे वह हारने के बाद यह कह सके कि उन्हें पहले आभास था कि गडबड़ कराई जाएगी। लेकिन पिछले कुछ दशक से हर निर्वाचन अधिकारी अपने अधिकारों को पहचानने लगा है और अपने लिखे की ताकत का अहसास उसे होने लगा है इसलिए यह कहा जाने लगा है कि जिस स्तर पर निर्वाचन के गड़बड़ के आरोप लगते हैं वो शायद सभी सही नहीं होते। निर्वाचन अधिकारी को अपने पद की चिंता होती है और हर उम्मीदवार जागरूक होते हैं। आश्यर्च इस बात का है कि जीतने वाला कभी यह नहीं कहता कि चुनाव में गडबड़ हुई। एक ही पार्टी के 100 उम्मीदवारों में से जीतते हैं वो इस प्रकार की बात नहीं करते लेकिन हारने वाले पक्षपात के आरोप लगाते हैं।
बीते दिनों दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए। यहां 15 साल बाद 70 में से 48 सीटे भाजपा जीती और पूर्व में 62 सीट जीतने वाली आप पार्टी 22 पर सिमट गई। कुछ लोगों का यह कथन सही लगता है कि जब पिछले चुनाव निरंतर आप जीतती रही तो उसने कभी भी यह आरोप नहीं लगाया कि चुनाव में गडबड हुई लेकिन हारते ही उन्हें यह सब दिखाई देने लगा। बताते हैं कि दिल्ली में चुनाव कराने वाली मुख्य निर्वाचन अधिकारी आर एलिस बाज ने निष्पक्ष चुनाव कराने का कार्य किया। लेकिन निर्वाचन आयोग पर लगे आरोपों से दुखी बाज का कहना है कि निराधार आरोप रोकने की आवश्यकता है। क्योंकि इससे निर्वाचन आयोग की छवि धूमिल होने का खतरा बना है। अतः निर्वाचन प्रणाली पर विश्वास बनाए रखने हेतु आरोप प्रत्यारोप का यह दौर बंद होना चाहिए। ऐसा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए या फिर वो अपने कथन के संदर्भ में तथ्यपरक सबूत उपलब्ध कराएं। बीते दिनों उप्र के पूर्व सीएम सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा कि चुनाव आयोग मर गया है। उन जैसे समझदार नेता ने ऐसा क्यों कहा यह तो वही जान सकते हैं लेकिन मुझे लगता है कि अखिलेश यादव को ऐसा नहीं कहना चाहिए। जो कहा वो अलग बात है। मगर मेरा मानना हेै कि सरकार तो ज्यादा सख्ती नहीं कर पाएगी लेकिन अदालत इस बारे में निर्णय ले सकता है। इसलिए जनहित में इस ओर जल्द ध्यान देने की आवश्यकता से कोई भी इनकार नहीं कर सकता।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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